Menu
blogid : 488 postid : 865748

आरक्षण – नयी नीति की आवश्यकता

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
  • 2165 Posts
  • 790 Comments

संप्रग सरकार द्वारा ४ मार्च १४ को जारी की गयी उस अधिसूचना को इस १७ मार्च १५ को सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरस्त किये जाने के बाद से ही केंद्र सरकार पर इस बात का दबाव पड़ने लगा है कि वह जाटों के लिए आरक्षण की समुचित व्यवस्था करे जिससे उनको भी वे लाभ मिल सकें जो अन्य पिछड़ों को मिलते रहते हैं. देखने सुनने में तो यह बहुत ही सामान्य सी बात लगती है पर इसका देश की राजनीति और सामाजिक परिवेश पर बुरा असर पड़ने से इंकार भी नहीं किया जा सकता है क्योंकि देश में आरक्षण सामाजिक आवश्यकता से बहुत आगे बढ़कर राजनीति में स्थान पा चुका है जिससे अब वंचितों का उस स्तर पर भला नहीं हो पा रहा है जिसकी संविधान में आरक्षण की व्यवस्था करने के साथ अपेक्षा की जाती रही है. आज आरक्षित वर्गों का बहुत बड़ा वोट बैंक होने के चलते यह सामाजिक आवश्यकता और असमानता को पाटने के साधन के स्थान पर केवल तुष्टीकरण और वोट बैंक बचाने का साधन मात्र ही रह गयी है. जाटों का आरक्षण निरस्त हुआ है इससे किसी को खुश या दुखी होने की ज़रुरत नहीं है बल्कि देश की आज की चुनौतियों के अनुसार आरक्षण को समाज के वास्तव में कमज़ोर वर्गों तक पहुँचाने की व्यवस्था बनाये जाने की तरफ ध्यान दिए जाने की ज़रुरत भी है.
आज़ादी के बाद समाज के कमज़ोर वर्गों को बराबरी का स्थान दिलाये जाने के लिए जिस आरक्षण का अस्थायी रूप से केवल दस वर्षों के लिए ही प्रावधान किया गया था आज वह केवल राजनैतिक कारणों के चलते ६८ वें वर्ष में भी उसी तरह से न केवल जारी है बल्कि राजनीति के चलते आज जाटों जैसी स्वाभिमानी बिरादरी को भी इस मुद्दे पर संघर्ष करने की तरफ जाना पड़ रहा है ? जाटों का आज़ादी की लड़ाई और उसके बाद देश के विकास में जितना योगदान रहा है उससे सभी परिचित हैं पर केवल वोट बैंक बनाये रखने के लिए इस तरह से स्वाभिमानी बिरादरी को अनावश्यक संघर्ष में झोंके जाने और उनके प्रतिभाशाली युवाओं को आरक्षण की बैसाखी देने की कोशिशें आखिर उनका किस तरह से भला कर सकती है ? स्वभिमानियों से भरपूर जाटों की बिरादरी के कुछ नेताओं द्वारा बने गए इस चक्रव्यूह में आज युवाओं को उलझाया जा रहा है जबकि जितना आरक्षण उनको दिए जाने का प्रस्ताव किया गया था उससे समाज का कितना भला हो सकता है इसका किसी को अंदाज़ा भी नहीं है. इसलिए अब जाटों को स्वयं ही आगे आने वाली किसी भी आरक्षण की राजनीति से अपनी भावी पीढ़ी को अलग ही रखने का प्रयास करना चाहिए जिससे उनकी वैचारिक शक्ति केवल निरर्थक आंदोलन की भेंट न चढ़ जाये.
कोई भी सरकार या राजनैतिक दल अपने राजनैतिक हितों पर कुठाराघात करके आरक्षण को समाप्त किये जाने या उसको वास्तविक ज़रूरतमंदों तक पहुँचाने के लिए संकल्पित नहीं दिखाई देते हैं जिसका असर समाज पर बहुत ही बुरे स्वरुप में पड़ना शुरू हो चुका है. आज आरक्षण को जातिगत व्यवस्था से बाहर निकाल कर सामाजिक व्यवस्था में आर्थिक रूप से पिछड़ों और वंचितों के लिए करने के बारे में विचार करने की बहुत आवश्यकता है. आज आरक्षण के जिस स्वरुप पर हम चल रहे हैं उसका वास्तविक रूप से पिछड़ों और वंचितों को कितना लाभ मिला है इस बात पर कोई बहस करना ही नहीं चाहता है क्योंकि आज आरक्षण का बड़ा हिस्सा चंद नेताओं और अधिकारियों के परिवारों के हिस्से में ही जाता हुआ नज़र आ रहा है जिससे आरक्षण देने की संवैधानिक् मंशा पूरी तरह विफल हो चुकी है. जिस व्यक्ति या परिवार को आरक्षण का लाभ एक बार मिल चुका है उसके पूरे परिवार के लिए दूसरी बार किसी भी तरह के आरक्षण की व्यवस्था को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए जिससे समाज के नए वंचितों को भी आरक्षण का लाभ मिल सके और समाज के वंचितों और सामजिक रूप से पिछड़ों को भी संवैधानिक मंशा के अनुरूप सहायता मिल सके.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh