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सुरक्षा और लापरवाही

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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मुंबई में मेक इन इंडिया के अंतर्गत चल रहे महाराष्ट्र नाईट के कार्यक्रम में जिस तरह से स्टेज के नीचे लगी आग ने भयंकर रूप लेकर पूरे स्टेज को ध्वस्त कर दिया उसके बाद इस बात पर फिर से प्रश्न उठने लगे हैं कि क्या देश में विभिन्न स्थानों पर होने वाले इस तरह के बड़े आयोजन आपातकालीन परिस्थितियों के लिए पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हो सकते हैं ? बात चाहे उपहार सिनेमा की हो या फिर चरखी दादरी में बच्चों के कार्यक्रम की हर बड़े कार्यक्रम में सदैव ही इस तरह के हादसों की आशंका बनी ही रहती है जिसके चलते इनका सुरक्षित रूप से सम्पन होने अपने आप में बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है. हालाँकि इस मामले में सबसे अच्छी बात यह रही कि किसी भी तरह से किसी को कोई गंभीर चोट नहीं लगी और न ही किसी और तरह से कोई हताहत हुआ फिर भी इतने बड़े सरकारी कार्यक्रम में आखिर आयोजकों और पुलिस की तरफ से इस बात को क्यों नहीं सुनिश्चित किया गया कि आग लगने की स्थिति में वहां पर आगे बुझाने के समुचित प्रबंध भी किये जाते.
यदि स्टेज में उपयोग की गयी सामग्री के अनुपात में उसके पास ज्वलनशील सामग्री को देखते आग बुझाने के पूरे प्रबंध नहीं किये गए थे तो इसके लिये किसे ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है ? यह देश की छवि और वीआईपी लोगों की सुरक्षा से जुड़ा हुआ गंभीर मामला है क्योंकि इसके तहत भारत सरकार अपने महत्वाकांक्षी मेक इन इंडिया कार्यक्रम का प्रचार प्रसार करने में भी लगी हुई है तथा इस कार्यक्रम के समय कई विदेशी अतिथि भी वहां पर उपस्थिति थे. निश्चित तौर पर इस तरह के कार्यक्रमों में लकड़ी और सिंथेटिक कपड़ों के साथ अन्य कई पदार्थों का उपयोग किया जाता है जो आग के हिसाब से अत्यधिक संवेदनशील होते हैं फिर क्या अब आयोजकों को इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं समझी कि जहाँ पर इतने लोगों की भीड़ को इकठ्ठा किया जा रहा है वहां पर हर तरह की सुरक्षा के पूरे प्रबंध भी किये जाने चाहिए ? हर बात के लिए पुलिस प्रशासन और सरकार को दोष देने से काम नहीं चलने वाला है क्योंकि आयोजकों को आमंत्रित लोगों की सुरक्षा को सर्वाधिक प्राथमिकता देते हुए ही अन्य सजावटी सामानों को लगाना चाहिए.
देश में पहले से ही इस तरह के क्या हर छोटे बड़े आयोजन के लिए स्पष्ट रूप से नियम बनाये गए हैं पर कई बार बजट को कम करने और लापरवाहियों के चलते उनका अनुपालन नहीं किया जाता है जिससे इस तरह की दुर्घटनाओं की आशंका सदैव ही बनी रहती है. इस कार्यक्रम में भले ही सब कुछ सही रहा हो पर बड़ी भीड़ वाली जगहें आज भी देश में कितनी असुरक्षित हैं इसका अंदाज़ा इस घटना से लग ही गया है. यह पूरी तरह से सरकारी कार्यक्रम था और महाराष्ट्र के नाम समर्पित इस कार्यक्रम में राजनीति, सामाजिक, आर्थिक और फ़िल्मी क्षेत्र से जुड़े हुए बहुत सारे लोग यहाँ पर उपस्थित थे तो सरकारी मशीनरी के किस स्तर पर इसमें चूक हुई यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा और जब तक उस जाँच की रिपोर्ट सामने आएगी तब तक हम सभी लोग अपनी भूल जाने की आदत के चलते इसे भी याद नहीं रख पायेंगें. इस बात को सभी को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है और हर बात के लिए सरकार से ही पूरी अपेक्षाएं रखना कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता है क्योंकि जब भी कोई घटना होती है हम लोग सरकार पर दोषारोपण करने लगते हैं जबकि नियमों के अनुपालन के लिए सरकारी दिशा निर्देशों का पालन करने के स्थान पर हम कुछ खर्च बचाने के बारे सोचकर खुद को खतरे में डालने से भी नहीं चूकते हैं.

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