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डेरों, प्रचारकों की दुर्गति के कारण

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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आज के भौतिक युग में जिस तरह से हर व्यक्ति अपने ही कामों में व्यस्त रहने के लिए अभ्यस्त हो चुका है तो उसके लिये शारीरिक और मानसिक तनाव पैदा करने वाले कारकों में लगातार वृद्धि होती जा रही है जिससे अपने को बचाने का उसे कोई सुरक्षित मार्ग संसार में दिखाई नहीं देता है. यह एक ऐसी परिस्थिति होती है जब व्यक्ति के पास सांसारिक रूप से बहुत कुछ तो होता है पर उसके पास मन की शांति नहीं होती है जिसे खोजने के लिए वह अपनी निष्ठा और धर्म के अनुरूप प्रयास शुरू करता है जिसमें कई बार वह केवल अपने धर्म के बताये मार्ग पर चलकर ही आगे बढ़ने और शांति पाने का मार्ग खोज लेता है और कई बार जब उसकी मानसिक स्थिति उसे उस स्तर तक पहुँचने नहीं देती तो वह आज के सांसारिक गुरुओं की शरण में जाने के विकल्प के बारे में सोचना शुरू कर देता है जिससे उसका किसी डेरे या आश्रम के अनुयायी से संपर्क होता है और वह उस गुरु या आश्रम के साथ जुड़कर अपने को कुछ सहज बनाने के उपाय खोजने लगता है. यह ऐसी अवस्था होती है जिसमें वह व्यक्ति अपनी परेशानियों और उलझाव के चलते किसी भी तरह से सही गलत सोचने की स्थिति से आगे नहीं बढ़ पाता है और उसको डेरे या आश्रम तक ले जाने वाले व्यक्ति के प्रभाव के चलते वह वहां के पीठाधीश को अपने हर कष्ट का समाधान मानकर उनका अनुयायी बन जाता है. यहाँ पर यह विचार करने लायक है कि जो खुद अपनी परिस्थितियों से ऊबा और परेशान है वह किस तरह से अपने लिए सही गलत का चुनाव कर पाने में सफल हो सकता है ? ऐसी परिस्थिति ही उसे इस तरह से डेरों और आश्रमों तक ले जाने का काम बहुत आसानी से करती है जिसके बारे में उसे केवल अच्छी बातें ही बताई जाती हैं.
भारत प्राचीन समय से ही धर्म प्रधान कम धर्म भीरु अधिक रहा है और यह स्थिति कामबेश पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की कही जा सकती है तो ऐसी परिस्थिति में हमारे यहाँ जिस तरह से आश्रमों और अखाड़ों के साथ डेरों में ऊंचे स्तर की राजनीति चलती रहती है उसका दुष्प्रभाव भी इन सगठनों पर पड़ता ही रहता है जिससे निपटने के लिए इनके समाज या सरकार के पास कोई कारगर रास्ता नहीं होता है. बहुत बार योग्य उत्तराधिकारी के होने के बाद भी किसी ऐसे को पीठ पर बैठा दिया जाता है जो स्वभाव से शातिर और दूसरों पर नियंत्रण रखने की महत्वाकांक्षा को रखता है और यहीं से उस स्थान के उद्देश्यों में भटकाव शुरू हो जाता है. क्यों नहीं इन धार्मिक आश्रमों, अखाड़ों और डेरों के लिए भी एक धार्मिक प्रक्रिया का अनुपालन किया जाना आवश्यक होना चाहिए और उन पर सदैव ही सरकार और प्रशासन की नज़र भी होनी चाहिए ? जिस तरह से ये डेरे और अखाड़े विभिन्न समयों पर सरकारों के लिए बड़ी समस्या बनते रहे हैं तो उससे निपटने के लिए अब स्पष्ट रूप से कानून भी बनाया जाना चाहिए और स्थानीय एसडीएम / डीएम स्तर के अधिकारी को डेरे के आकार के अनुरूप इसका पदेन सदस्य बनाया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए जिससे इन स्थानों की गतिविधियों के बारे में सरकार के पास एक समग्र जानकारी सदैव उपलब्ध रहे और आवश्यकता पड़ने पर उसका उपयोग भी किया जा सके.
