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कासगंज: समस्या से सबक तक

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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गणतंत्र दिवस पर निकाली जा रही तिरंगा यात्रा को लेकर कासगंज में जिस तरह से सुनियोजित उपद्रव किया गया, उससे यही लगता है कि आज भी यूपी के विभिन्न जिलों में महत्वपूर्ण पदों पर ऐसे अधिकारी बैठे हुए हैं, जिन्हें समुचित प्रशासनिक अनुभव नहीं है या फिर वे किसी दबाव में काम नहीं कर पा रहे हैं. यूपी पुलिस के नए मुखिया ने आते ही जिस तरह से पूरे बल को एक कड़े सिस्टम के अंतर्गत चलाने की बात कही और यूपी के सीएम आदित्यनाथ ने भी पुलिस को कानून व्यवस्था सुधारने में खुला हाथ देने की छूट दी, फिर भी २६ जनवरी के हाई अलर्ट वाले दिन कितनी आसानी से कुछ अराजक तत्वों ने पूरे शहर को नफरत की आग में झोंक दिया और पूरे प्रदेश में चिंताएं बढा दीं.


kasganj


आखिर किन कारणों से पुलिस और ख़ुफ़िया तंत्र इस साज़िश का पता नहीं लगा पाए, यह जाँच का विषय होना चाहिए. जो भी ज़िम्मेदार लोग इस तंत्र में लगे हुए हों उनसे स्पष्टीकरण भी माँगा जाना चाहिए, जिससे आने वाले समय में अधिकारियों और कर्मचारियों पर सही काम करने का दबाव बनाया जा सके और लापरवाही में होने वाली इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति पूरी तरह से रोकी जा सके.


इतने महत्वपूर्ण दिन जब आम नागरिकों को ख़बरों में यही सुनाई और दिखाई देता है कि पूरा देश हाई एलर्ट पर है फिर इतनी बड़ी घटना और लगातार उपद्रव जैसी स्थिति बनी रहे तो सरकार और व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगता ही है पर इसके लिए केवल सरकार को ही सदैव दोषी नहीं बताया जा सकता है. सबसे बड़ी विचारणीय बात यह है कि पूरे शहर में बिना अनुमति के तिरंगा यात्रा कैसे निकाली जा रही थी और कुछ युवक इस तरह से सड़कों पर बिना अनुमति यात्रा निकालते रहे पर पुलिस प्रशासन सिर्फ इस बात से अनभिज्ञ रहा या अनभिज्ञ बना रहा, इस बात का जवाब आज किसी के पास नहीं है.


किसी भी तरह की यात्रा निकालने के लिए नियमतः उसके मार्ग, समय शामिल होने वाले लोगों की अनुमानित संख्या के बारे में लिखित अनुमति लिए जाने का प्रावधान है फिर इस मूलभूत प्रशानिक चूक के लिए किसको ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए? बेशक कुछ लोग यह कह सकते हैं कि यह देश के लिए निकाली जाने वाली तिरंगा यात्रा थी पर क्या देश के लिए निकाली जाने वाली कोई भी यात्रा या उसे निकालने वाले कानून से ऊपर हो सकते हैं? यात्रा के आयोजकों की तरफ से यह क्यों किया गया इस बात का जवाब भी सामने आना बाकी है, क्योंकि देशहित के लिए क्या देश के कानून को किनारे किया जा सकता है?


घटना के बाद भी जिस तरह से अगले दिन भी उपद्रव जारी रहा इससे यही पता चलता है कि स्थानीय प्रशासन को वहां की सही स्थिति का कोई अंदाज़ा ही नहीं है और वह केवल ऊपरी तौर पर काम करने की कोशिश करने में लगा हुआ है ? शुक्रवार की घटना के बाद अगले दिन तक जिस तरह से शहर की अराजकता शहर के बाहर तक चली गयी उससे यही लगता है कि प्रशासनिक अक्षमता वहां पर चरम पर है और उससे निपटने के लिए ठोस कदम भी नहीं उठाये जा रहे हैं.


