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आधार और आशंकाएं

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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मोदी सरकार द्वारा आधार की उपयोगिता को जानने के बाद जिस तरह से इसके सब्सिडी में व्यापक प्रयोग के लिए इसे मनी बिल के रूप में लोकसभा में लाया गया और उसके बाद इसे पारित भी करवा लिया गया वह अपने आप में संसद के उच्च सदन की अनदेखी जैसा भी कहा जा सकता है. हालाँकि यह मुद्दा लम्बे समय से देश की विभिन्न अदालतों में भी पहुंचा हुआ है कि केंद्र सरकार किसी नागरिक की इस तरह की गोपनीय जानकारी आखिर किसलिए हासिल करना चाहती है और संभवतः इसी कारण से इस योजना का खाक खींचने वाली पिछली संप्रग सरकार ने भी इसे कभी कानूनी दर्ज़ा देने की कोशिश नहीं की क्योंकि उसमें भी यह सब चिंताएं सामने आने वाली थीं. देश की संवैधानिक व्यवस्था में विधायिका को कानून बनाने के लिए सर्वोच्चता प्राप्त है पर साथ ही न्यायपालिका को भी यह अधिकार मिला हुआ है कि किसी भी अनुचित प्रावधानों वाले बिल पर वह उसकी समीक्षा करने के लिए संवैधानिक पीठ का गठन कर उसके परिणामों पर गंभीरता से विचार कर संसद के फैसले को रोक भी सके.
देश में विभिन्न स्तरों पर व्याप्त भ्रष्टाचार से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न स्तरों पर पर प्रयास किये जाते रहते हैं पर आज भी देश कि गिनती दुनिया के भ्रष्ट देशों में ही होती है. भारत अपने यहाँ गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले नागरिकों के लिए विभिन्न तरह की सब्सिडी योजनाएं भी चलता है और देश में सबसे अधिक भ्रष्टाचार इन योजनाओं के धन में ही किया जाता है तथा विभिन्न स्तरों पर प्रयास करने के बाद भी अभी तक सरकार को इसे दोषमुक्त करने के लिए कोई समाधान नहीं मिल पाया है. हर क्षेत्र में दोहरे स्तर पर लाभ उठाने के चक्कर में जिस तरह से नागरिकों द्वारा इन योजनाओं का लाभ उठाया जाता है उसके बाद कहीं से भी सही तरह से इसका क्रियान्वयन होता नहीं दिखाई देता है. आधार के माध्यम से एलपीजी सब्सिडी को देने के प्रयास के सफल प्रयोग के बाद अब सरकार इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली और किसानों को खाद आदि देने के लिए भी उपयोग करना चाहती है जिससे इसमें होने वाले भ्रष्टाचार से निपटा जा सके और सब्सिडी के दुरूपयोग को पूरी तरह से रोक कर उसका सदुपयोग किया जा सके.
नागरिकों के इस तरह के डेटा को सरकार किस हद तक सुरक्षित रख पाने में सफल होगी सारी चिंताएं अब इस पर ही टिक गयी हैं क्योंकि साइबर अपराधों में बाढ़ आने के साथ आम लोगों की पूरी जानकारी का किसी भी तरह से दुरूपयोग संभव है और इससे बच पाने का उपाय भी किसी के पास नहीं है. अभी बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक के रिकॉर्ड को हैक कर किस तरह से करोड़ों रुपयों की हेराफेरी की गयी है उससे यही लगता है कि किसी भी स्थान पर नेट पर रखे हुए डेटा को सुरक्षित रख पाना आज के समय में सबसे बड़ी चुनौती है. आधार के साथ बैंक खाता और फ़ोन नंबर के जुड़े होने के चलते किसी भी हैकर के लिए आधार से ही समस्त जानकारी पा लेना बहुत आसान होने वाला है जिससे किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारी के साथ उसकी आर्थिक गतिविधियों और फ़ोन पर की जाने वाली कॉल्स तक के बारे में भी जाना जा सकता है. ऐसा नहीं है कि ऐसी जानकारी आमलोग कहीं और नहीं देते हैं पर एक ही स्थान पर इस तरह की सम्पूर्ण जानकारी अपने आप में दोधारी तलवार से कम भी नहीं है. किसी भी नागरिक की पहचान से जुडी सूचनाओं के गलत इस्तेमाल होने पर जिस तरह की सजा का प्रावधान किया गया है आज उस पर ही सबसे बड़ी बहस छिड़ी हुई है. अच्छा हो कि सरकार इसकी सुरक्षा को मज़बूत करने के साथ ही इसे संसद की सेलेक्ट कमिटी के पास भेजकर या नए सिरे से इसके प्रावधानों का उपयोग करते हुए एक सम्पूर्ण बिल पारित करवाने के बारे में सोचे जो सुरक्षा संबंधी चिन्ताओं का निराकरण भी कर सकता हो.

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