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पूर्व मुख्यमंत्री और आवास

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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अपने अजीब तरह के नियमों और कानूनों की तरह सदैव ही विवादों में आ जाने वाले यूपी के लिए सुप्रीम कोर्ट से आया नया आदेश नयी तरह की समस्याएं लेकर भी आने वाला है जिससे पार पाना सरकार के लिए कठिन ही होने वाला है और कानून की मदद से कुछ ऐसा तोड़ निकाले जाने की कोशिशें भी शुरू की जा सकती हैं जिससे इन नेताओं को कुछ राहत दी जा सके. असल में इस पूरे विवाद की जड़ में यूपी का १९९७ का वह कानून है जिसके अंतर्गत पूर्व मुख्यमंत्रियों को लखनऊ में आजीवन सरकारी आवास उपलब्ध करने की व्यवस्था की गयी थी पर लोक प्रहरी नामक संगठन की १२ साल पुरानी याचिका का निस्तारण करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान को ही गलत बताया और १५ दिन में सरकारी आवास खाली करने के १९८१ के कानून को ही कानून सम्मत बताते हुए २ महीनों में ये आवास खाली करवाने के लिए आदेश जारी कर दिए हैं जिससे कांग्रेस के एन डी तिवारी, राम नरेश यादव, भाजपा के कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और सपा के मुलायम सिंह तथा बसपा की मायावती से ये आवास खाली कराने के आदेश जारी किये गए हैं.
वैसे देखा जाये तो यह आदेश पूरी तरह से सही है क्योंकि आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे राज्य के लिए इतनी बड़ी संख्या में अपने पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए प्रति माह लाखों रूपये खर्च कारण का कोई सही कारण समझ में नहीं आता है फिर भी यदि आवश्यकता हो तो परिस्थिति के अनुरूप इस तरह एक आवासों की कुछ शर्तों के साथ व्यवस्था की जा सकती है. सत्ता में रहने के कारण कुछ निर्णयों के चलते राजनेताओं के लिए खतरे बढ़ जाया करते हैं ऐसे में उन्हें उच्च श्रेणी की सुरक्षा भी दी जाती है और अपने पैतृक आवासों में रहने पर उनकी सुरक्षा को भी गंभीर खतरा हो सकता है जिसके लिए राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में रिव्यु पिटीशन भी डाल सकती है. आज कल्याण सिंह राज्यपाल हैं तो राजनाथ सिंह गृह मंत्री तो उनकी सुरक्षा के लिए यूपी सरकार को चिंता करने की आवश्यकता भी नहीं है पर मुलायम और मायावती के विवादित फैसलों के चलते उनको सही सुरक्षा की आवश्यकता भी है. कांग्रेस के एन डी तिवारी और राम नरेश यादव से यह सुविधा अवश्य ही वापस ली जा सकती है क्योंकि आज उनके किसी प्रशासनिक फैसले के चलते उनको किसी तरह के खतरे के बारे में कोई सूचनाएँ भी नहीं हैं पर क्या केवल सुरक्षा को मुद्दा बनाकर ही सरकार यह सब इतनी आसानी से कर पायेगी जब सुप्रीम कोर्ट का रवैया इस मामले में भी सख्त ही दिख रहा है ?
आज के युग में विभिन्न कारणों से बढ़ते हुए सुरक्षा संबंधी खतरों से निपटने के लिए अब एक सही नीति को बनाने की आवश्यकता भी है क्योंकि विभिन्न आवासों पर करोड़ों रूपये खर्च कारण उनको संवारने का काम राज्य संपत्ति विभाग द्वारा लगातार किया ही जाता है और इस मुद्दे पर भी कई बार बहुत हो हल्ला होता है. सुरक्षा के खतरे को देखते हुए इन नेताओं को अति सुरक्षा क्षेत्र के किसी बहुखंडी आवास में शिफ्ट किया जा सकता है जिसकी सुरक्षा कम बल लगाकर एक साथ की जा सकती है. एक ही क्षेत्र में पूर्व मुख्यमंत्रियों के रहने से जहाँ उनको सुरक्षा का एहसास भी रहेगा वहीं राज्य सरकार और सुरक्षा बलों के लिए उनकी सुरक्षा करना भी बहुत आसान ही रहेगा. इस तरह के कानून यूपी के साथ कुछ अन्य राज्यों में भी हैं अब वे भी आसानी से निरस्त किये जा सकते हैं. अच्छा हो कि नेता खुद ही इस बात को समझें कि अब जनता उतनी अनजान भी नहीं है जितना वे समझते हैं और आने वाले समय में इस तरह के बेमतलब के कानूनों से निपटने के लिए जनता के पास कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने का अवसर सदैव ही रहता है. केवल अपनी शान को दिखाने के लिए किये जाने वाले इस काम को अब सुरक्षा के पैमाने पर कसना चाहिए और जिन नेताओं को सुरक्षा की आवश्यकता है उन्हें सुरक्षा दी जानी चाहिए पर आजीवन सुरक्षा और आवास देने के इस तरह के किसी भी गैर कानूनी काम का समर्थन भी नहीं किया जाना चाहिए.

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