सबसे चिंता की बात यह है कि लखनऊ में बैठे प्रमुख गृह सचिव तक को वास्‍तविक स्थिति से अवगत नहीं कराया जा रहा है, जिससे उनके और मंडल स्तर के अधिकारियों के बयानों में भी बड़ी भिन्नता दिखाई दे रही है. सीएम आदित्यनाथ के लिए यूपी के पुलिस प्रशासन में जमे इस रोग की पहचान करना और उसको दूर करने की कोशिश करना ही अब सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि जब तक पुलिस प्रशासन सही तरह से काम नहीं करेंगे तब तक इस स्थिति को संभाला और रोका नहीं जा सकता है.


स्थानीय प्रशासन से परिणाम देने की आशा केवल तभी की जा सकती है, जब तेज़ तर्रार अधिकारियों को फील्ड पोस्टिंग दी जाये और साथ ही उनके तबादलों के लिए एक नीति का निर्धारण भी किया जाये, जिससे वे अपने तैनाती स्थल के बारे में कुछ जान समझ भी सकें तथा विपरीत परिस्थिति आने पर उसे सँभालने के उपाय भी खुद ही खोज सकें.


शासन स्तर पर भी अब खुद सीएम आदित्यनाथ के लिए सोचने का समय आ गया है कि प्रदेश में लम्बे समय पुलिस सुधार की सिफारिशों पर कोई कार्यवाही किसी भी सरकार द्वारा नहीं की जा रही है, जिससे पुलिस बल को मनमानी करने का अवसर मिल रहा है, जिसका फल जनता को भुगतना पड़ता है. साथ ही एक प्रश्न यह भी है कि क्या अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों की तरह सीएम आदित्यनाथ की भी सोच वही है कि सीएम के पास यूपी जैसे राज्य का गृह विभाग सही तरह से काम कर सकता है?


परिवर्तन की शुरुवात खुद सीएम को अपने से करनी चाहिए और प्रदेश को एक पूर्णकालिक गृह मंत्री (जिसके साथ कम से कम तीन ऊर्जावान गृह राज्यमंत्री भी तैनात हों) यूपी को देना चाहिए जिससे इस विभाग में व्याप्त गड़बड़ियों को सही तरह से ठीक किया जा सके और विभाग की चिंताओं और समस्याओं पर भी विचार किया जा सके. आशा की जा सकती है कि नए पुलिस मुखिया द्वारा इस दिशा में सरकार के सामने एक कार्ययोजना प्रस्तुत की जाएगी जिस पर सरकार को अमल करने के बारे में सोचना भी होगा.


पुलिसिंग में निचले स्तर पर आज से तीन दशक पहले की पीस कमेटियों को फिर से जीवित करना होगा जिससे समाज के लोग साथ में बैठकर स्वयं समस्याओं पर विचार कर सकें. आज के समय में चल रही पीस कमेटियों पर भी विचार किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि उनमें केवल वही लोग स्थान पाए रहते हैं जो सीधे पुलिस से जुड़े होते हैं और समाज का सही प्रतिनिधित्व भी नहीं करते हैं.


निश्चित तौर पर कासगंज ने सीएम आदित्यनाथ के लिए चुनौती प्रस्तुत की है और अब यह उन पर ही निर्भर करता है कि वे यूपी के गृह विभाग को किस तरह से चलाना चाहते हैं और क्या उनकी मंशा वास्तव में प्रदेश की कानून व्यवस्था में सुधार करने की है तो क्या उसकी शुरुआत वे लोकभवन में शक्तियों के विकेन्द्रीकरण से करने के बारे में मानसिक रूप से तैयार भी हैं?


सीएम के पास ४ वर्षों से अधिक का समय है जिसका उपयोग वे गृह विभाग में सुधारात्मक क़दमों के लिए आसानी से कर सकते हैं. साथ ही बड़े शहरों में पुलिस आयुक्त की अवधारणा पर भी काम किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि सत्ता में बैठे किसी भी दल के सीएम की खोखली चेतावनी से यह विभाग सदैव ही रूबरू रहता है और यह भी जानता है कि कासगंज जैसी घटनाओं से किस तरह उबरा जाता है पर अब प्रदेश को कुछ ठोस क़दमों की आवश्यकता है और अब यह आशा पूरी करना सिर्फ सीएम आदित्यनाथ पर ही निर्भर है.

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