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कोयला घोटाला और मनमोहन सिंह

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश के अब तक के सबसे सौम्य और मृदु भाषी पीएम रहे मनमोहन सिंह के लिए कल का दिन एक बड़ी राहत लेकर आया क्योंकि सीबीआई ने विशेष अदालत में स्पष्ट और कड़े शब्दों में झारखण्ड के पूर्व सीएम मधु कोड़ा की उस दलील का विरोध किया जिसमें उनकी तरफ से मनमोहन सिंह को सह आरोपी के तौर पर इस मामले में घसीटने की कोशिश की थी. सीबीआई ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि इस मामले में पूर्व पीएम के किसी भी साजिश में शामिल होने का कोई सबूत कहीं से भी नहीं मिलता है इसलिए उन्हें सम्मन जारी करने का कोई मतलब भी नहीं है. सीबीआई ने यह भी स्पष्ट किया कि कोड़ा जानबूझ कर समय लेने के लिए इस तरह की बातों से कोर्ट को गुमराह करने और समय खराब करने की कोशिशों में लगे हुए हैं जिससे सुनवाई में और भी विलम्ब संभव हो तो कोर्ट ने इस मामले पर अपना निर्णय १६ अक्टूबर तक सुरक्षित रखा है. सभी जानते हैं कि अपने मंत्रियों को काम करने की खुली छूट और कुछ गठबंधन के दबाव के चलते मनमोहन सिंह कुछ मामलों में कठोर कार्यवाही नहीं कर पाये थे जिसका खामियाज़ा आज उन्हें भुगतना पड़ रहा है.
देश के राजनेता गैर राजनैतिक लोगों को किस तरह से कानूनी दांव पेंचों में उलझा सकते हैं यह राजीव गांधी और मनमोहन सिंह दोनों मामलों में देखा जा सकता है राजीव गांधी की छवि ख़राब करने के लिए जिस तरह से विपक्ष ने विश्व नाथ प्रताप सिंह को अपना मोहरा बनाया था वहीं मनमोहन सिंह के खिलाफ कुछ भी न मिलने की स्थिति उनके सहयोगियों के निर्णयों को लेकर उन पर वे आरोप लगाये गए थे जिनके बारे में वे सोच भी नहीं सकते थे. नीतिगत मुद्दे जब कानूनी जटिलताओं में उलझ जाते हैं तो किसी भी सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुए लोगों के लिए काम करना मुश्किल हो जाता है. मनमोहन सिंह राजनीति के लिए पूरी तरह से अनुपयुक्त व्यक्ति थे, हैं और रहेंगें पर उनकी समग्र क्षमताओं को देखते हुए कांग्रेस की तरफ से उनको जो सम्मान दिया गया उन्होंने बिना राजनैतिक लाभ हानि के उसको निंभाने की ईमानदार कोशिश की परन्तु यहाँ भी उनके साथ वही हुआ जो किसी भी गैर राजनैतिक व्यक्ति के साथ देश में हुआ करता है. घाघ राजनेताओं ने उनकी सौम्यता का लाभ अपने हितों को साधने के लिए किया जिससे उनके भ्रष्टाचार के छींटें मनमोहन सिंह के उजले दामन पर भी पड़े.
अब जब बात आरोपों को साबित करने की आ रही है तो उनके खिलाफ किसी भी तरह के कोई सबूत जाँच एजेंसियों को नहीं मिल पा रहे हैं और वे कोई सामन्य व्यक्ति नहीं है जिनके खिलाफ सीबीआई या अन्य कोई भी जाँच एजेंसी कुछ भी करने लगे क्योंकि उनकी तरफ से भी मंझे हुए वकील पैरवी करने में लगे हुए हैं जिससे सीबीआई को भी यह स्वीकार करना पड़ रहा है कि इस तरह की किसी भी साज़िश को रचने में मनमोहन सिंह की किसी भी स्तर पर संलिप्तता नहीं पायी जा सकी है इसलिए उन्हें इस तरह से नहीं बुलाया जा सकता है. यह पूरा मामला कहीं न कहीं से सीबीआई के दुरूपयोग से जुड़ा हुआ भी लगता है जो सदैव से ही केंद्र में बैठी हुई सरकारें करती रही हैं. अपने लाभ हानि को देखते हुए केंद्र सरकार अपने या अन्य पार्टियों के नेताओं को सबक सिखाने के लिए कई बार नए पुराने मामलों को इस तरह से उछालने की कोशिश किया करती है जिससे लोगों के बीच उस नेता या उसकी पार्टी की छवि को धूमिल किया जा सके. जाँच एजेंसियों को भरपूर स्वतंत्रता मिलनी चाहिए और उन्हें निरंकुश होने से बचाने के लिए हर संभव उपाय भी किये जाने चाहिए जिससे इसकी छवि अच्छी हो सके तथा इसका राजनैतिक दुरूपयोग भी रोका जा सके.

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