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रेलवे की कमाई के स्रोत

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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यदि किसी से पूछा जाये कि उसके लिए किसी भी तरह के सामान की खरीददारी या अन्य सेवा लेने पर खुले पैसे न होने से क्या लाभ या हानि हो सकती है तो संभवतः इस बात का सही जवाब कोई भी न दे पाये पर एक सूचना में मांगी गयी जानकारी के अनुसार रेलवे केवल खुले पैसे न लौटाने की अपनी नयी नीति के चलते १८०० करोड़ रूपये बिना किसी सेवा के ही कमा लेता है. खुद रेल मंत्रालय ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि जब से रेलवे बोर्ड ने खुले पैसे लौटने सम्बन्धी नए आदेश को लागू किया है तब से प्रति वर्ष १८०० करोड़ का राजस्व इस मद से उसके खाते में आ रहा है इस धन की तुलना इस बात से की जा सकती है कि इस इस सदी की शुरुवात में जब टाटा मोटर्स ने अपने कार संयंत्र को शुरू किया था तो उस पूरी परियोजना की लागत ही १७०० करोड़ रूपये थी. यदि आज रेलवे के सन्दर्भ में इस बात को देखा जाये तो इस धनराशि से वह प्रतिवर्ष लगभग १२०० किमी लम्बी नयी रेल लाइन का विद्युतीकरण कर सकता है. यह धनराशि अपन आप में बहुत बड़ी है पर जिस तरह से इसे जबरन वसूला जा रहा है क्या उसे लोकतंत्र में सही कहा जा सकता है और क्या इस तरह से मनमानी करने का अधिकार रेलवे या किसी अन्य सरकारी क्षेत्र को मिला हुआ है ?
भारतीय रेल अपने आप में बहुत बड़ा संगठन है और उसके लिए इतनी धनराशि बहुत बड़ी नहीं कही जा सकती है तो इस परिस्थिति में जब लोगों से धन वसूला ही जा रहा है तो क्या उसका कहीं पर सदुपयोग भी हो रहा है यह वह भी रेलवे के उसी तरह के कामों में खर्च होता जा रहा है जहाँ पर वह ध्यान ही नहीं दे पाती है और उसका नुकसान ही होता रहता है. हालाँकि अभी तक इस मुद्दे पर हाई कोर्ट ने याचिका स्वीकार नहीं की है क्योंकि वह इस मामले की गुणवत्ता की परीक्षा करने में लगा है फिर भी जनता से इस तरह की चोर-बाज़ारी करने का अधिकार रेलवे को किसने दिया है और यह सब तब है जब सरकार और खुद रेलवे विभिन्न तरह की सेवाओं के एवज में रोज़ ही नहीं सेस लगाने में कोई कोताही नहीं कर रही हैं तो क्या उसे यह अधिकारी भी मिलना चाहिए कि वह इन मुद्दों पर भी अपने अनुसार निर्णय ले सके ? यदि रेलवे की तरफ से ऐसे उपाय किये जाते हैं तो आने वाले समय में विभिन्न राज्यों के परिवहन मंत्रालयों द्वारा भी इसी तरह की हरकतें की जा सकती हैं जिनसे निपट पाना किसी के बस में नहीं होगा तो इस बात पर विचार करना भी आवश्यक हो जाता है और जनता के लिए चलायी जाने वाली रेल इस तरह से जनता के ऊपर से ही निकालने के प्रयासों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.
आज जब ईंधन के मद में ही रेलवे को बड़ा खर्च करना पड़ रहा है तो उसे विभिन्न तरीकों को अपना कर रेलवे में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि उसके पास लम्बे चौड़े प्लेटफॉर्म होने से जगह की कोई समस्या नहीं रहती है और आने वाले समय में जिस तरह से प्लेटफॉर्म पर छत लगायी जाती हैं उनके स्थान पर हर प्लेटफॉर्म के लिए अपनी बिजली आवश्यकतों कि पूर्ति के लिए सौर ऊर्जा संयंत्र लगाये जा सकते हैं जो प्रारम्भ में भले ही कीमती हों पर अपनी लम्बे सेवाओं के चलते वे जल्दी ही लागत को भी निकालने में सक्षम हो सकते हैं. रेलवे को अपने संसाधनोें के बेहतर प्रबंधन के बारे में सोचने की आवश्यकता है और जिस भी मद से उसे आय हो रही है उसे सही तरीके से प्रयोग में लाया जाये तथा साथ ही उसकी गुणवत्ता भी सुधारी जाये तो उससे यात्रियों को भी सही लाभ मिल सकेगा. फिलहाल इस तरह की कोशिशों के बारे में रेलवे को गंभीरता से सोचना ही होगा क्योंकि जिस तरह से सरकार २५०० रूपये प्रति घंटे के कैप के साथ हवाई यात्रा को सुगम बनाने की कोशिशें कर रही है उसके परवान चढ़ने पर रेलवे को उच्च श्रेणी से होने वाली आय पर निश्चित रूप से घाटा ही होने वाला है और उस घाटे से बचने के लिए अभी से कमर कसने कि आवश्यकता भी है.

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