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देश में ऊंची राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक पहुँच रखने वाले लोगों के बच्चों द्वारा सदैव ही सार्वजनिक रूप से कुछ न कुछ ऐसा ही किया जाता रहा है, जिससे समाज के व्यवहार और पहुँच के चलते उसकी बदलती प्राथमिकताओं को आसानी से समझा जा सकता है.
चंडीगढ़ की घटना को राजनीतिक चश्मे और राजनीतिक लाभ-हानि से दूर करके यदि निष्पक्षता के साथ देखा जाये, तो समाज के उस स्वरूप को ही उकेरती है, जो हमारे देश के प्राचीन सूत्र “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” की खुलेआम खिल्ली उड़ाता हुआ सा लगता है.
प्राचीन भारत में नारी के सम्मान की बात को देवताओं के वास से जोड़ा गया था, जिसके दो तात्पर्य भी हो सकते हैं कि पुरुष प्रधान समाज में या तो उस समय भी महिलाओं की स्थिति आज जैसी ही थी, जिसे रोकने के लिए वातावरण को अच्छा बनाने की कोशिश के रूप में यह भरोसा दिलाया गया हो कि नारियों के सम्मान वाले स्थान पर देवता वास करते हैं.
दूसरा यह हो सकता है कि उस दौर में महिलाएं इतनी शक्तिशाली और संपन्न थीं कि उनकी स्थिति को बनाये रखने के लिए इस सूत्र को बनाया गया हो, जिससे समाज में सभी लोग नारियों के सम्मान के बारे में एक जैसा सोचने की शक्ति विकसित कर सकें.
जैसा कि आसानी से देखा और समझा जा सकता है कि इस मामले में भी राजनीतिक पाले खींचे जा चुके हैं. एक बिगड़े और भटके हुए लड़के की सजा हमेशा की तरह उसके पिता को देने की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं, जबकि ऐसे समय में सबसे पहले मामले को इस तरह से देखा जाना चाहिए कि लड़की और उसके परिवार को किसी भी स्तर पर मानसिक रूप से भी किसी प्रताड़ना का शिकार न होना पड़े.
एक पढ़ी-लिखी बहादुर और सक्षम लड़की होने के चलते उसने अपने को सुरक्षित रखने में सफलता पायी, पर यदि यह घटना देश के किसी छोटे स्थान की होती, तो चाहे देश का कोई भी स्थान होता, वहां लड़की की अस्मिता और जान दोनों पर ही संकट आ गया था.
चंडीगढ़ पुलिस की प्रारंभिक तेज़ी ने भी लड़की के हौसले को बढ़ाया और उसे बचने में पूरी मदद की, पर मज़बूत राजनीतिक मामला सामने आने पर पुलिस को भी अपने क़दमों की गति को संतुलित करना पड़ा, जिसके लिए आज वह विपक्षी दलों के निशाने पर आ गयी है.
निश्चित तौर पर ऐसी घटनाओं में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए, पर छेड़खानी करने वाले लड़के की किस्मत ख़राब थी कि जिस लड़की को उसने घेरा वह एक वरिष्ठ अधिकारी की बेटी थी, जिससे लड़के, उसके परिवार, पिता और उनकी राजनीतिक विरासत पर ही बड़ा प्रश्नचिह्न लगाया जाने लगा.
चंडीगढ़ पुलिस का यह कहना बिलकुल सही है कि इस केस का मीडिया ट्रायल नहीं होना चाहिए, पर आज देश में मीडिया ने जिस तरह से पुलिस से आगे निकलकर हर सही-गलत मुद्दे की विवेचना शुरू कर दी है, तो उस स्थिति में कोई भी इस बात को नहीं रोक सकता कि मीडिया इस मामले से दूर ही रहे?
आज हमारे समाज और राजनीतिक दलों से जुड़ी महिलाओं को क्या हो गया है, यह सोचने का विषय है. क्योंकि भाजपा की तरफ से उसकी महिला नेता और प्रदेश स्तर के नेताओं ने पीड़ित लड़की की कुछ तस्वीरें पोस्ट कर उस पर संदेह खड़ा करने की कोशिश की है, जिनका किसी भी स्तर पर समर्थन नहीं किया जा सकता.
चंडीगढ़ और हरियाणा भाजपा अध्यक्ष के बेटे से जुड़ा मामला होने के कारण आज विपक्षी दलों को अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का अवसर भी मिल रहा है, जबकि उनके राज में भी इस तरह की घटनाओं की कोई कमी नहीं रहा करती थी.
अच्छा हो कि ऐसी किसी भी घटना पर राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक पहलुओं को अनदेखा करते हुए सिर्फ कानून को अपना काम करने दिया जाय, जिससे दोषियों को कड़ी सजा मिल सके. पर दुर्भाग्य से सत्ता में बैठे हुए दल और विपक्ष में संघर्ष कर रहे दलों के लिए महिलाओं का सम्मान भी ऐसा मुद्दा है, जो महिलाओं से कम उनकी राजनीतिक प्राथमिकताओं के आधार पर अधिक तय किया जाता है, जिसका दुष्परिणाम पूरे देश की महिलाओं को कभी न कभी भुगतना ही पड़ता है.
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