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श्रीनगर एनआईटी और राजनीति

***.......सीधी खरी बात.......***
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संवेदनशील मुद्दों पर देश भर में सुरक्षा बलों के साथ विभिन्न दलों की सरकारों का रवैया किस तरह का रहा करता है यह अपने आप में बहुत ही बड़े विवाद का विषय है क्योंकि जब भी कहीं भी कोई विवाद होता है तो देश के प्रतिष्ठित संस्थानों से लेकर महाविद्यालयों तक में विभिन्न दलों के छात्र संगठनों से जुड़े हुए लोगों द्वारा हर तरह की राजनीति की जाती है. श्रीनगर में एनआईटी में जिस तरह से एक मैच में भारत की हार पर स्थानीय छात्रों की तरफ से खुशियां मनाई गईं उसका किसी भी स्तर पर समर्थन नहीं किया जा सकता है पर इस मसले को जिस तरह से कश्मीरी बनाम गैर कश्मीरी का रुख दिया जा रहा है वह अपने आप में संस्थान की गरिमा को चोट पहुँचाने वाला ही है. कश्मीर घाटी में सदैव से ही भारत विरोधी तत्व सक्रिय रहा करते हैं और वे विभिन्न अवसरों पर पाकिस्तान और अब आईएस का झंडा लहराने से भी नहीं चूकते हैं जो कि उनकी भारत विरोधी मानसिकता को ही दिखाता है ऐसे में भारत के किसी अन्य हिस्से से गए हुए छात्र वहां का माहौल समझ नहीं पाते हैं और अपनी भावनाओं को उसी तरह से व्यक्त करते हैं जैसा वे अपने घरों पर किया करते हैं जिसका परिणाम इस तरह से सामने आता है और शिक्षा संस्थाओं में भी इस स्तर की राजनीति शुरू हो जाती है.
अब इस मामले में नए तथ्य सामने आने और जम्मू कश्मीर पुलिस द्वारा इन छात्रों की बर्बर पिटाई के बाद मामला और भी विभाजित दिखाई देने लगा है क्योंकि अब गैर कश्मीरी छात्र वहां से स्थानीय पुलिस को हटाकर केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात किये जाने की मांग करा रहे हैं. पीडीपी-भाजपा की नयी नयी बनी सरकार के लिए यह सब एक बड़ा झटका जैसा ही है क्योंकि पीडीपी कश्मीरी हितों को सर्वोपरि रखती है तथा भाजपा के लिए राष्ट्रवाद, भारत माता की जय और तिरंगा फहराने की राजनीति पूरे देश में बहुत महत्वपूर्ण है. आज जब भारत माता की जय के मुद्दे पर लगातार विवादित बयान दिए जा रहे हैं तो इस परिदृश्य में सरकार और भाजपा के पास सीमित विकल्प ही शेष बचते हैं और यदि विपक्षी दल इस मुद्दे पर मोदी सरकार और भाजपा पर हमलावर होते हैं तो उनके लिए असम और बंगाल के चुनावों में जनता को जवाब देना मुश्किल होने वाला है क्योंकि श्रीनगर में इस मारपीट के शिकार छात्रों में पूर्वोत्तर के बहुत सारे छात्र भी हैं. इस मसले को राजनैतिक लाभ हानि के स्थान पर शांति के साथ सुलझाने की आवश्यकता है जिससे एनआईटी में पूरे देश के छात्र अगले वर्षों में भी प्रवेश के लिए आते रहें.
महबूबा मुफ़्ती ज़मीन से जुडी हुई नेता हैं और इस तरह एक मुद्दों से उनका बहुत बार सामना होता रहा है पर इस बार इस प्रकरण में मामला जहाँ तक बिगड़ गया है उसके बाद उनके लिए संस्थान की गरिमा बचाए रखने के लिए संघर्ष करने जैसी स्थिति भी उत्पन्न हो गयी है. सरकार की मुखिया होने के नाते उनकी तरफ से परिसर का दौरा बहुत आवश्यक हो गया है और उनकी तरफ से यह भी सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है कि माहौल जल्द ही ठीक हो जिससे एचआरडी मिनिस्ट्री या होम मिनिस्ट्री की तरफ से कोई मंत्री वहां का दौरा कर सके. मोदी सरकार के लिए गृह राज्य मंत्री किरण रिजुजु इसके लिए सर्वोत्तम व्यक्ति साबित हो सकते हैं क्योंकि वे पूर्वोत्तर से आते हैं और घाटी में उनको लेकर कोई पूर्वाग्रह भी नहीं दिखाई देगा. स्मृति ईरानी के वास्तव में लाभप्रद दौरे को करवाने के लिए केंद्र राज्य दोनों को ही बहुत प्रयास करने होंगें क्योंकि हैदराबाद और जेएनयू के बाद घाटी में उनका विरोध होना अवश्यम्भावी है. इस प्रकरण को अनावश्यक रूप से उछालने के स्थान पर पीडीपी और भाजपा को कोशिश करनी चाहिए तथा विवादित बयान देने वाले भाजपाई और संघी नेताओं पर रोक लगाने की कोशिश भी करनी चाहिए क्योंकि पढ़ने गए छात्रों पर किसी भी तरह का संकट इनके बयानों के कारण नहीं आना चाहिए. फिलहाल यह मुद्दा जम्मू-कश्मीर और केंद्र सरकार के लिए एक परीक्षा के तौर पर सामने आ गया है और इसमें दोनों के उत्तीर्ण होने के आवश्यकता भी है क्योंकि तभी मामला शांत हो सकता है.

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