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यूपी- बिजली सुधार चुनौतियाँ और संभावनाएं

***.......सीधी खरी बात.......***
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उत्तर प्रदेश में बिजली की मांग और आपूर्ति में बढ़ते फासले के बीच जिस तरह के कदम लगातार उठाये जाने चाहिए थे उनमें पिछले २५ वर्षों में निरंतर उपेक्षा किये जाने के कारण पिछले दशक में संभवतः प्रदेश की अधिकांश जनता को केवल ८ घंटे बिजली से काम चलना पड़ा था. यह प्रदेश की सरकारों और जनता के लिए बहुत ही चुनौती भरा काम था और स्थिति इतनी बिगड़ गयी थी कि राज्यपाल शास्त्री को यहाँ तक कहना पड़ा था कि यह सब पूर्व की सरकारों के पापों का फल है. आखिर दुनिया के कई देशों से अधिक आबादी वाला प्रदेश और उसकी चुनी हुई सरकारें बिजली की आपूर्ति के मामले में क्यों बुरी तरह से विफल हुई आज इस पर विचार किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि आज़ादी के बाद से देश में एक परंपरा सी चली आ रही थी कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए सरकारों के पास सदैव ही प्राथमिकता के आधार पर धन उपलध रहा करता था जिससे नए बिजली संयंत्र लगाने का काम लगातार चलता ही रहता था. नब्बे के शुरुवाती दशक से जिस तरह से प्रदेश में सामजिक विभाजन शुरू हुआ उसके बाद जनता भी धर्म और जाति आधारित चुनावों की तरफ मुड़ गई जिससे मूलभूत ढांचे को निरंतर विकसित करने की प्रक्रिया को लगातार बाधित किया गया और बहुत सारे अन्य क्षेत्रों में भी प्रदेश अपने उन पायदानों से भी नीचे चला गया जहाँ कभी वह आसानी से हुआ करता था.
संप्रग की पिछली केंद्र सरकार द्वारा पूरे देश में विद्युतीकरण की प्रतिशतता को बढ़ाये जाने के लिए राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम को लागू किया गया पर इसमें जिस तरह से राज्य सरकारों की सहमति और भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी उसके चलते तत्कालीन मायावती सरकार ने इस दिशा में नगण्य काम किया जिससे आधारभूत पारेषण और वितरण का जो नवीन ढांचा खड़ा किया जाना था वह पूरी तरह से बहुत पीछे छूट गया. अखिलेश सरकार आने के बाद उनकी तरफ से निश्चित तौर पर तहसील मुख्यालयों पर १३२ केवीए की क्षमता बनाये जाने को लेकर काम शुरू किया गया जिसके बाद प्रदेश के कुछ हिस्सों में यह काम पूरा होने के बाद वोल्टेज और बिजली की उपलब्धता आदि में गुणात्मक सुधार भी हुआ. जब तक यह काम पूरी तरह से नहीं हो जाता है तब तक प्रदेश में स्थिति पूरी तरह से सुधरने वाली भी नहीं है क्योंकि आज प्रदेश में बिजली की उत्पादन तो क्षमता के अनुरूप या उससे अधिक हो रहा है पर ऊर्जा संयंत्रों से उचित क्षमता की पारेषण लाइन उपलब्ध न होने के कारण उनका पीक ऑवर्स में भी पूरा उपयोग नहीं किया जा सकता है. निश्चित तौर पर अखिलेश सरकार ने बिजली की उपलब्धता के लिए ठोस उपायों की शुरुवात की थी जिसके चलते आज आदित्यनाथ सरकार को उसे गति देने की आवश्यकता भर है. केंद्र की सबको बिजली देने की योजना में यूपी को संतृप्त किए बिना लक्ष्य को नहीं पाया जा सकता है और यह अच्छा ही है कि अब सरकार ने एक पूर्णकालिक विद्युत मंत्री की नियुक्ति कर दी है जिससे उनके लिए पूरे प्रदेश में काम करना आसान होने वाला है.
