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सोशल मीडिया और नारी सम्मान

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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पूरे विश्व में बढ़ते हुए इन्टरनेट के उपयोग के बाद आम लोगों को उपलब्ध होने वाले सोशल मीडिया पर किस तरह से बर्ताव किया जाना चाहिए इस बात को लेकर हम भारतीय बहुत ही अजीब सी सोच के साथ जीते प्रतीत होते हैं. मित्रों की सूची में या कहीं से भी महिलाओं की तरफ से मित्रता निवेदन ओर त्वरित उत्तर देने वाले या महिलाओं को ही मित्रता का अनुरोध भेजने वाले बीमार मानसिकता के लोगों को आज के समाज में खोज पाना कोई आसान काम नहीं है. सोशल मीडिया का अपनी राजनैतिक, सामाजिक भड़ास निकालने के लिए जिस हद तक दुरूपयोग किया जाने लगा है आज देश में साइबर क्राइम और कड़े कानून के बाद भी यह सब धडल्ले से चल रहा है जिसका तोड़ केवल समाज के पास ही हो सकता है क्योंकि कानून किसी को जबरिया नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ा सकता है. सामाजिक – राजनैतिक कार्यकर्ता, महिला नेता और साहित्यिक रूचि वाली शर्मिष्ठा मुखर्जी जो कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी भी हैं उनके फेसबुक पेज पर जिस तरह की बातें किसी बीमार मानसिकता वाले व्यक्ति द्वारा प्रदर्शित की गयी हैं उससे समाज के मानसिक स्तर का ही पता चलता है.
इनबॉक्स में इस तरह की बातें लिखने की हिम्मत करने वाले इस व्यक्ति को यह भी स्पष्ट रूप से पता ही होगा कि वह किससे ऐसी बातें कर रहा है फिर भी उसकी हिम्मत यहाँ तक बढ़ी हुई थी कि वह अश्लीलता की हद तक उतर गया क्योंकि उसे भी यह तथ्य अच्छी तरह से पता है कि अपनी बदनामी के चलते महिलाएं या लड़कियां ऐसी बातों को अक्सर छुपा ही जाती हैं और बीमार मानसिकता वालों के हौसले बुलंद हो जाते हैं. हो सकता है कि इस व्यक्ति ने शर्मिष्ठा मुखर्जी के बारे में अनजाने में ही ऐसा कहा हो पर बात वहीं पर आ जाती है कि आखिर पुरुष किसी भी महिला से इस तरह की बात कैसे कर सकता है ? इस बात से यह चिंता कम नहीं हो जाती है कि शर्मिष्ठा राष्ट्रपति की बेटी हैं बल्कि हमारी चिंताएं और भी बढ़ जाती हैं क्योंकि जब उनके साथ इस तरह की हरकत की जा सकती है तो आम महिलाएं और लड़कियों को इस सोशल मीडिया पर क्या क्या नहीं झेलना पड़ता होगा ? शर्मिष्ठा मुखर्जी के इस हौसले को आज सभी सलाम कर रहे हैं पर क्या समाज में इस तरह की बीमार मानसिकता के प्रभावी होने के बारे में समाज या हम में से कोई व्यक्ति कुछ सोचना चाहता है ? किसी पार्थ के लिए शर्मिष्ठा मुखर्जी एक महिला से अधिक कुछ भी नहीं हैं जहाँ पर वह अपनी मानसिकता का प्रदर्शन करता रहता है.
समाचारों और सोशल मीडिया पर इस बात की चर्चा होने के बाद भी कानून क्या अपनी तरफ से कुछ नहीं कर सकता है क्योंकि शर्मिष्ठा मुखर्जी की तरफ से पुलिस में शिकायत करने के बारे में भी कहा गया है पर क्या महिलाओं के प्रति असम्मान प्रदर्शित करने के इस तरह के मामले की जांच पुलिस स्वतः संज्ञान के साथ नहीं कर सकती है जिसमें खुद ही सारे सबूत मौजूद हैं ? क्या पुलिस की तरफ से कड़ा कदम नहीं उठाया जाना चाहिए जिससे कोई भी व्यक्ति सोशल मीडिया पर सार्वजनिक यह व्यक्तिगत रूप से महिलाओं पर इस तरह की टिप्पणियां करने की हिम्मत न जुटा सके ? नियमों में संशोधन तो यहाँ तक होना चाहिए कि जब तक किसी मीडित महिला की तरफ से शिकायत करने की आवश्यकता महसूस हो उससे पहले ही साइबर सेल को इस तरह के मामलों में प्राथमिकी दर्ज कर विवेचना शुरू कर देनी चाहिए जिससे शिकायत होने या न होने के स्तर तक बात पहुँचने से पहले ही कानून के पास इस बात की तह तक पहुँचने और दोषी को कड़ी सजा दिलवाने की शक्ति भी होनी चाहिए. हर महिला में इतना साहस नहीं होता है कि वह अपने स्तर से इस तरह की हरकतों से निपट सके और यह बात ही समाज में मौजूद इन राक्षसों को महिलाओं के प्रति कुछ भी कहने बोलने से लेकर करने तक का हौसला भी दे जाती है.
यदि किसी लड़की या महिला के साथ इस तरह की हरकत हो तो अधिकांश मामलों में पुरुष प्रधान समाज उलटे महिला पर ही इस बात को लेकर अपनी खीझ को मिटाने का प्रयास करेगा और सही जगह पर शिकायत करने के स्थान पर सबसे पहले सोशल मीडिया से दूर रहने की सलाह ही देता दिखाई देगा. सवाल यह है कि किसी मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति की हरकत के चलते आखिर किसी महिला को इस मंच का उपयोग करने से क्यों मना किया जाना चाहिए जबकि कमी स्पष्ट रूप से पुरुषों की तरफ से ही होती है ? नारी अधिकारों और सम्मान की बातें करते समय तो समाज पूरी तरह से ऐसा प्रदर्शित करने लगता है जैसे हमसे अधिक संस्कारी समाज पूरी दुनिया में न हो पर सार्वजनिक दृष्टि से ओझल होते ही कितने लोग इस संस्कार वाले चोले को उतारने में थोड़ी भी देर नहीं लगाते हैं और अपनी असली मानसिकता को प्रदर्शित करने लगते हैं. समाज में व्याप्त इस कमी को केवल कानून के माध्यम से डर पैदा करके समाप्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि देश दुनिया में बहुत सारे कड़े कानून आज भी मौजूद हैं पर उनसे बचने के रास्ते भी समानांतर रूप से खुले ही रहते हैं. अच्छा हो कि परिवारों और विद्यालयों नैतिकता के पाठ पढ़ाने के साथ में सोशल मीडिया के उपयोग दुरूपयोग के बारे में भी बताने के बारे में विचार किया जाये क्योंकि संस्कार केवल घरों और विद्यालयों से ही मिल सकते हैं और समाज में संघर्ष कर रहे व्यक्ति के पास इतना समय नहीं होता कि वह संस्कारों के परिष्कार के लिए लगातार प्रयासरत भी रह सके. महिलाएं भी समाज में उचित सम्मान की हक़दार हैं और इस बात से सभी को पूरा वास्ता रखना होगा तभी आने वाले समय में आज की परिस्थितियों को बदलने में सहायता मिल सकती है.

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