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जन-धन योजना के लाभ

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश के दूर दराज़ के गांवों में रहने वाली जनता के पास बैंकिंग सेवाओं की पहुँच बनाये रखने के लिए २०१२ में लालकिले से अपने सम्बोधन में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने यह घोषणा की थी की २०१४ तक देश में बैंकिंग ढांचे को इतना मज़बूत कर लिया जायेगा कि उन सभी लोगों के पास एक बैंक खाता आवश्य होगा जो अभी इस सुविधा से वंचित हैं. इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए जिस तरह से २०१२ से ही बैंकों को सीधे निर्देश दिए गए और उसी क्रम में पिछले वर्ष पीएम मोदी द्वारा इस योजना को सितम्बर माह से लागू कर दिया गया था. एक वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी लोगों को इस योजना के बारे में सही तरह से न बताये जाने के कारण ही अभी भी बैंकों को इसका पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है क्योंकि इन खातों के साथ न्यूनतम संचालन की जो अवधि निर्धारित की गयी है आम लोगों को उसके बारे में जागरूक ही नहीं किया गया है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि नियमित सञ्चालन होने वाले खातों को ही ही इससे मिलने वाले सभी लाभ मिल सकते हैं और जिनके द्वारा यह शर्त पूरी नहीं की जाएगी वे हर तरह के लाभ से वंचित हो जायेंगें.
इस योजना से आम जनता को तो अभी उतना लाभ नहीं मिल सका है जितना मिलने की संभावनाएं हैं पर यह योजना एक सफल अर्थशास्त्री पीएम मनमोहन सिंह का सपना होने के चलते आज बैंकों के लिए वरदान बन चुकी है जिससे देश के सभी बैंकों के जीरो बैलेंस खातों की संख्या में भारी गिरावट देखने को मिली है. इस योजना से पहले बैंकों के जीरो बैलेंस वाले खाते लगभग ७७% थे जो अब घटकर ३६% पर आ चुके हैं और आने वाले समय में यदि इस योजना के बारे में ग्राम स्तर पर चौपालों में विस्तार से बताय जाये तो जिन लोगों ने अभी तक इस योजना की शर्तों एक अनुरूप खातों के सञ्चालन पर ध्यान नहीं दिया है वे भी आसानी से इस योजना का पूरा लाभ उठा सकते हैं. इतना ही नहीं इतने छोटे प्रयास से आज इस योजना के तहत बैंको के पास लगभग २७००० करोड़ रूपये जमा हो चुके हैं जिनके माध्यम से बैंकों की स्थिति भी अच्छी हुई है और सरकार के पास इतनी बड़ी धनराशि भी आसानी से आ गयी है. योजना के स्वरुप को अभी और भी व्यापक करने की आवश्यकता है और जिन लोगों की इसकी सुविधाओं के बारे में पूरी जाकारी नहीं है उन तक पहुंचना भी एक चुनौती भरा कदम साबित हो सकता है.
सरकार ने इस योजना से बैंको के माध्यम से जो लाभ पाया है वह अपनी जगह पर है पर अब बैंकों को एक बार पूरे देश में अभियान चलाकर उन खातों को बंद करने के बारे में सोचना चाहिए जो केवल बिना सोचे समझे ही खोल दिए गए थे. इसके तहत लोगों को अपने मूल खाते को जनधन योजना में बदलने के विकल्प के बारे में बताया जाना चाहिए जिससे वे अनावश्यक रूप से कई खाते खोलकर न बैठ जाएँ और इन दोहरे पर बेकार पड़े खातों को सँभालने के लिए बैंकों को अपने संसाधन भी जुटाने पड़ें. बैंकिंग सेक्टर को जितना वर्तमान व्यवस्था में सुधारा जा सकता है उसके लिए गंभीर प्रयास करने होंगें और यह केवल वित्त मंत्रालय के आदेशों से ही संभव है क्योंकि जब तक बैंकों की परिचालन लागत को सही करने में सफलता नहीं मिलेगी तब तक इस तरह कि योजनाएं भी उनके लिए बड़ा सरदर्द साबित हो सकती हैं. जन-धन योजना की वर्तमान सफलता के साथ ही जीरो बैलेंस वाले खातों के प्रतिशत को और भी निचले स्तर पर लाने के लिए वित्त मंत्री जेटली को भी नए सिरे से सोचना होगा. पीएम बनने के बाद मोदी ने भी जिस तरह से मनमोहन सिंह की नीतियों की तारीफ की थी तो देशहित में यदि सरकार उनसे कोई सलाह लेना चाहेगी तो वह भी उसे आसानी से मिल सकेगी.

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