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किसी भी हथकंडे को अपनाकर रेलवे की कमाई बढ़ाने में लगे अति सक्रिय रेल मंत्री सुरेश प्रभु अब लगता है कि आम जनता को रेलवे की आवश्यकता की समझ से दूर होते जा रहे हैं क्योंकि रेलवे की तरफ से विभिन्न कारणों से जिस तरह से गुपचुप तरीकों को अपनाकर किरायों में बढ़ोत्तरी की जाती है उस पर संसद और नेताओं के साथ जनता का भी ध्यान आसानी से नहीं जाता है. आज़ादी के बाद से अभी तक रेलवे की तरफ से भीड़ भाड़ वाले सीजन में स्पेशल ट्रेनों का सञ्चालन किया जाता था जिससे आम लोगों की बढ़ी हुई भीड़ को आसानी से गन्तव्य तक पहुँचाने में मदद मिलती थी पर पिछले वर्ष जुलाई में रेलवे अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़कर जिस तरह से इन ट्रेनों के नाम बदल दिए और यात्रियों से इन विशेष ट्रेनों के नए नामों पर ही सैकड़ों रूपये अतिरिक्त लेने की शुरुवात कर दी वह अपने आप में बहुत ही अव्यवहारिक कदम है क्योंकि भारतीय रेल भारत की आर्थिक शक्ति नहीं बल्कि उसको एक दूसरे क्षेत्र से जोड़ने वाली जीवनरेखा अधिक है. जनता के हितों की रक्षा करने की बातें करने वाली मोदी सरकार किस तरह से इन नाम परिवर्तन के खेल से जनता की समस्याएं बढ़ाने के साथ रेलवे का नुकसान कर रही है इसका अभी तक किसी को पता नहीं है.
वैसे तो प्रायोगिक तौर पर डायनामिक किराये वाली ट्रेन का परीक्षण संप्रग सरकार के समय मुम्बई दिल्ली मार्ग पर किया गया था और बड़े शहरों में रहने वाले मध्यमवर्गीय लोगों को ध्यान में रखकर इस तरह की सेवा यदि सीमित संख्या में ही दी जाती तो जो लोग इस किराये को चुकाने में सक्षम हैं उनको सुविधा मिलती तथा अन्य लोगों के लिए सामान्य स्पेशल ट्रेनों का विकल्प भी उपलब्ध रहता पर सरकार ने सामान्य स्पेशल की श्रेणी ही समाप्त कर दी है. अब तत्काल के बाद तत्काल स्पेशल है जिसका किराया तत्काल के बराबर ही होता है वहीं स्पेशल के स्थान पर सुविधा स्पेशल हैं जिनमें डायनामिक किराया लागू होता है. तत्काल के बराबर किराया होना तर्कसंगत कहा जा सकता है पर आम लोगों के लिए चलाये जाने वाली साधारण स्पेशल अब इतिहास का हिस्सा हैं और यात्री मजबूरी में अधिक किराया देकर इनमे चलने को मजबूर भी हैं. उत्तर रेलवे को जिस तरह से पूर्व में घोषित अपनी व्यस्ततम मार्ग दिल्ली पटना और लखनऊ मुम्बई मार्ग की कई सुविधा स्पेशल गाड़ियों को यात्रियों के अभाव में रदद् करना पड़ा है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में रेलवे के लिए हर मार्ग पर इस तरह की सुविधा स्पेशल ज़बरदस्ती चला पाना बहुत कठिन होने वाला है क्योंकि सुविधा स्पेशल में यात्री न होने के बाद भी इन्हीं मार्गों पर चलने वाली अन्य मेल एक्सप्रेस गाड़ियों में लंबी वेटिंग भी देखने को मिल रही है.
मोदी सरकार में रेलवे को केवल आय का साधन मानकर जिस तरह से सुविधाओं के नाम पर उनको आम लोगों की पहुँच से दूर करने का काम किया जा रहा है उससे होने वाले नुकसान की भरपाई कर पाना आने वाले समय में रेलवे के लिए मुश्किल ही होगा क्योंकि एक तंत्र के विफल हो जाने पर दूसरा तंत्र स्वतः ही अस्तित्व में आ जाता है जिससे पिछले विफल हुए तंत्र के लिए अपने अस्तित्व को बचाये रखने में कड़ी मेहनत भी करनी पड़ती है. जिन मार्गों पर यात्री इस तरह की डायनामिक किराये वाली गाड़ियों के टिकट खरीदने की क्षमता रखते हैं वहां पर तो इस तरह की गाड़ियां सीमित संख्या में चलाना पूरी तरह से सही कहा जा सकता है पर असोम, बंगाल, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से रोज़गार की तलाश में अन्य प्रदेशों में जाने वाले कामगारों के लिए इस तरह का डायनामिक किराया किस तरह से व्यावहारिक हो सकता है ? यदि पूरे देश में इस बात का हिसाब लगाया जाये कि कितनी सुविधा स्पेशल गाड़ियों को यात्री न मिल पाने के चलते निरस्त किया गया है तो रेलवे को सही स्थिति का अंदाज़ा हो जायेगा. रेलवे में सुविधाएँ बढ़नी चाहिए पर केवल सुविधा का नाम जोड़कर इस तरह से कुछ भी मनमानी करके रेलवे आखिर क्या साबित करना चाहता है.
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