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सर्बानंद सोनोवाल का असम

***.......सीधी खरी बात.......***
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पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम में हाल में संपन्न हुए चुनाव में स्पष्ट बहुमत हासिल करने के बाद भाजपा ने पहली बार सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व में सरकार का गठन कर लिया है जिससे राज्य के शासन में १५ वर्षों की तरुण गोगोई की स्थायी नीतियों के बाद कुछ बड़े बदलावों के बारे में लोगों में उत्सुकता जागी है. भाजपा के लिए यह जीत कितनी बड़ी थी इसका अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पीएम समेत केंद्र सरकार के अधिकांश मंत्री, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों समेत भाजपा के बड़े नेताओं ने इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई और पूर्वोत्तर में पार्टी के लिए संभावनाओं के द्वारा खोलने वाले सोनोवाल पर अपनी पूरी आस्था भी दिखाई. निश्चित तौर पर जब जनता से जुड़ा हुआ कोई व्यक्ति शीर्ष पद संभालता है तो उस राज्य या देश की स्थिति में धरातल पर भी बदलाव दिखाई देने लगते हैं फिर सोनोवाल की सौम्यता अपने आप में ही बहुत कुछ कह दिया करती है क्योंकि लगभग दो वर्षों तक केंद्र में मंत्री रहने के बाद भी उनकी तरफ से मोदी सरकार के अन्य मंत्रियों की तरह तल्खी भरे अंदाज़ में कभी भी किसी मुद्दे पर कोई बयान नहीं दिया गया है.
सीमा से लगा प्रान्त होने और बांग्लादेश के साथ अधखुली सीमा के चलते जिस तरह से असम में भी बांग्लादेशियों की घुसपैठ एक बड़ा मुद्दा है और चुनाव में सोनोवाल ने इसे पूरी तरह से अपनी प्राथमिकता में रखा उसके बाद यही लगता है कि उनकी तरफ से इस मुद्दे पर केंद्र के साथ मिलकर कोई ठोस कार्य भी किया जायेगा क्योंकि सीमा पर भौगोलिक परिस्थितियां कठिन होने के कारण भी इस घुसपैठ को रोकने की कोशिश करना पूरी तरह से संभव नहीं हो पाता है और राज्य में घुसपैठ एक बड़ा मुद्दा बनी ही रहती है. सोनोवाल के पास निश्चित तौर पर इससे निपटने के लिए कुछ कार्ययोजना अवश्य ही होगी और उस पर केंद्र सरकार की तरफ से उन्हें पूरा समर्थन भी मिलेगा तो वे स्थायी रूप से इस समस्या का समाधान निकाल पाने में सफल हो सकेंगें. राज्य में शांति के स्तर को और भी अच्छा करने के लिए यदि सीएम के आह्वाहन पर उल्फा के विभिन्न गट सरकार से बात करने के लिए सामने आते हैं तो यह भी एक अच्छा कदम हो सकता है क्योंकि राज्य में सुरक्षा का माहौल मज़बूत होने के साथ वहां पर पर्यटन की सम्भावनाएं और भी बढ़ सकती हैं जो राज्य की आय बढ़ाने में काफी हद तक सहायक हो सकती हैं.
निश्चित तौर पर यह भाजपा की सरकार है पर इस सरकार को बनाने में पिछले वर्ष तरुण गोगोई से नाराज़ और कांग्रेस से भाजपा में आये हेमंत सर्मा की आगे की रणनीति पर भी असम और सोनोवाल सरकार का भविष्य टिका रहने वाला है क्योंकि उनके कांग्रेस से अपने समर्थकों के साथ बाहर आने के चलते भी राज्य में समीकरण बदल गए थे और जिस पद के लिए उन्होंने अपनी पार्टी से बाहर जाना स्वीकार किया था तो उसके लिए उनकी महत्वाकांक्षा कहाँ तक रुक पायेगी इससे भी आने वाले समय में असम में बहुत अंतर पड़ने वाला है. भाजपा और सोनोवाल के लिए इस तरह के तत्वों को संतुष्ट रख पाना असम्भव तो नहीं पर कठिन अवश्य होने वाला है. राज्य के समग्र विकास के लिए यदि नेताओं की महत्वाकांक्षाएं सीमित ही रहें तो वह राज्य बहुत आगे तक जा सकता है पर दुर्भाग्य से हमारे देश में ऐसा नहीं होता है और पार्टी के अंदर के लोग ही स्थापित सरकारों के लिए लगातार संकट उत्पन्न करते रहते हैं. फिलहाल असम में इस नए परिवर्तन के साथ देश यह आशा करता है कि नयी सरकार इस राज्य को देश के विकास के साथ और भी आगे तक ले जाने के अपने प्रयासों में सफल होगी और राज्य से उग्रवाद को समाप्त करने की दिशा में भी गम्भीर प्रयास किये जा सकेंगें.

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