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चीनी सामान का बहिष्कार ?

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों के लगातार होते हमलों के और चीन द्वारा पाकिस्तान में बैठे कश्मीर की आज़ादी का समर्थन करने वाले जेहादी संगठनों के समर्थन किये जाने के बाद जिस तरह से आम जनमानस में चीन में बने समान का बहिष्कार करने की इच्छा बलवती हो रही है उसे देखते हुए व्यापारिक स्तर पर चीन के साथ अब भारत के रिश्ते बिगड़ने ही वाले हैं. अभी तक भारत चीन में बने हर तरह के सामान का प्रमुख बाजार बना हुआ है उस परिस्थिति में यदि आम जनता की तरफ से इस पर स्वेच्छा से रोक लगायी जाती है तो यह स्थिति मोदी सरकार के लिए चीन से संबंधों में विकट परिस्थियों को उत्पन्न कर सकती है जिससे निपटने के लिए सरकार के पास संभवतः कोई मार्ग शेष नहीं बचने वाला है. बेशक राजनीति और व्यापार अपनी जगह पर हैं पर दुनिया को यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वही भारत है जिसके नागरिकों ने १९६५ की लड़ाई में पीएम शास्त्री के आह्वाहन पर एक समय का खाना भी छोड़ दिया था तो आज जब स्थितियां देश के पक्ष में झुकी हुई हैं तो किसी देश विशेष के सामान का बहिष्कार करना कोई मुश्किल काम भी नहीं है पर सरकार की स्थिति इस पूरे प्रकरण में अजीब सी होने वाली है क्योंकि उसकी तरफ से देश की आर्थिक प्रगति के लिए भरपूर प्रयास किये जा रहे हैं.
पूरी दुनिया में कम टिकाऊ साबित होने बाद भी चीनी सामान अपनी सस्ती कीमत के दम पर आम लोगों तक पहुँच बना सकने की क्षमता के चलते मज़बूत पैठ बनाये हुए हैं जिससे अन्य देशों के व्यापारिक हितों पर गंभीर चोट पहुँच रही है इस परिस्थिति में यदि भारत जैसे बहुत बड़े बाज़ार में चीन की पहुँच राष्ट्र के नाम पर कम होती है तो यह उसके व्यापारिक हितों के खिलाफ भी जाने वाला हो सकता है इसलिए ही चीन की तरफ से विशेषज्ञों ने स्टील आदि उद्योगों पर एंटी डंपिंग शुल्क लगाकर भारत द्वारा अपने उद्योगों की रक्षा करने की कोशिशें का विरोध भी शुरू कर दिया हैं. ऐसे में यदि आम भारतीय भी पाकिस्तान का आँख मूंदकर समर्थन करने के कारण चीन से नाराज़ होकर उसके यहाँ बनी वस्तुओं का उपयोग चरणबद्ध तरीके से बंद करना शुरू कर दे तो चीन के लिए एक बड़ा संकट भी खड़ा हो सकता है क्योंकि दुनिया भर में आर्थिक/ व्यापारिक गतिविधियां वैसे भी कम ही चल रही हैं तो उस परिस्थिति में चीन के लिए इतना बड़ा नया बाज़ार खोज पाना काफी मुश्किल भरा काम भी हो सकता है जिसके चलते वह भारत पर लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में दबाव बना सकता है.
यह उचित भी है कि चीन का पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए भारत को सभी तरह के विकल्पों पर विचार करना आवश्यक है पर अति उत्साह में क्या हम अपने व्यापारियों का ही अहित नहीं करने जा रहे हैं ? उरी हमले के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियों में जिस स्तर पर भारत में पाक के खिलाफ आम लोगों का गुस्सा चरम पर है उसे कम करने के लिए ही सर्जिकल स्ट्राइक के भरपूर प्रचार के माध्यम से सरकार ने अपने प्रयास कर ही दिए हैं उसके बाद अब जिस तरह से भारत की जनता पाक और चीन के विरुद्ध किसी भी तरह के संबंधों पर पुनर्विचार के लिए अड़ सी गयी है तो उसमें सरकार के चाहने या न चाहने का कोई अंतर नहीं पड़ने वाला है. दीवाली के लिए जिस तरह से व्यापारियों ने अपने गोदामों को चीन के सामान से भर लिया है और उसमें से बहुत सा हिस्सा खुदरा व्यापारियों तक पहुँच भी गया है उससे यह सन्देश समझना चाहिए कि चीन ने तो इसमें लाभ कमा लिया है पर अब बहिष्कार से केवल हमारे अपने लोगों को ही हानि पहुँचने वाली है. इस वर्ष भी थोड़ी मात्रा में ही सही अपने व्यापारियों का समर्थन और चीन का विरोध करते हुए आमलोगों को अपने लोगों के हितों का भी ध्यान रखना चाहिए और जो चीनी सामान बाज़ार में उपलब्ध है उसकी खरीद पर उतनी सख्ती नहीं करनी चाहिए और व्यापारियों को भी यह समझना चाहिए कि अब चीन के सस्ते सामान के स्थान अपर कुछ मंहगा साबित हो रहा भारतीय सामान ही प्राथमिकता में रहने वाला है इसलिए आने वाले समय में उन्हें भी चीन के सामान से किनारा करने के बारे में गंभीरता से सोचना ही होगा.

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