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खिमाड़ा और सामाजिक भेदभाव

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश में हम भले ही कितने आगे जाने और आधुनिक होने की बातें करने में कभी भी पीछे नहीं रहते हों पर जब किसी सामाजिक रूढ़ि को तोड़ने की बात आती है उस समय समाज के विभिन्न वर्गों की वह प्रगतिवादी सोच कहीं छिप सी जाती है या फिर वे अपने वर्चस्व को दिखाने के लिए इस तरह के दबाव बनाने का काम किया करते हैं. राजस्थान के पाली जिले के खिमाड़ा गांव की शिक्षित और सीआईएसएफ में कॉन्स्टेबल पद पर तैनात दलित लड़की नीतू भार्गव की ने भी अन्य लड़कियों की तरह अपनी शादी में दूल्हे के घोड़ी पर बैठकर आने की इच्छा व्यक्त की थी जिस कारण समाज के उच्च वर्गों को यह सब नागवार गुजरा कि एक दलित दूल्हा सवर्णों की तरह आखिर कैसे घोड़ी पर बैठकर शादी करने आ सकता है ? जिला प्रशासन में इस बात की जानकारी पहुँचने के पुलिस व् प्रशासनिक अधिकारियों को गांव की व्यवस्था सँभालने के लिए भेज दिया गया था और प्रशासन ने दूल्हे के लिए घोड़ी का प्रबंध भी करवा लिया था पर कानून और प्रशासन के आगे विभाजनकारी सामाजिक रूढ़ियों की एक आर फिर से विजय हुई जो समाज के प्रगतिशील और आधुनिक होने के दावों की हवा निकालने के लिए काफी है.
हज़ारों वर्षों से चली आ रही इस तरह की रूढ़ियों और सामाजिक ग्रन्थियों के साथ जीते उच्च वर्गों और इनसे जूझते दलितों की स्थिति में आखिर इतने प्रयासों एक बाद भी परिवर्तन क्यों नहीं आ पा रहा है अब यह सोचने और समझने का विषय भी है क्योंकि जब तक समाज के उच्च वर्गों के लोग अपने इस अघोषित उच्च होने और विशिष्ट होने के झूठे दम्भ से बाहर निकलने का प्रयास नहीं करेंगें तब तक किसी भी परिस्थिति में समाज के दलित वर्ग की सामान्य आकांक्षाओं की पूर्ति भी कानून और सरकार के चाहने के बाद भी नहीं हो सकती है. देश के सामाजिक ढांचे में आज भी विकृत रूप से पारम्परिक रूढ़िवाद मौजूद है तथा जब तक इससे निपटने की व्यवस्था पर विचार नहीं किया जायेगा तब तक किसी भी तरह से दलितों को उनका यह सम्मान नहीं मिल सकता है. इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि प्रशासन और सरकार लाख चाहे पर रूढ़िवाद के साथ जी रहे समाज के लिए सुधार के उचित कार्यक्रम तब तक नहीं चला सकती है जब तक उसमें समाज के सभी वर्गों की सम्पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित न की जा सके.
यदि शिक्षित होने से ही परिवर्तन संभव होता तो इस तरह की बात सामने ही नहीं आती क्योंकि नीतू भार्गव ने कुछ ऐसा नहीं माँगा था जो मिल नहीं सकता था गांव की एक शिक्षित बेटी ने यदि एक सामान्य सी इच्छा दिखाई थी तो उसे पूरा करने तथा उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों से निपटने के लिए समाज को आगे आना चाहिए था पर गांव और समाज के विभिन्न उच्च वर्गों द्वारा किये गए हठ के चलते संभवतः नीतू के परिवार की यह बात प्रशासन तक पहुँच गयी. इस तरह की गंभीर मनोविकार से जुडी हुई ग्रंथि को तोड़ने के लिए अब सरकार के उच्च वर्गों के मंत्रियों को भी आगे आना चाहिए जिससे समाज में सही सन्देश दिया जा सके कि अब इस तरह की अनावश्यक दुर्भावना को सरकार भी बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है. पुलिस प्रशासन का इस तरह एक मामलों से निपटने का एक घिसा पिटा मार्ग ही होता है जिसका अच्छा परिणाम केवल तभी सामने आता है जब ड्यूटी पर तैनात अधिकारी भी अच्छी मनोदशा के साथ काम करना चाहते हों. जब देश के संविधान की शपथ लेने वाले नेता ही अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं तो भला इन अधिकारियों को सीधे कैसे दोषी ठहराया जा सकता है ? राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे खुद उच्च सामाजिक वर्ग व आज़ादी के पहले के रजवाड़ों से आती हैं तो यदि वे इस दिशा में अपनी तरफ से कुछ सुधार के संकेत दे सकें तो उसका समाज पर सही तथा दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है.

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