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सैन्य अभियान और सरकार

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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पाकिस्तान की तरफ से छेड़े गए छद्म युद्ध से निपटने की तरकीबें खोजने में व्यस्त भारत सरकार, रक्षा विशेषज्ञ और सेना के सामने पहले से ही कम गंभीर चुनौतियाँ नहीं है पर जिस तरह से सोशल मीडिया में कुछ समूहों और लोगों की तरफ से लगातार काग़ज़ी दबाव बनाने की कोशिशें की जा रही हैं उसके बाद इन सभी लोगों के लिए और भी अधिक मुश्किलें सामने आने वाली हैं. यह सही है कि पाकिस्तान और कश्मीर मामले पर संघ के सभी अनुषांगिक संगठनों और भाजपा द्वारा देश में जिस तरह का माहौल लगातार बनाया जाता रहा है आज उसके दबाव को खुद मोदी सरकार, संघ और भाजपा अच्छे से महसूस कर रहे हैं. विपक्ष में बैठकर ताना मारना और सरकार के खिलाफ इतने महत्वपूर्ण मुद्दों पर लगातार बयानबाज़ी और निचले स्तर की राजनीति के सहारे यह साबित करने की कोशिशें करने वाली भाजपा और संघ आज चुप हैं क्योंकि उनको खुद भी समझ नहीं आ रहा है कि आखिर वे कौन से तात्कालिक कदम उठाये जाएँ जिनके माध्यम से पाकिस्तान पर आम जनमानस की भावनाओं के अनुरूप दबाव बनाया जा सके. कुछ लोगों द्वारा जिस तरह से सीमा पार भारतीय सेना के द्वारा कार्यवाही किये जाने की अफवाह फैलाई जा रही है वह अब पूरी तरह से झूठ साबित हुई है और सेना की तरफ से भी इस बात का बाकायदा खंडन भी किया गया है कि उसने एलओसी के पार कोई कार्यवाही नहीं की है.
हर तरह से तबाह पाकिस्तान के सामने आज कितने विकल्प शेष हैं यह पूरी दुनिया भी जानती है और यदि विश्व समुदाय इस बारे में बहुत अधिक आश्वस्त है तो उसके पीछे भारत की सुलझी हुई सोच भी बहुत बड़ा काम कर रही है. पाकिस्तान के खिलाफ यदि युद्ध करना है तो यह सेना से विचार विमर्श करने या आवश्यक होने पर विपक्षी दलों से विमर्श के बाद मोदी सरकार ही करेगी क्योंकि देश ने उनको अपना विश्वास सौंप हुआ है पर किसी भी दशा में अनावश्यक बातों पर ध्यान देकर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिशों का हर स्तर पर विरोध होना चाहिए और जिन समूहों और सोशल मीडिया के पन्नों पर भड़काने वाली बातें की जा रही हैं उन पर भी सरकार को अपने स्तर से कार्यवाही करने के बारे में सोचना चाहिए. देश की सुरक्षा व्यवस्था कुछ मूर्खों के अनुसार नहीं चल सकती है और सेना के आधिकारिक पेज के अतिरिक्त उससे जुडी किसी भी गतिविधि को सोशल मीडिया में साझा करने वाले हर व्यक्ति को चेतावनी भी दी जानी चाहिए भले ही कितने प्रभावशाली क्यों न हों. सेना की सामान्य गतिविधि से जुडी कुछ तस्वीरों को कुछ लोगों ने इस तरह से सोशल मीडिया पर साझा करना शुरू कर दिया है जैसे उसके सञ्चालन की ज़िम्मेदारी सरकार ने इन छद्म राष्ट्रवादियों के हाथों में ही सौंप रखी है.
स्मार्ट फ़ोन और व्यवसाय से जुड़े कार्यों तथा इन्टरनेट के सबके लिए उपलब्ध हो जाने के चलते आज ऐसे लोगों की संख्या बहुत हो चुकी है जिन्हें यह पता ही नहीं है कि सोशल मीडिया पर क्या शेयर करना चाहिए और क्या नहीं ? यह स्थिति बन्दर के हाथ में उस्तरे की तरह ही है पर कुछ मामलों में इसके लिए मोदी सरकार की नीतियां भी ज़िम्मेदार कही जा सकती हैं क्योंकि सरकार समर्थक टीवी चैनेल लगातार सीमा पर जाकर ऐसी संवेदनशील रिपोर्टिंग करते हुए देखे जा सकते हैं जिसका कोई मतलब नहीं है. सीमा पर बीएसएफ या सेना की क्या स्थिति है और किस तरह के सुरक्षा उपकरणों को वहां पर लगाया गया है आज यह सब दिखाया जाना भी रिपोर्टिंग का हिस्सा हो गया है पर क्या सरकार और रक्षा मंत्रालय को इस बात का अंदाज़ा भी है कि इन सभी संचारों की आज लगातार नेट पर उपलब्धता बनी रहती है तो किसी विपरीत परिस्थिति में क्या देश के दुश्मन इस तरह की जानकारी को नेट से हासिल नहीं कर सकते हैं ? पीएम मोदी और उनकी सरकार प्रचार में बहुत भरोसा करती है और उनकी २०१४ की सोशल मीडिया टीम आज भी चुनावी मोड से बाहर नहीं आ पायी है क्योंकि अधिकांश मामलों में उसकी तरफ से ही ऐसी संवेदनशील जानकारियां ही नेट पर डाली जा रही हैं. अच्छा हो कि सरकार के इस मामले में आशानुरूप गंभीर न होने पर भी हम नागरिक पूरी तरह से सचेत रहें और इतने महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार पर दबाव बनाने के स्थान पर अपने आसपास इस बात पर ध्यान रखें कि कोई संदिग्ध हमारे समाज में घुसपैठ तो नहीं कर रहा है.

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