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राजनीति का लाभकारी पक्ष

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश में लम्बे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पर सबसे आसानी से सभी गैर कांग्रेसी दलों द्वारा जो एक आरोप अधिकांशतः लगाया जाता है वह यही है कि वह सत्ता में रहते हुए अपनी सोच से मेल खाने वाले विभिन्न क्षेत्रों के लोगों और संगठनों को सरकारी जमीन और सुविधाएँ सस्ती दरों पर उपलब्ध कराने की दोषी है. आज़ादी के बाद की परिस्थिति पर यदि दृष्टि डाली जाये तो देश को हर क्षेत्र में अपने पैरों पर खड़े होने देने के लिए सरकारी स्तर पर क्या हर क्षेत्र को मदद की आवश्यकता नहीं थी और यदि इस तरह से कांग्रेस ने इन लोगों या समूहों की मदद करने के लिए कुछ नीतियां बनायीं जिनका काफी हद तक समाज को लाभ भी मिला तो क्या कुछ भ्रष्टाचार के मामलों के कारण हर उस निर्णय पर संदेह व्यक्त किया जा सकता है जो आज़ादी के बाद इस तरह की गतिविधियों को बढ़ाने के लिए दिया गया. उदाहरण के तौर पर अस्सी के दशक में एक समय था जब देश में कार बाजार में लोगों के पास क्या विकल्प थे पर भारत सरकार ने एक नीति के तहत संयुक्त उपक्रम के रूप में मारुति उद्योग लिमिटेड की स्थापना की और उसके बाद भारत आज कहाँ है यह सभी को मालूम है.
यदि यह नीति गलत थी तो गैर कांग्रेसी भाजपाई राज्यों की सत्ता ने भी इस तरह की कोशिशें आखिर क्यों जारी रही जन्हें वे अपने विपक्ष में रहने के समय भ्रष्टाचार की दूसरी परिभाषा माना करते थे. मुंबई में हेमामालिनी के एक प्लाट के बाद अब जिस तरह से गुजरात से २०१० का एक मामला सामने आया है जिसमें तत्कालीन राजस्व मंत्री और अब गुजरात की सीएम आनंदी बेन की बेटी की कम्पनी को गिर लायन सफारी के पास की कीमती जमीन को सस्ते दामों पर दे दिया गया था. निश्चित तौर पर विकास के पीछे छिपकर भ्रष्टाचार के नाम पर दूसरों पर हमला करने वाले पीएम मोदी और गुजरात की सीएम आनंदी बेन के लिए यह एक बड़ा धक्का ही है क्योंकि राजनैतिक रूप से शुचिता की बातें करने वाले इन नेताओं के राज में भी उसी तरह की घटनाएँ हुईं जिनके लिए वे सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस को कोसते नज़र आते हैं. मामला किसी एक दल का नहीं वरन नीति का है क्योंकि सत्ता में होने पर बेशर्मी के साथ उन्हीं कामों को करना जिनके लिए विपक्ष में रहकर हमलावर रहा जाता है भारतीय राजनीति का सबसे घटिया पक्ष बन चुका है और इससे अब भाजपा समेत कोई भी दल अछूता नहीं रह गया है इसलिए इन मुद्दों पर किसी भी दल की बातों को जनता गंभीरता से लेना भी नहीं चाहती है.
सत्ता में होने पर यदि इस तरह की हरकतें सभी दल करने लगते हैं तो आने वाले समय में देश के बेशकीमती संसाधनों को आखिर किस तरह से बचाया जाये आज यह सोचना आवश्यक हो गया है क्योंकि जब तक सरकार और विपक्ष में बैठे नेता और दल इस बारे में गंभीर परिवर्तन करने के बारे में विचार करना नहीं शुरू करेंगें तब तक केवल बयानबाज़ी से परिस्थितियां बदलने वाली नहीं हैं. आज के परिवेश में यदि सरकार को लगता है कि अब सरकारी जमीन और संसाधनों की इस बन्दर बाँट को पूरी तरह से रोकने की आवश्यकता है और उसके लिए नीतियों में परिवर्तन की ज़रुरत है तो अब एक दूसरे पर हमलावर होने के स्थान पर सही नीतियों को बनाने के बारे में सोचा जाना चाहिए जिससे भविष्य में इस तरह की अनियमितता करने के अवसर ही समाप्त हो जाएँ. ऐसे मुद्दों पर गंभीर नीति बनाये जाने की आववश्यकता है और स्पष्ट है कि इससे सबसे अधिक दिक्कत भाजपा को ही होती है तो उसकी तरफ से संसद में एक नया विधेयक लाने की कोशिश भी होनी चाहिए वर्ना जैसे कभी कांग्रेस ने अपने लोगों को उपकृत किया था अब भाजपा भी उसी तरह से अपने लोगों को लाभ पहुँचाने का काम आसानी से करती रह सकती है.

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