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मध्य प्रदेश के सागर ज़िले के किरोड़ गाँव की तारा नामक बच्ची ने अपने घर में शौचालय बनवाने की जिद में दो दिन तक खाना नहीं खाया तो पूरे क्षेत्र में यह बात आग की तरह फ़ैल गयी जिसके बाद पंचायत से लगाकर जिला प्रशासन तक ने तारा के घर में शौचालय की मांग को पूरा करने के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं. मामले की शुरुवात तब हुई जब गांव में एक एनजीओ ने एक अभियान के अंतर्गत स्वच्छता पर अपने विचार रखे जिनको सुनने के लिए तारा भी गयी हुई थी स्वच्छता का महत्व समझ में आने के बाद तारा ने जिद पकड़ ली कि जब तक शौचालय का काम शुरू नहीं होता तब तक वह खाना भी नहीं खायेगी और ११ साल की इस बच्ची ने अपनी इसी जिद में दो दिन तक खाना नहीं खाया. मामला गर्माने और चर्चा में आने के बाद पंचायत के प्रतिनिधि उसे समझाने के लिए उसके घर गए पर उसने तब भी अपनी मांग स्पष्ट रूप से सबके सामने रख दी साथ ही यह भी बताया कि उसके पिता गरीब हैं और उनके पास इतने पैसे भी नहीं हैं फिर भी उन्होंने मेरी जिद को पूरा करने के लिए खुद ही टैंक खोदना शुरू कर दिया है पर पैसे की कमी के चलते आज फिर से काम रुक गया है.
इस मामले में जिला पंचायत के सीईओ ने खुद तारा को समझाने के लिए पूरा एक दिन उसके घर पर बिताया और उसके बाद पत्रकारों को बताया कि स्वच्छता अभियान के तहत मिलने वाले ६००० रूपये उसके परिवार को जल्द ही दिए जायेंगें तथा नियमों के अनुसार शौचालय बन जाने के बाद शेष राशि भी अवमुक्त कर दी जाएगी. इस मामले में एमपी सरकार, जिला प्रशासन या पंचायत की आलोचना करने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है क्योंकि इस मद में सरकार की तरफ से जो भी मद उपलब्ध कराया जाता है उसका पूरी तरह से दुरुपयोग किया जा रहा है और इस पूरे अभियान में अधिकांश राज्यों में भ्रष्टाचार ने अपने पैर मज़बूती से जमा रखे हैं. केंद्र या राज्य सरकार इस तरह एक कामों के लिए सीधे ही पंचायतों को कुछ औपचारिकताओं के बाद निर्माण करवाने हेतु धन का आवंटन करने की छूट देती हैं जिसका असर केवल भ्रष्टाचार के रूप में ही सामने आता है इसलिए अब इस काम को राज्य स्तरीय किसी निष्पक्ष एजेंसी के माध्यम से कराये जाने के बारे में सोचा जाना चाहिए और इसके लिए सुलभ शौचालय जैसी संस्था का सहयोग भी लिया जा सकता है क्योंकि उनको इस क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली हुई है जिसका लाभ उठाया जाना चाहिए.
आज पूरे देश में कमोबेश यही स्थति है कि शौचालय बनाने के लिए आने वाले इस धन की ऊपर तक बंदरबांट की जाती है जिस कारण से भी आवंटित धनराशि का सदुपयोग नहीं हो पाता है तथा देश में स्वच्छता की मुहिम अधूरी ही रह जाया करती है. इस मामले में अब केवल धनराशि आवंटन के स्थान पर हर जिले में किसी काम करने वाले एनजीओ की देखरेख में शौचालयों का सर्वे कराया जाना चाहिए और जिन भी घरों में शौचालय नहीं बने हैं उनमें तुरंत ही सरकार इन एनजीओ की मदद से यह काम शुरू करवा सकती है जिससे सरकार का पैसा भी सुरक्षित रहेगा और ग्रामीणों को विभिन्न कार्यालयों के अनावश्यक चक्कर भी नहीं लगाने पड़ेंगें. एक अन्य योजना के तहत सर्वेक्षण पूरा होने के बाद इस धनरशि को सीधे ग्रामीणों के जनधन खाते में भी भेजकर बीच में इस पैसे के दुरूपयोग से भी बचा जा सकता है क्योंकि आज किसी भी योजना के धन के दुरूपयोग को रोकना देश में एक बड़ी चुनौती बानी हुई है. यदि सरकार इस तरह से सोचे तो इस स्वच्छता अभियान से भ्रष्टाचार को किनारे कर पूरे देश में शत प्रतिशत शौचालय बनाने के लक्ष्य को आसानी से पूरा किया जा सकता है.
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