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सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का अनुपालन करते हुए रिज़र्व बैंक ने बंद लिफाफे में ५०० करोड़ रुपयों से ऊपर की धनराशि का लोन लेकर वापस न करने वाली कम्पनियों के नाम सौंपने के साथ ही यह अनुरोध भी किया है कि इस नामों को सार्वजनिक न किया जाये क्योंकि ऐसा किये जाने से इन कम्पनियों के अतिरिक्त देश के कारोबारी माहौल पर भी बुरा असर पड़ सकता है. इस मामले में कई स्तरों पर नीतियों में गम्भीर स्तर पर चूक भी सामने आती है क्योंकि एक तरफ बैंक जहाँ छोटे लोन लेने वाले लोगों के नाम तहसील से लगाकर ब्लॉक तक में सूचना पट पर सदैव ही चिपकाते रहे हैं और उनके द्वारा बकाया को न चुकाए जाने पर उन्हें जेल भी भेजते रहे हैं तो देश के अमीर उद्योगपतियों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था आखिर अभी तक संसद द्वारा क्यों नहीं बनाई गयी है ? लोन के बकाया के मामले में इस तरह का दोहरा रवैया भी उद्योगपतियों को लिए गए लोन को लौटने के मामले में गम्भीरता से सोचने ही नहीं देता है क्योंकि उनको यह बात आसानी से पता चल जाती है कि लोन की रिस्ट्रक्चरिंग के नाम उन्हें इस लोन और ब्याज से छूट मिल ही जाने वाली है.
जिस तरह से रिज़र्व बैंक की तरफ से यह अनुरोध किया गया है उसे मानने या अस्वीकार करने का पूरा अधिकार कोर्ट के पास है और विद्वान् न्यायाधीश भी देश हित में ही अपना निर्णय देने वाले हैं पर क्या यह विषय इस तरह से अंतिम बार ही सामने नहीं होना चाहिए और इनके बारे में एक समय सीमा भी निर्धारित की जानी चाहिए जिसके बाद उचित माध्यम से सरकार इन नामों को सार्वजनिक कर सके. जिन लोगों ने गम्भीरता से व्यवसाय चला रखा है उनसे सरकार और रिज़र्व बैंक को किसी भी तरह की समस्या भी नहीं है पर जो लोग इस तरह से अनावश्यक रूप से ही कुछ भी करने के लिए किसी भी तरह से लोन लेकर विलफुल डिफॉल्टर की श्रेणी में जाना पसंद करते हैं उनके बारे में क्या और भी सख्त कानून अब नहीं बनाए जाने चाहिए ? देश में जो कानून अभी भी चल रहे हैं वे उस समय के हैं जब देश में निजी उद्योगपतियों को सरकार की तरफ से प्रोत्साहन दिए जा रहे थे कि आज़ादी के बाद वे देश को आत्म-निर्भर बनने के लिए अपने स्तर से प्रयास शुरू कर सकें पर बाद में सामाजिक रूप से इस क्षेत्र में भी गिरावट आने लगी और आज हज़ारों करोड़ का लोन बट्टे खाते में पड़ा हुआ है.
जो उद्योगपति देश का पैसा इस तरह से हज़म करने की कोशिशें करने में लगे हैं अब उनके खिलाफ एक समयसीमा में काम करने की आवश्यकता भी आ चुकी है क्योंकि इस अनियमितता का किसी स्तर पर अंत तो करना ही होगा. यदि इस सूची में देश के आज के कोई बड़े और सफल उद्योगपति भी शामिल हैं तो बैंकों और सरकार को कोर्ट के निर्देशानुसार एक समय में उनको अपने बकाया चुकाने के लिए कहा जाना चाहिए और उसमें विफल होने पर उनके अन्य चल रहे उद्योगों से उसकी भरपाई करने के बारे में भी नीति बनाई जानी चाहिए. आज जनता के धन का इस तरह से दुरूपयोग करना किस तरह से सही कहा जा सकता है और साथ ही नए दिए जाने वाले लोन के लिए बैंकों के पास एक स्पष्ट दिशा निर्देश भी होना चाहिए जिससे वे भी किसी भी विलफुल डिफॉल्टर के साथ कानूनन सही कार्यवाही करने के लिए अपने स्तर पर ही सक्षम हो सकें. देश के आर्थिक परिदृश्य को सही करने के लिए उद्योगपतियों को देश का धन हड़पने की छूट आखिर क्यों और किसलिए दी जाने चाहिए इस बात का जवाब देश की जनता को चाहिए पर संसद कब अपनी दृढ इच्छाशक्ति के माध्यम से यह कर पाती है यह भी सोचने का समय आ चुका है.
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