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नेपाल समस्या और भारत

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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जब नए संविधान को स्वीकार करने के बाद तराई क्षेत्रों में फैले हुए असंतोष को समाप्त करने के लिए भारत की तरफ से उचित और त्वरित निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है तो उस स्थिति में भारत सरकार का स्थितियों को उनके भरोसे ही छोड़ देने की नीति किसी भी तरह से भारत नेपाल संबंधों को मज़बूत नहीं कर सकती है. यह सही है कि संविधान में किये गए कुछ प्रावधानों से वहां तराई क्षेत्र में रह रहे मधेशीयों के अधिकारों में कटौती होने की पूरी संभावनाएं है पर इस तरह से क्या मधेशियों के हाथों भारत सरकार नेपाल का भविष्य छोड़ सकती है जहाँ से सब कुछ सम्भालना एक बार फिर से कठिन हो जाये ? प्राकृतिक आपदा के समय जिस तरह से भारत ने अपने पडोसी होने का धर्म निभाया था क्या आज जब नेपाल के सामने इतना बड़ा संकट आ चुका है तो उसे सुलझाने के लिए उसके साथ खड़े होने की आवश्यकता हमारे सत्ता के गलियारों में महसूस नहीं की जा रही है ? माओवादियों के संकट के समय भारत के पास लम्बे समय तक कोई विकल्पहि नहीं था जिस पर वह विचार कर सकता पर आज जब सब कुछ लगभग सामान्य ही है तो सरकार का इस तरह का बर्ताव आखिर नेपाल के निवासियों को भारत के साथ कैसे रख पाने में सफल हो सकेगा ?
कहीं ऐसा तो नहीं है कि नेपाल के अपने आप को धर्म निरपेक्ष बनाये जाने के फैसले से मोदी सरकार नाराज़ है क्योंकि उसके मातृ संगठन का सपना विश्व में हिन्दू राष्ट्रों की स्थापना का ही है तो अब मोदी और उनकी सरकार नेपाल को यह सबक सीखने की कोशिशें कर रही हो जिसमें उनकी राय की अवहेलना करने के परिणाम नेपाल को भुगतने के लिए छोड़ने का विकल्प भी हो ? नेपाल के साथ अब भारत को बड़े भाई जैसा व्यवहार बंद करना ही होगा और मधेशियों के साथ वहां की मूल जनता किस तरह के सम्बन्ध चाहती हैं यह भी उनके लिए ही छोड़ना चाहिए क्योंकि यह उनकी अपने समस्या है और उनके द्वारा अपनाये गए संविधान के साथ भारत को खड़े होना चाहिए क्योंकि किसी भी सम्प्रभु देश के निर्णय को किसी भी अन्य देश द्वारा कैसे प्रभावित किया जा सकता है ? नेपाल के सामने आई इस परिस्थिति से निपटने में भारत को वहां की सरकार की मदद करते हुए उसके निर्णय का सम्मान करना सीखना चाहिए क्योंकि आज भारत के पड़ोसियों में नेपाल और भूटान की तरफ से ही हमें कोई खतरा नहीं है और बाकि सभी देशों के साथ सीमा पर लगती समस्याओं के चलते ही बहुत कठिन परिस्थिति उत्पन्न होती रहती है.
भारत के मज़बूत कहे जाने वाले पीएम मोदी की सरकार किस तरह से मधेशियों की मांगों का मूक समर्थन कर रही है यह किसी से भी छिपा नहीं है भारत की तरफ से नेपाल को हर तरह की सहायता और सहयोग देने की स्थिति को किसी भी परिस्थिति में बदला नहीं जाना चाहिए क्योंकि यह एक ऐसी बुरी स्थिति होगी जिसका आज भारत सरकार को अंदाज़ा नहीं है. नेपाल को भारत की इस चुप्पी या मधेशियों का मौन समर्थन किये जाने की स्थिति में यदि नेपाल का झुकाव चीन की तरफ अधिक होता है तो भारत उससे कैसे निपटेगा ? चीन के साथ भले ही मोदी के कितने भी अच्छे रिश्ते दिखाई देते हों वह कभी भी मज़बूत होते भारत के लिए रास्ता साफ़ नहीं करना चाहेगा यूएन की वार्षिक बैठक में उसके वक्तव्यों से तो ऐसा ही लगता है. नेपाल की जनता ने आखिर क्या गलती की है जो उसे मधेशियों के द्वारा शुरू किये गए इस आर्थिक नाकेबंदी को अनावश्यक रूप से झेलना पड़े. नेपाल ने अपने सबसे विनाशकारी भूकम्प से अभी पूरी तरह निजात भी नहीं पायी है तो ऐसे में भारत की तरफ से इस अघोषित आर्थिक नाकेबंदी का क्या मतलब बनता है ? भारत को नेपाल जाने वाले सामान की पूरी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी खुद ही उठानी चाहिए और नेपाल सरकार से अपने क्षेत्र में मालवाहक वाहनों की सुरक्षा की मांग करते हुए आपूर्ति को बहाल करने के लिए कड़े निर्णय लेने चाहिए.

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