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जनधन योजना और नियम

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश में ग्रामीण स्तर तक विकास की पहुँच बनाए रखने के लिए जिस तरह से आज़ादी के बाद से ही लगभग सभी सरकारें मज़बूती से कुछ विशेष कदम उठाने की कोशिश करती रही हैं उसी क्रम में १९९१ में वैश्विक अर्थव्यवस्था से भारत को सफलतापूर्वक जोड़ने वाले पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने जिस भारत का सपना अपनी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से देखा था आज वह साकार होता दिखाई दे रहा है. २०१२ में लालकिले से अपने भाषण में मनमोहन सिंह ने कहा था कि २०१४ तक हमारा बैंकिंग नेटवर्क उस स्थिति में पहुँच जायेगा कि सम्पूर्ण भारत में हर व्यक्ति के लिए खाता खोलना एक वास्तविकता के रूप में सामने आएगा. जनधन खाते के रूप में देश में चल रही योजना को पिछली सरकार का वही स्वरुप माना जा सकता है तथा इसमें सबसे महत्वपूर्ण उल्लेखनीय बात यह है कि मोदी सरकार अपने पूर्ववर्ती की इस विलक्षण और महत्वाकांक्षी योजना को उसी रूप में आगे बढ़ा रही है. इस योजना को जिस रूप में सफलता प्राप्त करनी चाहिए थी आज भी देश को उसका इंतज़ार है क्योंकि इसके लिए कहीं न कहीं से कुछ दिशा निर्देशों की अवहेलना भी की गयी है जो कि आने वाले समय में एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ सकती है.
सरकार और पीएम किसी बड़ी योजना का केवल शुभारम्भ ही कर सकते हैं क्योंकि उनके पास जितने बड़े राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के काम होते हैं उसमें किसी भी तरह से इन योजनाओं की सही मॉनिटरिंग संभव नहीं है इसलिए सम्बंधित विभागों और मंत्रालयों के साथ ज़िम्मेदार संवैधानिक संस्थाओं की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वे अपने स्तर से इनकी सही निगरानी करते रहें. भारतीय रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एस एस मूंदड़ा ने बैंकों को जिस तरह से जनधन योजना के खातों के व्यापक दुरूपयोग की संभावनों से अवगत करते हुए चेतावनी दी है उससे यही लगता है कि इतनी कोशिशों के बाद भी हमारी व्यवस्था में लोग खामियां खोज ही लेते हैं और सरकार को कानून की कमियों का एहसास करवाते रहते हैं. पंजाब के एक मजदूर के जनधन खाते से जिस तरह से एक करोड़ रुपयों का लेनदेन किया गया वह सभी की ऑंखें खोलने के लिए पर्याप्त संकेत होना चाहिए क्योंकि रिज़र्व बैंक की तरफ से स्पष्ट रूप से दिशा निर्देश दिए गए हैं कि नए खुले खातों में होने वाले लेनदेन के प्रति बैंकों को अपनी निगरानी व्यवस्था को और भी अधिक मज़बूत करने की जरूरत है.
देश में कार्य करने की संस्कृति के ठीक न होने से कई बार इस तरह के कई कारनामे सामने आते ही रहते हैं जहाँ पर नियमों और निगरानी में कमी के चलते कुछ लोग मनमानी करने में स्वतंत्र ही रहा करते हैं. जनधन खाते में चूंकि लेनदेन सीमित मात्रा में ही होता है तो इनमें असीमित उपयोग की जानकारी के लिए बैंकों को सतर्क रहना चाहिए और बड़े लेनदेन के प्रति सजग भी रहना चाहिए पर पंजाब के इस मामले में बैंक इस पूरी गलती को पकड़ ही नहीं पाया और आयकर विभाग की तरफ से किसान को नोटिस जारी होने पर यह बात सामने आई कि उसके खाते का सञ्चालन अवैध रूप से किया जा रहा था ? बैंकों के सामने जिस तरह से एनपीए संकट चल रहा है और उनकी तरफ से आज भी लापरवाही का यह स्तर है तो आने वाले समय में बैंकिंग को किस तरह से भरोसेमंद माना जा सकेगा इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है. रिज़र्व बैंक इस तरह के मामलों में दिशा निर्देश ही जारी कर सकता है फिर भी यूपीए के समय जिस आयकर निगरानी व्यवस्था को शुरू किया गया था वह इस मामले में कारगर साबित हुई इसलिए बैकों को भी कुछ इस तरह से और प्रयास करने की आवश्यकता है जिससे जनधन जैसे खातों के दुरूपयोग को पूरी तरह से रोका जा सके.

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