लम्बे समय से लाखों अनुयायियों वाले किसी डेरे, आश्रम या अखाड़े में प्रमुख के बदलने के साथ वहां काम करने वालों की निष्ठाएं बदलती रहती हैं और पहले महत्वपूर्ण काम सँभाल रहे लोगों को महत्वहीन कर दिया जाता है जिससे भी संकट बढ़ता है और अपने वर्चस्व को बनाये रखने के लिए विरोधियों की हत्याएं तक की जाती हैं जिनका धर्म से कोई वास्ता नहीं होता है पर यह सब अनुयायियों की नज़रों से बहुत दूर होता है इसलिए उनकी श्रद्धा में कोई कमी दिखाई नहीं देती है और वे अपने गुरु के लिए कुछ भी करने के लिए सदैव तैयार रहते हैं. इन डेरों को मानने वालों को केवल अपनी श्रद्धा से ही मतलब होता है और वे हर परिस्थिति में अपने गुरु को सही और सच्चा मानते रहते हैं जिसका उनको बहुत नुकसान भी होता है. वर्तमान में डेरा सच्चा सौदा के साथ उसके वर्तमान प्रमुख गुरमीत राम रहीम की हरकतों के चलते जो कुछ भी हुआ उसके लिए डेरे के अनुयायियों को गलत नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वे केवल श्रद्धा भाव से ही यहाँ आकर या अपने शहरों में डेरे का प्रचार प्रसार करते रहते थे. गुरु पद पर बैठे हुए इस तरह के किसी व्यक्ति का भंडा फोड़ होने की दशा में डेरे के द्वारा चलाये जा रहे अच्छे कार्यों पर कोई दुष्प्रभाव न पडे इसके लिए हरियाणा सरकार को अविलम्ब एक व्यवस्था बनानी होगी जिससे गुरमीत राम रहीम के डेरा सँभालने से पहले जुडी हुई डेरे के साख के कारण जुड़े हुए परिवारों को कोई समस्या न हो जो सेवा भाव से डेरे का काम किया करते थे. जिस तरह से यह भी सामने आ रहा है कि डेरे के ५०० करोड़ रुपयों के उत्पाद भी बनाये जाते थे तो उससे जुड़े लोगों को रोज़गार देने या उसे बचाये रखने के लिए अविलम्ब कार्यवाही करने की आवश्यकता है साथ ही डेरे से जुडी शिक्षण संस्थाओं, औषधि केंद्रों के नियमित सञ्चालन हेतु आवश्यक धनराशि का आवंटन भी प्रति माह सुचारु रूप से हो सके इस बात पर उचित ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है. डेरे के विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों और पढ़ाने वाले लोगों के सामने किसी तरह का आर्थिक संकट भी न उत्पन्न हो इस पर भी विचार किया जाना चाहिए. हाई कोर्ट के निर्देशों के अनुसार डेरे के खातों के संचालन पर रोक और संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए स्पष्ट नीति बनाई जानी चाहिए साथ ही डेरे के माध्यम से चल रहे सामाजिक कार्यों को लगातार जारी रखने हेतु एक उचित निर्देश भी हाई कोर्ट से प्राप्त किया जाना चाहिए जिससे एक व्यक्ति की गलतियों की सजा उन लोगों को न मिले जिसमें वे शामिल भी नहीं थे. साथ ही डेरे की संचालन समिति को भी परिवारवाद को बढ़ाने के स्थान पर डेरे के किसी और स्वीकार्य संत को आध्यात्मिक प्रमुख बना कर डेरे का काम शुरू करने का विकल्प भी खोलने के लिए हाई कोर्ट से उचित आदेश प्राप्त करने चाहिए.

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