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चुनाव सुधार-इन्टरनेट और मतदान

***.......सीधी खरी बात.......***
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चुनाव सुधारों के साथ ही बेहतर मतदान प्रतिशत में जिस तरह से हमारे देश ने पिछले ढाई दशकों में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है उसे किसी भी स्तर पर कम नहीं कहा जा सकता है फिर भी इतनी बड़ी आबादी में हर बूथ पर लगभग १५०० अधिकतम मतदाताओं से सीमित समय में मतदान करवा पाना आयोग के साथ मतदान कर्मियों के लिए भी एक बड़ी चुनौती के रूप में बचा हुआ है. देश की घनी आबादी वाले राज्यों में आज भी कुछ मतदान केंद्रों पर इतने अधिक मतदाता हैं कि समय सीमा में उनसे वोट डलवाने में हर बार समस्या ही होती रहती है. इससे निपटने के लिए जहाँ हज़ार की आबादी पर मतदान केंद्र सुनिश्चित किया जाना चाहिए वहीं मतदान कर्मियों को भी इस बात के लिए जागरूक किया जाना चाहिए कि सम्पूर्ण काम तेज़ी से किया जाये जिससे मतदान में लगातार तेज़ी बनी रहे और मतदान के प्रतिशत को भी बढ़ावा दिया जा सके. इसके अतिरिक्त कुछ क्षेत्रों में प्रायोगिक तौर पर इन्टरनेट से मतदान करवाने की प्रक्रिया पर भी विचार किया जाना चाहिए जिससे जो आम लोग इन्टरनेट का उपयोग करते हैं वे इसका उपयोग करके देश के सुरक्षित भविष्य के लिए अपनी भागीदारी भी सुनिश्चित कर सकें और भीड़ का बहन बनाकर मतदान न करने वालों को भी चुनावी प्रक्रिया में सफलता से जोड़ा जा सके.
इसके लिए तैयारियों के रूप में सबसे पहले वोटर आईडी को आधार संख्या से जोड़ना अनिवार्य किया जाना चाहिए जिससे फ़र्ज़ी रूप से दो जगह वोट डालने और इन्टरनेट पर पहचान को सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाये जा सकें. इन्टरनेट से चुनाव की तैयारियों के लिए आयोग को नेट पर ही लोकसभा/ विधान सभा/ स्थानीय निकाय/ पंचायतों के लिए क्षेत्र के अनुसार वेबसाइट्स बनानी होंगीं जिन पर अंतिम रूप से वोटिंग मशीन की जो प्रतिकृति हो उसे प्रदर्शित किया जाये जिससे इच्छुक मतदाता इस पेज पर जाकर अपना वोट डाल सकें. इसके बाद जो भी मतदाता इस सुविधा का उपयोग करना चाहता हो उसके लिए मतदान शुरू होने से तीन दिन पूर्व ही अपने आधार से जुड़े मोबाइल या इन्टरनेट के माध्यम से सम्बंधित क्षेत्र की वोटिंग के लिए पंजीकरण करना भी आवश्यक हो इस पंजीकरण के साथ ही मतदाता को उसके पंजीकृत मोबाइल पर एक ओटीपी भेजा जाये जिसका उपयोग मतदान के समय किया जाये तथा केवल इससे ही नहीं वरन इन्टरनेट से मतदान करने के समय अपनी वोटिंग मशीन का बटन दबाने के पूर्व एक और ओटीपी भेजा जाये जिसके भरने के बाद ही वोट को वैध माना जाये वरना उस वोट की गिनती नहीं होनी चाहिए. इस तरह की दोहरी व्यवस्था से जहाँ फ़र्ज़ी रूप से मतदान को रोकने में मदद मिलेगी वहीं मतदाता को भी यह आश्वासन मिल जायेगा कि उसका मतदान सुरक्षित और गोपनीय तरीके से हो चुका है. मतदान के बाद मतदाता को उसके वोट के बारे में एक सन्देश भेजा जाये जिसमे यह बताया जाये कि उसका वोट किस प्रत्याशी को गया है जिससे मतदाता के अधिकार भी सुरक्षित रह सकें.
इसके साथ ही आधार से जुड़े मतदाताओं के लिए आने वाले समय में जब देश भर में ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क और भारत ब्रॉडबैंड सेवाएं पूरी तरह से चालू हो जायेंगीं तब मोबाइल वोटिंग वैन/ बूथ के बारे में भी सोचा जा सकता है जिसमें वोटिंग मशीन में बायोमेट्रिक व्यवस्था भी की जाए और इन्टरनेट से जुड़े होने के कारण यह मतदाता की पहचान को सुनिश्चित करने के बाद उसे वोट डालने की अनुमति दे सकता है जिससे सुरक्षा और अन्य खर्चों में कटौती के साथ बहुत कुछ तेज़ी से सुरक्षित मतदान को किया जा सकता है. एक वैन की सुरक्षा में उतने पुलिस बल की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी और न ही किसी अन्य तरह के मतदान कर्मियों की क्योंकि एक बार जिसका वोट पड़ जायेगा वह दोबारा वोट नहीं डाल सकता है. एक सम्भावना यह भी हो सकती है कि पहले इन्टरनेट से वोट डालने के बाद मतदाता बूथ पर जाकर भी वोट डालने का प्रयास करे तो उस स्थिति से निपटने के लिए इन्टरनेट की वोटिंग बूथ की वोटिंग बंद होने के बाद पांच बजे से ही खोली जा सकती है जिससे इस समस्या से भी बचा जा सके. इस वोटिंग को अगले दिन शाम पांच बजे तक खुला भी रखा जा सकता है क्योंकि इन वोटों की गिनती मशीन से अलग इन्टरनेट के माध्यम से ही होगी. इस पूरी प्रक्रिया में निश्चित तौर पर राजनैतिक दल हो हल्ला ही मचाने वाले हैं क्योंकि उनको यही लगता रहेगा कि इसका दुरूपयोग होगा जबकि इनकी तरफ से सबसे पहले वोटिंग मशीनों के उपयोग को शुरू करने के समय भी यह सब कहा गया था और उनका यह संदेह पूरी तरह से निराधार ही साबित हुआ है. इसलिए अब चुनाव आयोग को नेट आधारित डिजिटल चुनाव के बारे में भी विचार करना चाहिए और तकनीक का पूरा लाभ आम मतदाताओं तक भी पहुँचाना चाहिए.

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