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कश्मीर में वार्ता की राह

***.......सीधी खरी बात.......***
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बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से ही पाक के इशारे पर सुलग रही कश्मीर घाटी के लिए अब केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग और मतभेदों के साथ वार्ता की बात भी सामने आ रही है. निश्छित तौर पर इस परिस्थिति से केवल कानून का सहारा नहीं लिया जा सकता है पर जिस तरह से इस महत्वपुर्ण मुद्दे पर भारत और केंद्र सरकार की छवि पर आंच आ रही है उस पर तत्काल कदम उठाये जाने की आवश्यक भी है. पहले गृह मंत्री राजनाथ सिंह की घाटी यात्रा और फिर सीएम महबूब मुफ़्ती का दिल्ली में पीएम मोदी से मिलना यही दर्शाता है कि अभी तक बातचीत का विरोध करने वाली राज्य सरकार ने भी अपने तेवरों में कुछ नरमी दिखाई है और अब वह केंद्र की तरह से भी कुछ आश्वासन चाहती है जिससे राज्य में इस गतिरोध को तोड़ा जा सके तथा जनजीवन को सामान्य किया जा सके. सीएम महबूबा का कहना कि केवल ५% लोगों ने पूरी घाटी को बंधक बना रखा है कहीं तक सही है पर बाकि ९५% अपनी जान बचाने के चक्कर में सामने आने से डर भी रहे हैं और जब तक यह डर कम नहीं होगा घाटी के आम लोग सामने नहीं आ पायेंगें.

अपने गठन के समय से बुरहान वानी के मारे जाने तक मोदी सरकार ने पाक और नवाज़ शरीफ से हर स्तर पर सम्बन्ध सुधारने की हर संभव कोशिशें की पर पाक की इन्हीं हरकतों के चलते उसे मुम्बई हमले के बाद अलग थलग करने के लिए ही मनमोहन सरकार ने किसी भी द्विपक्षीय मुद्दे पर हर स्तर पर पाक से वार्ताएं बंद कर दी थीं और केवल उन्हीं मंचों से पाक से सम्बन्ध रखा जा रहा था जो अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के अन्तर्गत आते थे. मोदी सरकार के सम्बन्ध सुधारने के प्रयासों को किसी भी तरह से गलत नहीं कहा जा सकता है पर केवल सुधारने के लिए ही अटल सरकार ने लाहौर बस यात्रा के साथ हो रही कारगिल घुसपैठ पर ध्यान नहीं दिया जिसकी बड़ी कीमत हमें अपने जवानों को खोकर चुकानी पड़ी थी. अब जिस तरह से पीडीपी-भाजपा सरकार में फिर से घाटी और जम्मू का बंटवारा दिखाई दे रहा है वह कहीं से भी मामले को शांत नहीं कर सकता है क्योंकि आज़ादी के बाद से ही कश्मीर को लेकर दिए गए अति उग्र राष्ट्रवादी बयानों में भाजपा ने जो कुछ भी कहा था आज वह उसे वार्ता के लिए राज़ी होने से रोक रहा है पर मोदी लीक से हटकर चलने में विश्वास करते हैं तो हो सकता है कि संघ और पार्टी की लाइन से हटकर वे अलगाववादियों से बात करने की पहल भी कर दें।

धर्मगुरु श्री श्री रविशंकर ने कल जिस तरह से बुरहान वानी के पिता के साथ आश्रम में ली गयी अपनी एक फोटो ट्विटर पर शेयर की उससे लगता है कि बातचीत के लिए मोदी सरकार मन बना चुकी है पर उसके लिए सही समय और शर्तों पर बात चल रही है. यदि श्री श्री के हस्तक्षेप से ही कश्मीर का गतिरोध टूट सकता है तो उसमें कोई बुराई नहीं है पर जिन राष्ट्रवादियों को बुरहान वानी के पिता के स्कूल मास्टर होने पर आपत्ति थी वे श्री श्री के साथ उनकी फोटो देखकर अवश्य ही निराश होंगें। सरकार की इस तरह की हर दिशा में की जा रही कोशिशों को सही कहा जा सकता है पर उसके मंत्रियों, संघ विचारकों और पार्टी पदाधिकारियों को भी यह समझना होगा कि अब भाजपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में है और देश के सामने आने वाली इस तरह की किसी भी समस्या का समाधान उसे ही करना है. एक तरफ पीएम, एचएम् और डीएम पीओके की बात करते हैं तथा कहते हैं कि कश्मीर कोई मसला ही नहीं है वहीँ विदेश राज्य मंत्री अकबर कहते हैं कि कश्मीर द्विपक्षीय मामला है और पाक इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाकर कुछ भी हासिल नहीं क्र सकता है. सरकार को इस तरह की राजनीति से आगे बढ़कर कश्मीर घाटी के लिए ठोस बातचीत का माहौल बनाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए.

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