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मानक रैक – रेलवे की नयी पहल

***.......सीधी खरी बात.......***
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हर वर्ष कोहरे और अन्य कारणों से भारतीय रेलवे की अधिकांश गाड़ियां अनिश्चित काल के लिए विलम्ब से चलने लगती हैं जिनसे निपटने के लिए सदैव ही रेलवे की तरफ से कई तरह के प्रयास किये जाते रहते हैं पर उनसे स्थितियों को सही करने में पूरी क्या थोड़ी भी मदद नहीं मिल पाती है जिससे रेलवे के साथ यात्रियों को भी बहुत असुविधा का सामना करना पड़ता है. इस समस्या से निपटने के लिए अब रेलवे की तरफ से एक नयी पहल की जा रही है जिससे यह आशा की जा सकती है कि यदि इसे सही तरह से लागू किया जा सका तो आने वाले समय में रेलवे अपने संसाधनों के बेहतर प्रबंधन से लगातार लेट होती गाड़ियों को काफी हद तक काबू में ला सकता है. इस योजना में अब पूरे देश में चलने वाली सभी गाड़ियों की संरचना को एक नियमित मानक में कर दिया जायेगा जिससे आरक्षण से लगाकर अन्य सभी समस्याओं से बिना किसी परेशानी के निपटा जा सकेगा और बहुत देर से चलने वाली गाड़ियों के स्थान पर उपलब्ध रैक्स को उपयोग में लेकर किसी भी स्टेशन से जाने वाली गाड़ी को सही समय से रवाना किया जा सकेगा. इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि मान लीजिये लखनऊ स्टेशन से किसी गाड़ी को शाम के तीन बजे रवाना होना है पर जो रैक उस मार्ग उस गाड़ी के लिए चलायी जाती है वह किसी कारण से लेट है तो उसके आने के बाद उसको आवश्यक अनुरक्षण के कार्य के लिए यार्ड में भेजा जायेगा जिससे उसके जाने का समय भी और लेट हो जायेगा. इस स्थिति में रेलवे के मानक रैक उपलब्ध होने से सुबह समय से आयी और अनुरक्षण से वापस आ चुकी तथा देर रात में जाने वाली किसी अन्य गाड़ी के रैक को लखनऊ स्टेशन से इस गाड़ी के नंबर के साथ रवाना किया जा सकता है और देर रात जाने वाली किसी अन्य गाड़ी के समय पर लेट आने वाली गाड़ी के रैक को अनुरक्षण के बाद भेजा जा सकता है.
आज रेलवे के सामने इस प्रक्रिया को शुरू करने में सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसकी सभी गाड़ियों के रैक्स आज की आवश्यकता के अनुसार १२, १६, १८, २२ और २६ कोच के होते हैं जिस कारण रेलवे किसी ट्रेन के लेट होने पर किसी और खड़ी ट्रेन को उसके नाम से नहीं चला पाती और मुख्य ट्रेन का आने का ही इंतजार करना पड़ता जिससे पहले सही लेट चल रही गाड़ियां और भी लेट हो जाती हैं और रेलवे के पास उनको निरस्त करने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं बचता है. इससे जहाँ रेलवे को आर्थिक नुकसान होता है वहीँ यात्रियों के लिए भी अचानक से नयी समस्या सामने आ जाती है. रेलवे के नए प्लान के अनुसार यदि काम सही ढंग से चल पाया तो सही समय से चलने वाली एक गाड़ी के रैक का दूसरी गाड़ी में उपयोग करके गाड़ियों के लेट होने के घंटो पर नियंत्रण किया जा सकेगा साथ ही विषम से विषम परिस्थिति में भी ट्रेन को निरस्त करने जैसे कदम उठाने ही नहीं पड़ेगें क्योंकि तब लेट होने की एक सीमा निर्धारित की जा सकेगी और उसके बाद भी लेट चलने वाली गाड़ी को समय रहते ही निरस्त कर दिया जायेगा जिससे यात्रियों को अधिक समस्या का सामना न करना पड़े. ऐसी स्थिति के लिए तैयार होने के लिए रेलवे को तेज़ी से अपने अनुरक्षण से जुड़े संसाधनों को बढ़ाना होगा क्योंकि अभी कुछ जगहों पर छोटी रैक का अनुरक्षण ही किया जाता सकता है जिसके चलते वहां पर २२ डिब्बों वाली रैक का अनुरक्षण संभव नहीं हो पायेगा और जब तक पूरे देश में इस व्यवस्था को लागू नहीं किया जा सकेगा तब तक रेलवे के लिए परिचालन से जुडी समस्याएं बनी ही रहने वाली हैं.
आने वाले समय में जिस तरह से भारतीय रेलवे की सभी गाड़ियों को आधुनिक एलएचबी रैक्स से बदलने की नीति पर अमल शुरू हो चुका है तो इससे भी ट्रेनों की गति और सुरक्षा पर गुणात्मक असर पड़ने वाला है. ये कोच हमारे परंपरागत कोचों से हलके और बेहद मज़बूत होते हैं साथ ही इनमें दुर्घटना के समय न पलटने की तकनीक का उपयोग किया गया है जिससे दुर्घटना की भयावहता को कम किया जा सकता है. इन कोचों को आधुनिक तरीके से बनाया जाता है जिससे इनका अनुरक्षण और सफाई करना पहले के मुक़ाबले आसान हो गया है और इस कार्य में लगने वाले समय को भी घटाने में रेलवे को अच्छी खासी मदद मिलने वाली है. आशा की जानी चाहिए कि जिन ३०० मार्गों पर चलने वाली गाड़ियों में प्रारंभिक तौर पर २२ कोचों वाली मानक रैक का उपयोग प्रारम्भ करने के बारे में विचार किया गया है उसको देखते हुए जल्दी ही गाड़ियों के लेट होने के समय को कम किया जा सकेगा साथ ही रेलवे को अत्यधिक व्यस्त मार्गों पर कोहरे के अतिरिक्त फिर से २६ कोचों के बारे में सोचना ही होगा क्योंकि २६ कोच वाली हर गाड़ी में ४ कोच कम होने से गाड़ियों की परिवहन क्षमता भी कम हो जाएगी और यात्रियों का दबाव अन्य गाड़ियों पर बढ़ जायेगा जिससे इस नयी समस्या से निपटना और भी कठिन हो सकता है. इसके लिए रेलवे इसे चरणबद्ध तरीके सभी लागू कर सकता है जिसमें २२ और १८ कोचों का मानक बनाते हुए पहले पहले इन दो स्तरों पर काम किया जाये और बाद में कोचों की उपलब्धता और उत्पादन के अनुरूप एक निश्चित समय सीमा में इस नयी व्यवस्था को लागू किये जाने का प्लान भी सामने रखना चाहिए और यदि संभव हो तो इसके साथ ऐसा नियम भी जोड़ा जाना चाहिए जिससे आने वाले समय में इसके कार्य को रोका न जा सके.

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