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जनरल वाले स्लीपर टिकट

***.......सीधी खरी बात.......***
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रेलवे ने अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए एक और ऐसा आदेश जारी किया है जिसके बाद स्लीपर क्लास में यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए मुसीबतें बढ़ने ही वाली हैं और असामाजिक तत्वों द्वारा द्वारा इस तरह की सुविधा का लाभ उठाने से इन कोचों में सुरक्षा संबंधी नयी समस्याएं भी सामने आ सकती हैं. अभी तक के नियम के अनुसार जनरल क्लास के यात्री स्लीपर क्लास में जनरल टिकट पर सफर नहीं कर सकते हैं फिर भी वे समूह और ताकत के दम पर स्लीपर में घुसकर जबरिया यात्रा करने की कोशिशें करते हैं और बड़े शहरों के आस-पास सुबह शाम गुजरने वाली महत्वपूर्ण ट्रेनें भी इस व्यवस्था के सामने पूरी तरह से प्रभावित हो जाती हैं क्योंकि दैनिक यात्री जबरिया इन कोचों में घुसकर सोते हुए यात्रियों को उठा देते हैं और सीटों पर कब्ज़ा जमा लेते हैं. अभी तक रेलवे को इस समस्या का कोई समाधान नहीं मिल पाया है फिर भी वह अब इसी अव्यवस्था को स्लीपर क्लास को नयी श्रेणी की टिकट के साथ अपनी कमाई का साधन बनाना चाहता है रेलवे का यह मानना है कि अब जो लोग स्लीपर में यात्रा करते हैं वे जनरल के बजाय स्लीपर क्लास का टिकट खरीद कर स्लीपर में बैठ सकते हैं.
सामान्य रूप से देखे जाने पर यह कमाई को बढ़ाने का अच्छा साधन लगता है पर महत्वपूर्ण ट्रेनों के साथ भी दैनिक यात्रियों का इसी तरह का व्यवहार रहा करता है और स्लीपर में अनधिकृत तरीके से घुसने वाले यात्रियों में ९०% से अधिक यही लोग होते हैं शेष लोग तो टीटी से बात करके ही सीट उपलब्ध होने पर ही इस तरह की कोशिश करते हैं. रेल यात्रियों की सभी श्रेणियों पर ध्यान देना रेलवे का कर्तव्य है पर इस तरह से एक श्रेणी के यात्रियों की समस्याएं बढ़ाकर अन्य लोगों की समस्याएं सुलझाने की कोशिश किसी भी दशा में सही नहीं कही जा सकती है. जिन लोगों के पास पहले से स्लीपर टिकट है और वे लंबी यात्रा पर हैं तो उनके लिए दिन भर आराम करने के स्थान पर इन जनरल यात्रियों के आवागमन से निपटना मुश्किल ही होने वाला है. इस तरह से कोई भी टिकट लेकर इन डिब्बों में आराम से आ जा सकता है जिससे असामाजिक तत्व पहले से ही असुरक्षित इन डिब्बों को अपने निशाने पर और भी आसानी से ले सकते हैं किसी भी परिस्थिति में रेलवे को आमदनी के साथ यात्रियों की सुविधाओं और सुरक्षा पर भी पूरी तरह से ध्यान देने की आवश्यकता भी है अब जिससे सही तरह से निपटने की आवश्यकता भी है.
प्रायोगिक तौर पर रेलवे को अब कुर्सी यानों की उपलब्धता पर विचार करना ही होगा और जो भी ट्रेन महत्वपूर्ण भीड़ भाड़ वाले मार्गों पर चलती हैं उन पर आवश्यकता के अनुरूप इन डिब्बों को हर गाड़ी में लगाने के बारे में सोचना भी होगा. दैनिक यात्रियों के लिए सामान्य डिब्बों वाली गाड़ियों की जगह इन्हीं कुर्सी यह वाली गाड़ियों के समग्र सञ्चालन पर प्रायोगिक तौर पर शुरुवात करने के बारे में सोचकर जहाँ दैनिक यात्रियों को भी आरामदायक यात्रा उपलब्ध करवाई जा सकती है वहीं अन्य मेल एक्सप्रेस गाड़ियों के यात्रियों को भी बेहतर साधन उपलब्ध कराया जा सकता है. आज रोजगार के चलते इस तरह के दैनिक यात्रियों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हो रही है जिससे निपटने के लिए अब रेलवे को इस तरह की इंटरसिटी गाड़ियां भी चलानी होंगीं जो महत्वपूर्ण मार्गों को कवर करती हों और उनकी संरचना में कुर्सी यानों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिससे सभी श्रेणी के यात्रियों को बेहतर यात्रा का अनुभव कराया जा सके. भारत की विशाल जनसँख्या को देखते हुए इस तरह के बड़े परिवर्तन की अचानक से संभावनाएं तो नहीं है पर प्रायोगिक तौर पर रेलवे इसकी शुरुवात तो कर ही सकती है जिससे केवल आय बढ़ाने के साथ यात्रियों के लिए बेहतर यात्रा का मार्ग आने वाले समय में प्रशस्त किया जा सके.

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