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प्रोटोकॉल और सम्मान

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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अपनी ईरान यात्रा के दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वाराज ने राष्ट्रपति हसन रूहानी के साथ जिस तरह से ईरानी और इस्लामिक परम्पराओं का सम्मान किया वैसा लम्बे समय से राजनयिक हलकों में किया जाता रहा है क्योंकि जब बात दो सम्भयताओं और संस्कृतियों और देशों के लोगों के मिलने की होती है तो दूसरे पक्ष का सम्मान करने से कोई भी देश या उसका प्रतिनिधि छोटा नहीं हो जाता है. भारत और भारतीय नेताओं से सदैव ही दूसरे देशों की स्थानीय और धार्मिक परम्पराओं का अनुपालन ही किया है तो उस परिस्थिति में सुषमा स्वराज को लेकर सोशल मीडिया पर जिस तरह से आलोचनाओं का दौर शुरू हुआ है उसका कोई मतलब ही नहीं बनता है. इस बात को लेकर जिस तरह से भारत में भाजपा और सरकार के हिंदुत्व वादी एजेंडे से पीछे हटने को लेकर जिस तरह की टिप्पणियां देखने को मिल रही हैं दोनों देशों के हज़ारों वर्षों के साझा इतिहास के सामने उसका कोई महत्त्व नहीं है और अच्छा है कि भारत सरकार भी अभी तक स्थापित विदेश नीति के उन तत्वों में भारतीयता का वह पुट बनाए रखना चाहती है.
किसी भी क्षेत्र विशेष या राष्ट्र के दौरे के समय महत्वपूर्ण भारतीय नेता इस तरह की सौजन्यता को सदैव ही प्रदर्शित करते हैं जिसके माध्यम से दूसरे देश के लोगों और विश्व में यह सन्देश दिया जा सके कि भारत उनकी परम्पराओं और धार्मिक मान्यताओं का पूरा सम्मान करता है यह छोटे छोटे कदम होते हैं जो कई बार बड़ी कूटनीतिक सफलता तक ले जाने में नेताओं को बहुत मदद किया करते हैं. भारतीय समाज और लोग सदैव ही मुल रूप से सहिष्णु रहे हैं और उनके इस गुण के कारण ही आज पूरे विश्व में भारत के लोगों को जो सम्मान दिया जाता है वह अन्य लोगों के लिए दुर्लभ होता है. सुषमा स्वराज का सांकेतिक पोषक पहन कर ईरानी मान्यताओं का सम्मान करना उन्हें या भाजपा को कहीं से भी असहज नहीं कर सकता है क्योंकि ईरान में भारत की छवि परम्परावादी देश की ही है. दूसरों के सामने भारतीय समाज भी अपनी बहु बेटियों को सर ढकने की सलाह देने में नहीं चूकता है तो सुषमा स्वराज का ऐसा करना किसी भी तरह से गलत नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इससे पहले लम्बे समय तक देश पर शासन करने वाली पूर्व पीएम इंदिरा गांधी भी स्वयं कभी भी सर से पल्लू को हटने नहीं देती थीं.
भारतीय समाज की सौजन्यता को किसी से भी सीख लेने की आवश्यकता नहीं है तथा देश में इस तरह से सक्रिय कुछ तत्वों की बातों को पूरी तरह से अनदेखा भी किया जाना चाहिए. आज जिस तरह से सोशल मीडिया बहुत प्रभावी हो चुका है तो उस परिस्थिति में ऐसी बातें समाचारों में आने से पहले ही वहां पर जगह बना लेती हैं और उसके परिणाम स्वरुप इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी इन बातों को समाचारों में शामिल करना पड़ता है. देश की अंतर्राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप दूसरे देशों की मान्यताओं और परम्पराओं का सम्मान करते हुए ही आगे बढ़ने की कोशिश सरकार को करनी चाहिए जिससे ईरान के साथ व्यापारिक, सांस्कृतिक सम्बन्धों के मज़बूत होने से दोनों देशों के लिए अच्छा समय आ सकता है. आर्थिक प्रतिबंधों के चलते जब ईरान के साथ अधिकांश देशों ने तेल व्यापार को बहुत कम या बंद ही कर रख था तब भी भारत ने उसके साथ तेल व्यापार को प्राथमिकता दी और अंतर्राष्ट्रीय दबाव को दोनों देशों के हितों में मानने से पूरी तरह इंकार ही कर दिया था तो आज परिस्थितियां व्यापार के अनुकूल होने पर भारत को अपनी इस विरासत को नए आयाम देने की आवश्यकता है न कि इस तरह के छोटे मामलों में उलझने की.

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