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अरुण शौरी का मोदी पर हमला

***.......सीधी खरी बात.......***
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देश के जाने माने पत्रकार से नेता बने बाजपेई सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालयों को संभाल चुके अरुण शौरी ने जिस तरह से सरकार बनने के एक वर्ष पर दिए गए अपने एक इंटरव्यू में मोदी सरकार के साथ ही मोदी-शाह-जेटली की तिकड़ी पर करारा हमला किया है उससे यही पता चलता है कि आने वाले समय में भले ही मोदी को कोई बड़ी परेशानी न झेलनी पड़े पर उसके पहले पीएम अटल के वरिष्ठ और प्रभावी मंत्रियों द्वारा इस तरह के बयान दिए जाने से विपक्ष को उन पर हमले करने के अवसर आसानी से उपलब्ध होने वाले हैं. आज जब सरकार अपने कार्यकाल के बारहवें महीने में पहुँच रही है तो उसकी और पार्टी की तरफ से अपने कार्यकाल की उपलब्धियों की चर्चा बड़े स्तर पर किये जाने के साथ ही उनको जनता तक पहुँचाने की पूरी कोशिश की जाएगी पर सदन में कमज़ोर विपक्ष की बजाय जब सत्ताधारी दल के वरिष्ठ और मंझे हुए नेताओं की तरफ से इस तरह की बातें की जाने लगें तो जनता का एक वर्ग जो बड़ी उम्मीदों के साथ सरकार के साथ जुड़ा था वह भी इनकी बातों को सही मानते हुए इस पर विचार करने ही लगता है जिससे सरकार के बारे में नकारात्मकता का प्रतिशत बढ़ने की पूरी संभावनाएं होती हैं.
शौरी ने विपक्ष द्वारा मोदी सरकार को प्रचार की सरकार कहने की बातों का भी अपरोक्ष रूप से समर्थन ही किया और कहा कि यह सरकार केवल अपने कामों का बखान ही अधिक करती रहती है जिससे धरातल पर कोई परिवर्तन नहीं आता है इस स्थिति में जब सरकार को आये एक वर्ष पूरा हो रहा है तो उसके द्वारा किये गए अधिकांश वायदे आज भी वैसे ही हैं क्योंकि प्रचार के दौरान मोदी ने संप्रग सरकार पर हमले करते समय उन मुद्दों पर भी जमकर राजनीति की जिन पर उनका या किसी भी देश के पीएम का कोई नियंत्रण संभव ही नहीं है. आज उन बातों को पूरा करने में मोदी सरकार पूरी तरह से असफल ही नज़र आ रही है क्योंकि वे खोखले वायदे ही थे. हाँ जिन मामलों में सरकार काम कर सकती थी उसने किये भी हैं पर किसी भी देश के लिए एक दो दशक में केवल नीतियों का संशोधन और परिवर्तन ही किया जा सकता है उसके परिणाम सामने आने में कई बार काफी लम्बा समय लग जाता है. आज मोदी सरकार के अथक प्रयासों के बाद भी मेक इन इंडिया ज़ोर नहीं पकड़ पा रहा है क्योंकि सरकार नीतिगत परिवर्तन के साथ विदेशी निवेशकों को उस स्तर पर निवेश करने के लिए समझा नहीं पा रही है जिसके आज आवश्यकता है.
मोदी सरकार एक प्रचार वाली सरकार है यह बात अरुण शौरी ने भी स्वीकार की है और काम करने से अधिक उन बातों को प्रचारित करने को लेकर पीएम को शौरी ने कटघरे में खड़ा भी किया है. देश में रिबेरो की सामाजिक चिंता के साथ दीपक पारेख की आर्थिक चिंता आदि के बयानों से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार के काम उस स्तर पर चल नहीं पा रहे हैं जिनके दावे मोदी द्वारा किये जा रहे हैं. शौरी के अनुसार देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए माहौल बिगड़ने पर भी मोदी की चुप्पी या एक आध खोखले टाइप बयान आने से भी देश की छवि को बट्टा ही लग रहा है. यदि मोदी यह समझते हैं कि अपने धार्मिक उन्मादी कट्टर हिंदुत्व के समर्थकों की हर हरकत पर चुप रहकर वे विदेशी निवेश को आकर्षित कर लेंगें तो यह उनका सपना ही रह जाने वाला है. जिन क्षेत्रों में सस्ते श्रम के दम पर मेक इन इंडिया का नारा बुलंद किया जा रहा है क्या कभी मोदी ने यह जानने की कोशिश भी की कि उन क्षेत्रों में कट्टर हिंदुत्व के पैरोकार किस तरह से माहौल को गर्माने में लगे हुए हैं ? इस तरह का धार्मिक ध्रुवीकरण संभवतः कुछ वोट बटोरने के काम तो आ सकता है पर इसके दम पर विदेशों में भारत की साख को बचाये रखने और मेक इन इंडिया जैसे नारों की हर कोशिश विफल ही रहने वाली है. आज पूरी सरकार और पार्टी मोदी के साथ पर क्या वे अपने मंत्रियों, नेताओं को वह सम्मान दे पा रहे हैं जो स्वस्थ लोकतंत्र में उन्हें दिया जाना चाहिए ?

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