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सुषमा स्वराज-ललित मोदी प्रकरण

***.......सीधी खरी बात.......***
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देश में किसी भी कार्य को संपन्न करने के लिए कई रास्ते लोगों द्वारा अपनाये जाते हैं और मोदी सरकार में अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही सुषमा स्वराज द्वारा विदेश मंत्री के तौर पर आईपीएल घोटाले में शामिल और भारत सरकार द्वारा भगोड़ा घोषित ललित मोदी की कथित मानवीय आधार पर मदद किये जाना का मामला सामने आया है वह सुषमा के राजनैतिक भविष्य को भी निर्धारित करने का काम कर सकता है. किसी भी व्यक्ति की मानवीय आधार पर मदद करना भारतीय संस्कृति रही है पर जो व्यक्ति कानून की नज़रों में संदिग्ध हो देश की विदेश मंत्री द्वारा उसकी इस तरह से की जाने वाली मदद को किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए ? नि:संदेह इस पूरे मामले में कुछ ऐसी बातें भी सामने आ रही है जिनसे विपक्ष को सीधे तौर पर सरकार और मोदी पर हमला करने का अवसर मिल रहा है अभी पिछले महीने ही एक साल की सरकार को भ्रष्टाचार मुक्त सरकार घोषित करने वाले पीएम के लिए यह समय अवश्य ही कठिन गुजरने वाला है और संभवतः बिहार चुनावों तक इसकी गूँज शांत न हो सके.
जिन नेताओं ने अपनी मेहनत से भाजपा को देश में पहचान दिलाई थी आज वे मोदी-शाह की जोड़ी द्वारा पूरी तरह से हाशिये पर धकेल दिए गए हैं और इस स्थिति में आखिर सुषमा को मोदी जिस तरह से बर्दाश्त ही कर रहे थे उसमें ललित मोदी प्रकरण से उनके विदेश मंत्री पद पर बने रहने पर भी संदेह के बादल मंडराने लगे हैं. खुद मोदी को भी पता है क़ि इस तरह के मामलों में जिस स्तर पर भाजपा की तरफ से राजनीति की जाती रही है उससे अब खुद भाजपा के लिए बच पाना मुश्किल ही लग रहा है तो जब विपक्ष ललित मोदी को लेकर नरेंद्र मोदी पर सीधे हमले करने की स्थिति में पहुंचा ही जा रहा है तो ऐसे में सरकार की साख बचाने के लिए सुषमा के मंत्रिपद को भी वापस लिया जा सकता है. संभवतः मोदी-शाह की जोड़ी का यह एक ऐसा दांव भी जिस पर चलकर वे आसानी से सुषमा को सरकार से दूर करने में सफल हो सकते हैं. भाजपा के बड़े नेताओं को बाहर रखने के बाद सुषमा ही भाजपा में ऐसी सर्वमान्य नेता हैं जो आने वाले समय में मोदी के विपरीत माहौल बनने पर पीएम पद की दावेदार हो सकती हैं और उन पर संघ को भी कोई आपत्ति नहीं होगी संभवतः इसलिए ही शाह- मोदी उनकी राजनीति को पूरी तरह से ख़त्म करने की कवायद शुरू कर चुके हैं.
भारत सरकार को इस तरह के किसी भी मामले में आखिर क्या करना चाहिए आज यह भी विचारणीय है क्योंकि जिस व्यक्ति की खोज में सरकार लगी हुई है और उसके लिए ही विदेश मंत्री के स्तर से ऐसी मदद की जाती है तो इसे किस तरह से लिया जाना चाहिए ? कानूनी बाध्यताएं अपनी जगह पर हैं पर मानवीय संवेदनाओं को भी पूरी तरह से दरकिनार नहीं किया जा सकता है यहाँ तक कई बार कोर्ट भी मानवीय आधार पर गंभीर आरोपों में सजा पाये व्यक्तियों तक के साथ नरम रवैय्या अपनाती है. यदि विदेश मंत्री की हैसियत से सुषमा ने ललित मोदी की कोई मदद की थी तो उसे इसी रूप में पूरी कारणों के साथ सार्वजनिक कर दिया जाना चाहिए था जिससे उस समय मानवीय आधार का मसला होने के कारण विपक्ष को भी इस तरह हमले करने के अवसर नहीं मिल पाते. जिस व्यक्ति की सीधे विदेश मंत्री की तरफ से पैरवी की जा रही हो क्या वह देश के अंदर अपने प्रभाव से कानून और जांचों को प्रभावित करने की क्षमता नहीं रखता है आज यही सबसे बड़ा प्रश्न सामने है. उल्लेखनीय है क़ि प्रवर्तन निदेशालय ने भी पूरा मामला उखड़ने के बाद ललित मोदी को १७०० करोड़ के विदेशी मुद्रा उल्लंघन के मामले में नोटिस जारी कर सरकार को भ्रष्टाचार मुक्त दिखाने की कोशिशें भी शुरू कर दी हैं.

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