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आम से खास होती आम आदमी पार्टी

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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दिल्ली में परिवर्तन के माध्यम से एक नयी तरह की राजनीति की शुरुवात करने वाली आम आदमी पार्टी जनता के प्रचंड समर्थन के बाद इस तरह से नेताओं के अहंकार और व्यक्तिगत आकांक्षाओं की पूर्ति में खुद ही इतनी तेज़ी से लग जाएगी किसी ने भी नहीं सोचा था. आम तौर पर अभी तक स्पष्ट और प्रचंड बहुमत मिलने वाली किसी भी पार्टी में शीर्ष स्तर पर इस तरह की अव्यवस्था और टूटन कभी भी नहीं दिखाई दी है पर आप ने इस मामले में भी सभी दलों को बहुत पीछे छोड़ दिया है. एक आंदोलन से शुरू हुई पार्टी ने किस तरह से दिल्ली के आम जन्मानस में अपनी इतनी पैठ बना ली कि देश की राजधानी में सक्रिय दोनों ही राष्ट्रीय दलों के पास करने के लिए कुछ भी शेष नहीं रह गया पर इतनी बड़ी सफलता को संजोये रखने के लिए जिस स्तर की गरिमा चाहिए थी उसमें आप का शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह से जनता की नज़रों में विफल ही साबित हो गया है. जनता को जिस भी दल में बेहतर संभावनाएं दिखाई देने लगती हैं वह उसे एक अवसर देने के बारे में यह सोचकर विश्वास जताती है कि आने वाले समय में वह दल कुछ परिवर्तन करने में सफल हो सकता है पर दुर्भाग्य से आप आज की परिस्थिति में इसका सबसे खराब उदाहरण ही दिखाई दे रही है.
आंदोलन के समय और चुनाव से पूर्व जिस आप में बहुत ही एकजुटता दिखाई देती थी आज वह पता नहीं कहाँ गायब सी हो गयी है और उसका चरित्र भी घाघ राजनैतिक दलों की तरह दिखाई देने लगा है. आप के इन बड़े नेताओं के पास अब इतना बड़ा अवसर था जिसे वे अपने अहंकार और आकांक्षाओं की भेंट चढाने से भी नहीं चूक रहे हैं. किसी भी राजनैतिक दल की शक्ति उसके कार्यकर्ता ही हुआ करते हैं और आज इस परिस्थिति में अपनी जान लगाकर जुटने वाले कार्यकर्त्ता की बात कौन सुनना चाह रहा है यह सभी को दिखाई भी दे रहा है. इतने बड़े आंदोलन के बाद यदि नेताओं की महत्वाकांक्षाएं इस स्तर तक पहुंची हुई हैं तो वे देश में राजनैतिक परिवर्तन के सपने देखने वालों के लिए बुरी खबर ही है. आज केजरीवाल के पास पार्टी का बहुत बड़ा समर्थन है और उनकी तरफ से उठाये जाने वाले किसी भी कदम को पार्टी में सर्वोपरि ही माना जाने वाला है पर खुद केजरीवाल को इस बात का विचार करना ही होगा कि आखिर वे कौन से कारण हैं जिनसे आज संघर्ष के समय से साथ रहे पार्टी के संस्थापक सदस्यों को ही खुद केजरीवाल की कार्यशैली से इतनी समस्याएं होने लगी हैं.
भारतीय राजनीति में मुद्दों की राजनीति करने को लेकर काम शुरु करने वाले आम लोगों की ताकत बने हुए केजरीवाल के लिए अब कसौटी पर कैसे जाने का समय आ चुका है क्योंकि जनता रिजल्ट न देने वाले नेताओं को चलता करने में बिल्कुल भी समय नहीं गंवाती है. आज इस राजनैतिक उठापटक के बाद आप की राजनैतिक प्रतिष्ठा भी देश के अन्य दलों की भांति उसी स्तर पर पहुँच चुकी है जहाँ से गड़बड़ी की शुरुवात होती है. कांग्रेस और भाजपा से नेताओं को निकाले जाने पर उसका उपहास करने वाले आपके नेता आज खुद अपने उन करीबियों को उसी तरह से बाहर निकाल रहे हैं तो उनके चरित्र और देश के अन्य दलों के बीच में कोई अंतर कैसे दिखाई दे सकता है ? विरोध की राजनीति करते हुए तकनीकी रूप से व्यवस्था को सुधारने का दावा करना एक मसला है पर सत्ता में बैठकर उन मसलों को हल करना बिलकुल ही दूसरे तरह का मामला है इसलिए इस पूरे प्रकरण से सबक सीखने पर ही आप को अपनी विश्वसनीयता फिर से मिल सकती है. सत्ता के खेल में सभी दल एक जैसे ही हो जाया करते हैं यह सुना जाता था पर आप के भी इस प्रकरण से फिर उसकी पुष्टि ही हुई है कि दलों का कोई चरित्र नहीं हुआ करता है चरित्र केवल सत्ता का ही होता है और उसके मुखौटे बदलते रहते हैं.

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