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राष्ट्रगान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीयता

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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लगता है कि जनता द्वारा दिखाए जा रहे भरपूर समर्थन के बीच कुछ नेताओं द्वारा संविधान द्वारा मान्य और परंपरा के रूप में स्थापित मानकों का उल्लंघन करना एक नयी तरह की राजनीति करने की शुरुवात भर ही है. कश्मीर घाटी में अलगाववादियों के उकसावे और समर्थन के चलते भारतीय झंडे का अपमान किये जाने और पाकिस्तानी झंडे लहराने की ख़बरें तो आती ही रहती है पर कल जिस तरह से तमिलनाडु की सीएम जयललिता के दोबारा शपथ लेने के समय उनके महूर्त को सही समय से मिलाने के लिए राष्ट्रगान को ही संक्षिप्त रूप में बजाया गया उसे किस श्रेणी के राष्ट्रवाद में रखा जाना चाहिए ? राष्ट्रवाद की यह परिभाषा किसी भी तरह से सही नहीं कही जा सकती है क्योंकि जब तक पूरे देश में सरकारी कार्यक्रमों में राष्ट्रीय या राज्य के सम्मान से जुड़े हुए प्रतीकों का ही अनादर रोकने के लिए कठोर प्रयास और अनुशासन का सहारा नहीं लिया जायेगा तब तक किसी भी तरह से किसी पर उंगली नहीं उठाई जा सकती है. राष्ट्रीय सम्मान से जुड़े हुए मसलों पर देश को किस तरह से निपटना चाहिए संभवतः इस पर राजनैतिक कारण और तात्कालिक लालच अधिक प्रभावी हो जाते हैं.
यह सही है कि तमिलनाडु देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ नेताओं के लिए उनके समर्थक बहुत आसानी से अपनी जान तक दे दिया करते हैं फिर उस राज्य में इस तरह की घटना के लिए किसी भी सरकारी या राजनैतिक स्तर पर कोई गंभीर प्रतिक्रिया नहीं सुनाई देना अपने आप में चिंताजनक भी है. यदि खुद जयललिता इस बात को गलत मानती हैं तो उन्हें इस पर कठोर कार्यवाही करने के बारे में सोचना चाहिए पर जिस भी अधिकारी के निर्देश पर यह काम किया गया होगा वह निश्चित तौर पर यह भी जानता होगा कि तमिलनाडु में रहकर किसी भी तरह से जया की हर बात का सम्मान करना ही पड़ता है भले ही उससे देश के सम्मान में कुछ कमी आती हो. ज्योतिष में बहुत अधिक विश्वास करने वाली जया के लिए इस बार का शपथग्रहण बहुत ही महत्वपूर्ण था और संभवतः इस पूरे कार्यक्रम को अधिकारियों के स्थान पर ज्योतिषियों के परामर्श से ही बनाया गया था क्योंकि केवल राष्ट्रगान का समय काटने के अलावा वहां पर लगभग सभी औपचारिकताएं पूरी ही की गयी थीं जिससे ऐसा भी लगता है कि देश की प्रतिक्रिया जाने के लिए संभवतः ऐसा किया गया हो ?
अब जब बात बात में राष्ट्रीयता और देश भक्ति की बातें करने वाली राष्ट्रवादी भाजपा की सरकार है और राज्यसभा में उसकी कमज़ोर स्थिति के चलते वह अपने महत्वपूर्ण बिलों को पारित कराने के लिए किसी भी तरह से सरकार के अंदर और बाहर अधिक समर्थन जुटाने की कोशिशों में लगी हुई है तो उसका खोखला राष्ट्रवाद कहीं किसी कोने में पड़ा हुआ धूल खाता हुआ आसानी से देखा जा सकता है. कश्मीर घाटी में जिस तरह से लगभग हर शुक्रवार पाकिस्तानी झंडे लहराए जा रहे हैं उसके बाद भी भाजपा की तरफ से कुछ भी नहीं कहा जा रहा है जबकि विपक्ष में होने पर वह अलगाववादियों के बयानों पर ही बहुत हो हल्ला मचाया करती थी ? यदि राष्ट्रगान सम्बंधित यह घटना यूपी, बिहार या बंगाल में हुई होती तो भाजपा के संबित पात्रा जैसे पता नहीं कितने प्रवक्ताओं की फ़ौज़ इस बात को उखाड़ने में लगी रहती और उन पर सीधे तौर पर देश द्रोही होने का आरोप लगाने से भी नहीं चूकती ? इस बार भाजपा और मोदी को दक्षिण में अम्मा की ठीक वैसी ही ज़रूरत है जैसे कि उत्तर में मुफ़्ती की इसलिए कश्मीर या तमिलनाडु में जो कुछ भी हो रहा है उसमें भाजपा के स्वार्थ और दोहरे रवैये के कारण भारतीय सम्मान को रोज़ ही कहीं किनारे रखा जा रहा है और जनता पीएम के उस नारे को याद कर रही है कि “देश नहीं झुकने दूंगा” ???

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