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ट्रेनों की पॉवर कार का विकल्प

***.......सीधी खरी बात.......***
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देश में राजधानी, शताब्दी श्रेणी की महत्वपूर्ण ट्रेनों को बिजली आपूर्ति बनाए रखने के लिए अभी तक जिस तरह से दो पॉवर कार्स का उपयोग करना रेलवे की मजबूरी होती थी अब उससे निजात पाने के लिए आरडीएसओ लखनऊ द्वारा खोजी गयी नयी तकनीक से ट्रेन खींचने वाले डीज़ल इंजन से ही बिजली आपूर्ति किये जाने का सफल परीक्षण किया जा चुका है जिससे रेलवे के पास इन ट्रेनों में दो कोच बढ़ाये जाने के विकल्प खुलते हुए नज़र आ रहे हैं. इससे पहले बिजली से चलने वाले ५००० श्रेणी के इंजन का सफलतापूर्वक विकास करने के बाद उसका कालका शताब्दी में परीक्षण भी किया जा चुका है जो अपने आप में पूरी तरह से खरा साबित हुआ है. इस नयी तकनीक के विकास के बाद जिस तरह से इन नयी श्रेणी के इंजनों का उपयोग कर इन महत्वपूर्ण गाड़ियों का परिचालन और भी कुशल तरीके से बेहतर क्षमता के साथ किया जा सकेगा वहीं यात्रियों के लिए कुछ अतिरिक्त सीट्स की व्यवस्था किये जाने में भी सफलता मिल सकेगी. प्रयोग के तौर पर जिस तरह से ट्रेनों की छतों पर सोलर पैनल लगाए जाने काम भी शुरू किया गया है उससे भी काफी हद तक गाड़ियों के दिन में सञ्चालन के समय ऊर्जा बचत के लक्ष्य को पाने में मदद ही मिलने वाली है.
पिछले दो दशकों से देश में जिस स्तर पर नयी तकनीक और आरामदायक कोचों के निर्माण की तरफ ध्यान देना शुरू किया गया और उसके लिए विदेशों की कम्पनियों के साथ समझौते कर उनको देश में तकनीक हस्तांतरित करने के साथ बनाने की नीति पर काम शुरु किया गया उसके बाद ट्रेन का सफर आरामदायक तो हुआ है पर इस क्षेत्र में जिस स्तर पर अनुसन्धान किये जाने चाहिए हमारी आरडीएसओ उसमें कहीं से पिछड़ती हुई नज़र आती है. निश्चित रूप से यह संस्था अपने आप में बहुत ही अच्छा काम कर रही है पर इसे जितने व्यवसायिक स्तर पर प्रयास करने चाहिए वे अभी तक अनुसन्धान के क्षेत्र में नहीं दिखाई देते हैं अब इसे और भी परिश्रम के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है जिससे भारतीय रेल के सफर को और भी सुरक्षित और आरामदायक बनाने में इसकी भूमिका और क्षमता का दोहन किया जा सके. अपने आप में अब इस संस्था को सरकारी विभाग की कार्य संस्कृति से बाहर निकलना ही होगा क्योंकि इसरो जैसी सरकारी कम्पनी भी आज अपने दम पर पूरे विश्व में नाम कमा रही है.
इस नए इंजन के विकास से जहाँ राजधानी और शताब्दी ट्रेनों की कुशलता बढ़ाने में मदद मिलने वाली है वहीं इनके परिचालन और रखरखाव पर भी रेलवे का खर्च कम होने वाला है. अभी तक जहाँ नियमित रूप से पूरी यात्रा के दौरान दो पॉवर कार्स ऑन रहा करती थीं और उनको देखने के लिए अतिरिक्त स्टाफ भी रखना पड़ता था अब यह आवश्यक ऊर्जा इंजन से ही मिल जाने के बाद पॉवर कार्स के स्टाफ को कम किया जा सकेगा साथ ही दो अतिरिक्त कोचों के लगने से रेलवे की आमदनी में भी बढ़ोत्तरी हो सकेगी. इस दिशा में अब सोलर एनर्जी के भरपूर दोहन के माध्यम से रेलवे को अपनी बचत के नए आयाम खोजने की आवश्यकता भी है क्योंकि यदि दिन के समय ही ट्रेनों को सूरज की ऊर्जा पर चलाया जा सकेगा तो दिन में चलने वाली हज़ारों गाड़ियों में करोड़ों रुपयों की बचत होना शुरू हो जाएगी. रेलवे के अनुसन्धान प्रकल्प को अब पुरानी तकनीक के स्थान पर आधुनिकतम तकनीक की तरफ ध्यान लगाना ही होगा जिससे वे अपने इन नए उत्पादों को भारतीय रेल में उपयोग करने के बाद इनके बड़े पैमाने पर निर्माण और निर्यात के बारे में भी सोचना शुरू कर सके. नयी तकनीक के माध्यम से जहाँ आरडीएसओ रेलवे को सहारा दे सकेगा वहीं आने वाले समय में अपने व्यापार से देश के लिए विदेशी मुद्रा भी अर्जित कर सकेगा.

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