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भारतीय मुसलमान और चुनौतियाँ

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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लखनऊ में मौलाना आज़ाद विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में बोलते हुए केंद्रीय गृह मंत्री ने जिस तरह से एक मुस्लिम परिवार का ज़िक्र किया जिसके मुखिया ने खुद उनसे संपर्क कर बेटे को आईएसआईएस के चंगुल में जाने से बचाने का अनुरोध किया था तो सभा में बैठे हुए लोगों को भी आश्चर्य हुआ. देश में राजनैतिक कारणों से जेहादी आतंक के किसी भी मामले पर मुसलमानों के जुड़ाव को लेकर एक अजीब तरह की बहस सदैव ही चलती रहती है जिसका आज के वैश्विक सूचना के युग में कोई स्थान नहीं होना चाहिए क्योंकि आज हर व्यक्ति के पास सूचना का सही गलत हर तरह का भंडार इंटरनेट के चलते उपलब्ध हो गया है. मुसलमानों के बीच बोलते हुए राजनाथ सिंह यदि इस तरह की बात कहना चाहते हैं तो यह एक तरह से उन परिवारों के लिए सन्देश भी हो सकता है जिनके बच्चे किसी भी कारण से आज जेहादी आतंक के किसी भी स्वरुप के प्रति नरम रुख अपनाते हैं और अपने परिवारों को अनावश्यक संकट में डाल दिया करते हैं. यह सही है कि अभी तक गरीबी और अन्य तरह की समस्याओं के चलते मुस्लिम युवाओं को गैर कानूनी कामों में समाज विरोधी तत्वों द्वारा आसानी से इस्तेमाल किया जा रहा था पर आईएस के आने के बाद अब पूरी दुनिया से शिक्षित और अमीर मुसलमानों का झुकाव भी इस तरफ बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है.
यह सही है कि दुनिया में मुस्लिम आबादी में दूसरे स्थान आने के बाद भी भारत से कभी भी अल क़ायदा, तालिबान या आईएस को उस अनुपात में कोई समर्थन नहीं मिला जिसकी आबादी के अनुरूप उन्होंने सदैव परिकल्पना ही की थी और आज भी भारत के मुसलमान उनके लिए एक चुनौती ही हैं कि इतने बड़े भूभाग पर वे अपने प्रभाव को उस तरह से नहीं जमा पा रहे हैं जैसा वे विश्व के अन्य देशों में करने में सफल रहे हैं. इस परिस्थिति में अब जब भारत के मुसलमानों के बारे में केंद्रीय गृह मंत्री भी यह मानते हैं कि कोई आतंकी संगठन यहाँ के मुसलमानों को उस तरह से प्रभाव में नहीं ले सकता है तो अब उनको राज्य सरकारों के साथ मिलकर संदिग्ध आतंकी संबंधों के चलते पूरे देश के विभिन्न स्थानों में हिरासत में लिए गए मुस्लिम युवाओं के बारे में सोचना चाहिए. ख़ुफ़िया जानकारी के दम पर जिस तरह से लोगों को पुलिस और अन्य एजेंसियों द्वारा उठाया जाता रहता है और उस प्रक्रिया को भी एक सुदृढ़ कानून के माध्यम से सही करने की आवश्यकता भी है और पुलिस को भी सही तरह से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है जिससे वह विवेचना को सही तरह से पूरा कर मामले को ख़त्म करने की दिशा में बढ़ सके क्योंकि आज भी केवल संदेह के आधार पर बहुत सारे लोगों को इसी तरह से जेल में डालकर उनके खिलाफ कोई कार्यवाही भी नहीं की जा रही है.
पिछले कुछ वर्षों में कई ऐसे मामले भी सामने आये हैं जिनमें संदिग्ध लोगों को इसी तरह से हिरासत में लिया जाता रहा है और कई वर्षों की लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बाद उन्हें कोर्ट द्वारा सबूतों के अभाव में बरी किये जाने की घटनाएँ भी हुई हैं. आतंक से जुड़े किसी भी व्यक्ति की गिरफ़्तारी और उसके खिलाफ विवेचना और मुक़दमा चलाने के लिए अब हमें अपने सिस्टम को सुधारने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक देश में सही कानून के द्वारा अपराधियों को सजा और संदिग्धों को सम्पूर्ण जाँच के बाद शीघ्रताशीघ्र रिहा करने की नीति नहीं अपनायी जाती है तब तक भारतीय मुस्लिम समाज में कुछ लोगों को अवैध तरीके से हिरासत में रखे जाने से पुलिस को नहीं रोका जा सकता है. अब समय आ गया है कि राजनाथ सिंह इस मुद्दे पर खुद ही पहल करें और चूंकि वे लखनऊ जैसे समृद्ध मुस्लिम संस्कृति वाले क्षेत्र का लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं तो उन पर इस बात की अधिक ज़िम्मेदारी भी आ जाती है. अभी उनके पास इस दिशा में परिवर्तन करने के लिए काफी लम्बा समय है और यह बदलाव भाजपा की सरकार ही आसानी से कर सकती है क्योंकि मुसलमानों से जुड़े इतने संवेदनशील मुद्दों पर जब भी कांग्रेस या अन्य गैर भाजपा सरकारों द्वारा कुछ भी करने का प्रयास किया जाता है तो भाजपा सदैव ही उन पर मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपनाने का आरोप लगाया करती है.
देश की ख़ुफ़िया एजेंसियों के इनपुट्स पर पुलिस के लिए कार्यवाही करना ज़रूरी होता है क्योंकि कई बार इसके माध्यम से बड़ी घटनाओं को टालने में सफलता भी मिली है पर इसके जो कई अन्य खतरे सामने आते हैं भारतीय कानून और समाज के साथ सरकार भी कभी उनके परिणामों पर विचार नहीं करना चाहते हैं जिससे आतंकी संगठनों को इन आंकड़ों के माध्यम से उन भोले भाले युवकों को बरगलाने में आसानी होती है कि देखो किस तरह से भारत में निर्दोष मुसलमानों को सिर्फ इसलिए ही प्रताड़ित किया जाता है कि वे मुसलमान हैं. हालांकि इस दुष्प्रचार का कोई व्यापक असर नहीं होता है फिर भी युवाओं के मन में यह बात तो अवश्य ही आती है कि उनकी गलती क्या थी ? अब देश को इस बारे में सोचना ही होगा क्योंकि जब देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी को सुरक्षा और जीवन से जुडी हुई चिंताओं के बीच आतंकी संगठन से सांठ-गांठ होने के संदेह में लम्बे समय तक हिरासत में इन कोई मुक़दमा चलाये रखने की प्रवृत्ति दिखाई देगी तो उसके परिणाम बहु अच्छे भी नहीं हो सकते हैं. आज गृह मंत्री और पीएम के पास देश के अन्य पुराने कानून को समाप्त करने और उनके स्थान पर नए कानून लाने के अपने प्रयासों के बीच इस दिशा में भी गंभीरता के सह सोचना ही होगा क्योंकि जब तक देश के अंदर के माहौल को और भी अच्छा नहीं किया जायेगा तब तक दोनों तरफ से संदेह के बादलों की धुंध छंटने वाली नहीं है.

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