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सुरक्षित हवाई यात्रा और भारत

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश में तेज़ी से बढ़ रहे विमानन उद्योग के साथ ही रोज़ नयी कंपनियां भी सामने आती रहती हैं और यह देश के उन नागरिकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं जो बदलते परिवेश में हवाई यात्रा की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. भारत में हवाई यात्रा के सुरक्षित होने को लेकर सदैव ही कई तरह की बातें सामने आती रहती हैं जिनमें अधिकतर मामलों में परिचालन से सम्बंधित लापरवाहियां भी सामने आती हैं. १८ अगस्त को दोहा से कोच्चि आ रहे जेट एयरवेज के बोइंग ७३७-८०० विमान के साथ जिस तरह की बातें सामने आ रही हैं उससे यही लगता है कि सुरक्षा मानकों की देश में लगातार अनदेखी की जा रही है और यात्रियों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ भी किया जा रहा है. नियमों के अनुसार किसी भी विमान में १५०० किग्रा तेल रिज़र्व में होना ही चाहिए जो उसकी तीस मिनट की उड़ान के लिए पर्याप्त होता है पर इस घटना में इस विमान के उतरने के बाद उसमें केवल २७० किग्रा तेल ही शेष पाया गया जिससे साफ़ पता चलता है कि पायलटों ने स्पष्ट रूप से निर्धारित मानकों की अनदेखी की थी जिसके लिये उन्हें प्रथम दृष्टया दोषी मानते हुए निलंबित कर दिया गया है.
देश में निर्धारित नियमों के अनुसार एयरपोर्ट पर उतरने के दौरान लगने वाले टैक्सी फ्यूल, गंतव्य तक पहुँचने वाले ट्रिप फ्यूल, ट्रिप फ्यूल का ५% कंटिंजेंसी फ्यूल, अल्टेरनेटिव फ्यूल और ३० मिनट का होल्डिंग फ्यूल किसी भी उड़ान में होना ही चाहिए पर इस मामले में हर तरह से सभी मानकों की अनदेखी सामने आई है. यह सही है कि विमान को कोच्चि में उतरना था पर वहां पर कई प्रयासों के बाद भी जब विमान को उतारा नहीं जा सका तो पायलट ने विमान को तिरूवनन्तपुर ले जाने की बात कही जबकि कोच्चि से बंगलोर हवाई अड्डा पास में है. इस तरह की परिस्थिति में आखिर एटीसी के पास कितने अधिकार होते हैं और उनमें से वह कितने का उपयोग कर सकता है जब पायलट की तरफ से इस तरह की ज़िद की जाये क्योंकि यात्रियों की सुरक्षा उस स्थिति में इन दोनों पर ही निर्भर करती है. विमान को बंगलोर के स्थान पर अधिक दूरी के हवाई अड्डे तिरुवनंतपुर ले जाने के पीछे पायलट की क्या मंशा थी यह भी देखे जाने की आवश्यकता है क्योंकि इस तरह से समय पर लैंडिंग न होने पाने से हर तरह की परिस्थिति को ध्यान में रखना ही होता है जिसके बाद ही कोई निर्णय लिया जा सकता है. यह जानकारी मुहैया करने के बाद भी कि बंगलोर में मौसम बेहतर है विमान को तिरूवनन्तपुर ले जाया गया संभवतः इसके कारण ही उसके ईंधन में इतनी कमी हो गयी थी.
यह तो अच्छा ही रहा कि समय रहते लैंडिंग हो गयी वर्ना अगले १० मिनट के ईंधन के साथ विमान के पायलट के पास कितने विकल्प बचे थे यह वह भी जानता है और एटीसी के पास भी इसकी पूरी जानकारी होती है. इस मामले में मौसम खराब होने की परिस्थिति से जिस तरह से निपटा गया वह अपने आपमें बहुत ही गंभीर बात है क्योंकि मौसम की खराबी के चलते कई बार विमानों को अपने गंतव्य से दूसरी जगह पर उतारना पड़ता है और यह सामान्य सी बात है पर इसमें सुरक्षा सम्बन्धी मानकों की अनदेखी क्या किसी बड़ी दुर्घटना को जन्म नहीं दे सकती है यही सोचने का विषय है. आखिर पूरी परिस्थिति में क्या हुआ यह तो जांच के बाद ही सामने आ पायेगा पर भविष्य में इस तरह की परिस्थितियों से बचने के लिए क्या किया जाना चाहिए यह सोचने का विषय है. देश में बढ़ते हुए हवाई यातायात के बीच अब यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इस तरह की घटनाएँ दोबारा न होने पाएं और इसके लिए नियामक को और भी कठोर निर्णय लेने के लिए सोचना चाहिए क्योंकि लापरवाही के कारण किसी भी विमान को इस तरह से खतरे में डालने को आज के वैज्ञानिक युग में पूरी तरह से मूर्खता ही कहा जा सकता है.

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