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बांग्लादेशी मानव तस्करी और महिलाएं

***.......सीधी खरी बात.......***
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अपनी बड़ी आबादी और सीमित संसाधनों के चलते आज भी बांग्लादेश से भारत और अन्य देशों को जाने वालों में वहां की लड़कियों की संख्या अधिक होती है जिन्हें धोखे से उनके माता पिता से अच्छी नौकरी दिलवाने के नाम पर सीमा पार भारत लाया जाता है और यहाँ लेकर उन्हें वेश्यावृत्ति के दल-दल में जबरिया धकेल दिया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया के बड़े स्तर पर चलाये जाने के कारण दोनों देशों की सीमाओं पर तैनात सुरक्षा बलों और अन्य एजेंसियों के भ्रष्टाचार के चलते इनकी समस्याएं और भी बढ़ती चली जाती हैं. सरकार की तरफ से इनको वापस बांग्लादेश भेजने की कोशिशें भी लगतार की जाती हैं और इसके लिए दोनों देशों में २००१ में एक समझौता किया गया था जिसके बाद इन लड़कियों को स्वदेश भेजने की गति कुछ तेज़ हो गयी थी और यह व्यवस्था मई २०१४ तक अनवरत चलती रही जिसमें इन लड़कियों को आसानी से वापस भेजा जाता रहता था. अब बदली हुई व्यवस्था के तहत जब तक बांग्लादेश की स्थानीय पुलिस की रिपोर्ट भी नहीं आ जाती है तब तक लड़कियों को वापस नहीं भेजा जाता है जिससे भेजने की प्रक्रिया और भी सुस्त हो चुकी है.
केवल महाराष्ट्र में ही सुधार गृह से बांग्लादेशी लड़कियों के लगातार भागने की घटनाएँ सामने आने के बाद भी इस पर ठीक से ध्यान नहीं दिया जा रहा है पहले की व्यवस्था में दोनों देशों के उच्चायोग के निर्देश पर ही इन लड़कियों को स्वदेश भेज दिया जाता था पर अब बांग्लादेश की स्थानीय पुलिस की तरफ से पते की पुष्टि किये जाने के बाद ही इन लड़कियों को भेजने की नयी व्यवस्था से भ्रष्टाचार को नए सिरे से बढ़ावा मिल रहा है. बांग्लादेश में जहाँ सरकार अपनी पुलिस पर ही अंकुश नहीं रख पा रही है वहीं भारत सरकार की तरफ से इस प्रक्रिया को और तेज़ किये जाने को लेकर बांग्लादेश पर कोई दबाव भी नहीं बनाया जा रहा है जिस कारण से भी ये लड़कियां सुधार गृह में रहने के स्थान पर फिर से उसी माहौल में लौट जाना चाहती हैं जहाँ पर वे कुछ कमाई करके अपने लौटने की व्यवस्था कर सकने में सक्षम हो सकें. आज के आधुनिक युग में जब सब कुछ इतना आसान है तो इन लड़कियों को आखिर किस बात के लिए इतनी प्रतीक्षा करने को मजबूर किया जाता है जिससे ऊबकर वे सुधार गृह से भी भाग जाने तक का निर्णय लेती हैं ?
डिजिटल इंडिया के नाम पर सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के चलाये जाने के बाद क्या भारत सरकार बांग्लादेश सरकार के साथ कोई ऐसी इंटरनेट आधारित व्यवस्था नहीं बना सकती है जिसमें एक सीमित समय सीमा में पुलिस की रिपोर्ट अनिवार्य कर दी जानी चाहिए. इस तरह के समयबद्ध होने से जहाँ भ्रष्टाचार करने की गुंजाईश भी कम हो जाएगी वहीं इन लड़कियों को भी जल्दी से उनके घर भेजने की व्यवस्था करायी जा सकेगी. महिला अधिकारों और संरक्षण के साथ उनकी तस्करी को रोकने के लिए जहाँ दुनिया भर में देश तमाम तरह की कोशिशें करते हुए नज़र आते हैं तो क्या यूएन के नेतृत्व में उनके विभिन्न देशों की राजधानियों में खोले गए कार्यालयों में इस बात को लेकर ऑनलाइन पुष्टिकरण की व्यवस्था नहीं की जा सकती है ? भारत सरकार को इस दिशा में आगे बढ़कर काम करना चाहिए क्योंकि हमारे यहाँ खुद ओडिशा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और प० बंगाल की लड़कियों को इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है यदि हम इस पहल में सफल हो जाते हैं तो आने वाले समय में दुनिया भर के लिए एक नए मंच की तैयारी भी हो सकती है जहाँ से महिलाओं के साथ बच्चों तक की इस तरह से की जाने वाली मानव तस्करी को पूरी तरह से रोकने की दिशा में सही कदम उठाया जा सकेगा.

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