यूपी में बिजली की चोरी सदैव ही सबसे बड़ा मुद्दा रहा है और पिछली सरकार में जिस तरह से हर ट्रांसफार्मर तक मीटरिंग की व्यवस्था को शुरू किया गया था अब उसे हर ट्रांसफार्मर तक पहुंचाए जाने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक निचले स्तर पर बिजली चोरी रोकने के लिए अधिकरियों और कर्मचारियों को उत्तरदायी नहीं बनाया जायेगा तब तक स्थिति को सुधारा नहीं जा सकता है. आज भी पूरे प्रदेश में अवैध रूप से बिजली को जलाया जा रहा है जिससे विभाग को राजस्व की हानि होती है और ईमानदार उपभोक्ताओं के लिए बिजली निरंतर मंहगी होती जा रही है. इसके साथ एक मुश्त समाधान जैसी योजनाओं से पूरी तरह बचा जाना चाहिए क्योंकि इससे ईमानदार और समय से बिल चुकाने वाले उपभोक्ताओं के लिए नुकसान ही होता है तथा जो लोग विभाग पर बोझ बने रहते हैं उनके लिए सदैव ही छूट वाली योजनाएं सामने आती रहती हैं इससे जहाँ लोगों में समय से बिल जमा न करने की प्रवृत्ति बढ़ती है वहीं पूरी व्यवस्था पर कैंप आदि लगाने और अतिरिक्त काम करने का बोझ भी बढ़ता है. पावर कारपोरेशन ने जिस तरह से ऑनलाइन बिल के भुगतान की सेवा शुरू की है अब उसमें पंजीकृत उपभोक्ताओं को खुद ही रीडिंग भरने की छूट भी दी जानी चाहिए जिससे वे अपने बिल के लिए विभाग के कर्मचारियों की बाट न जोहते रहें ? आज भी अधिकांश स्थानों में बिजली का बिल समय से नहीं दिया जाता है जिससे उपभोक्ता चाहते हुए भी बिल का भुगतान नहीं कर पाते हैं आशा है कि सरकार इस दिशा में काम करने के बारे में सोचते हुए एक सरल एप्लीकेशन बनाएगी जिससे आम उपभोक्ता भी मोबाइल के माध्यम से अपने उपयोग की रीडिंग भर कर बिल का भुगतान करने में सक्षम हो सकेगा.
बिजली की चोरी रोकने के लिए पूरे प्रदेश में सभी स्थानों पर एक निश्चित समय सीमा देकर लोगों को अपनी दुकानों के लिए कनेक्शन लेने के लिए कहा जाना चाहिए और उसमें असफल होने के बाद उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही के बारे में सोचा जाना चाहिए. छोटे व्यापारियों के लिए वाणिज्यिक वर्ग में आधा किलोवॉट की नयी श्रेणी भी शुरू की जानी चाहिए क्योंकि बहुत सारी ऐसी दुकानें भी होती हैं जिनमें कोई लोड नहीं होता और एक किलोवॉट का कनेक्शन लेना व्यापारियों के लिए कठिन होता है जिससे वे अपने आसपास के दुकानदारों के साथ सांठगांठ करके बिजली जलाने का काम भी करने को मजबूर हो जाते हैं. विद्युत दरों में भी नए सिरे से बदलाव करने की आवश्यकता है और मीटरिंग को वैकल्पिक परिवर्तनीय लोड के साथ किये जाने के बारे में सोचना चाहिए जिससे हर उपभोक्ता अनावश्यक रूप से लोड के बोझ से न मारा जाये. प्रति माह रीडिंग लेते समय उस माह के अधिकतम लोड के अनुसार उपभोक्ता से फिक्स चार्ज लिया जाना चाहिए जिससे स्वयं उपभोक्ता भी बिजली बचाने के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू कर सके. उदाहरण के तौर पर इस सेवा के लागू होने पर किसी उपभोक्ता का बिल मौसम के अनुसार परिवर्तित होता रह सकता है क्योंकि अलग अलग मौसम में बिजली की आवश्यकताएं भी बदल जाती हैं साथ ही मिनिमम बिल जैसे उपभोक्ता विरोधी उपायों से पूरी तरह से बचने की आवश्यकता भी है क्योंकि फिक्स चार्ज मिनिमम बिल आदि के नाम पर अभी तक सभी निगम अपनी नाकामियों को उपभोक्ताओं से वसूलने के में लिप्त दिखाई देते हैं.

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