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रक्षा मामले और मीडिया

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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भारत की तरफ से की गयी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जिस तरह से भारतीय मीडिया में इसको लेकर हर सीमा का उल्लंघन किया जा रहा है क्या उस पर भी किसी की निगाह जा रही है क्योंकि देश की तरफ से पाकिस्तान को सबक सिखाने के उद्देश्य से की गयी इस कार्यवाही ने जहाँ पूरे देश में संतोष का माहौल बनाया है वहीं मीडिया में इस बात को लेकर भी एक तरह से प्रतिस्पर्धा भी है कि कौन नयी जानकारी को अपने यहाँ ब्रेक करता है ? मीडिया का लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान होता है और इस बात से कोई भी इंकार नहीं कर सकता है पर रक्षा संबंधी मामलों में जिस तरह से मीडिया की तरफ से बेहद गैर ज़िम्मेदाराना रवैया अपनाया जा रहा है उससे किसका लाभ होने वाला है और क्या कुछ मामलों में दिखाई जा रही जानकारी दुश्मनों के लिए सहायक नहीं हो सकती है ? वर्तमान परिस्थिति में पाकिस्तान की जो स्थिति बन चुकी है है उसमें वह किसी भी तरह के प्रत्यक्ष युद्ध से पूरी तरह दूर ही रहने वाला है क्योंकि कारगिल युद्ध की तरह एक बार उस पर फिर से अमेरिका का दबाव बनेगा और युद्ध को रोकने के लिए उसे ही फिर से झुकना होगा. नवाज़ शरीफ और पाक सेना दोबारा इस तरह की किसी भी स्थिति का सामना नहीं करना चाहती है तो वह अपने स्लीपर सेल के माध्यम से फिलहाल भारत में हमले करवाने की कोशिशें ही कर सकते हैं.
भारत पाक में इस तरह का तनाव बढ़ने पर सदैव ही सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों के लिए समस्याएं बहुत अधिक बढ़ जाती हैं क्योंकि पाकिस्तान की तरफ से की जाने वाली अकारण गोलीबारी के चलते इन लोगों को अपने घरों से पलायन करना पड़ता है. इस पलायन को जिस तरह से टीवी पर दिखाया जा रहा है उससे सम्पूर्ण भारत के आम जन-मानस में यही सन्देश जाता है कि पाक से जल्दी ही लड़ाई होने वाली है तभी सरकार इतने लोगों को विस्थापित कर रही है ? सरकार हर स्थिति पर विचार करने के बाद उचित रक्षात्मक कदम उठा भी रही है पर इसमें जिस स्तर के समाचारों को दिखाया जाना चाहिए वह पूरी तरह से नदारद भी है. जिस तरह से कुछ चैनेल सीमावर्ती क्षेत्रों से निकाले गए लोगों को ठहराने की स्थानों को भी सीधे दिखा रहे हैं क्या वे उससे देश की सुरक्षा को भी खतरा नहीं पैदा कर रहे हैं इन जगहों के नाम खुलेतौर पर बोलकर क्या वे पाकिस्तान की एक तरह से मदद ही नहीं कर रहे हैं जिससे इन नागरिकों को खतरे वाले क्षेत्रों से हटाये जाने का मूल उद्देश्य ही विफल हो सकता है ? राज्य सरकारें और केंद्र सरकार जिस तरह से नागरिकों को किसी भी विपरीत परिस्थिति से बचाने के लिए प्रयासरत हैं तो क्या ये चैनल वाले केवल खबर के लिए सुरक्षा को खतरे में नहीं डाल रहे हैं ?
अब समय आ गया है कि समाचार चैनेल हर बात को ब्रेक करने के स्थान पर उसकी संवेदनशीलता को समझते हुए ही इस तरह की ख़बरों का प्रसारण करने की समझ विकसित करें और यदि कोई चैनेल इसमें असफल रहता है तो सरकार को उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही भी करनी चाहिए जिससे दूसरे भी इस तरह की गड़बड़ी करने से बच सकें. खबरों की इस दौड़ में आज किसी के पास यह सोचने का समय ही नहीं बचा है कि क्या दिखाया जाना चाहिए और क्या नहीं पर सरकार इस मामले में कम से कम चुप नहीं रह सकती है. देश की महत्वपूर्ण ख़बरों को दिखाया जाना चाहिए पर क्या उसमें इतनी संवेदनशील खबरों को इस तरह से दिखाया जाना आवश्यक है जिसमें कोई चिल्लाता हुआ संवाददाता सीमा की कंटीली बाड़ को दिखाए और साथ ही बिना सोचे समझे यह भी बता दे कि जिन लोगों को सुरक्षित स्थानों की तरफ ले जाया जा रहा है वे स्थान कहाँ पर हैं ? आज सूचना प्रौद्योगिकी के समय में इन ठिकानों पर दुश्मन द्वारा साधा हुआ हमला कर आम नागरिकों को भी निशाने पर लिया जा सकता है इसलिए सभी को इस मामले में संयम से काम लेना चाहिए तथा सरकार को भी इसके लिए अविलंब दिशा निर्देश जारी करने चाहिए.

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