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पांच साल – केजरीवाल

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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दिल्ली में जिस पूर्व अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता अरविन्द केजरीवाल ने अपनी ज़िद के चलते ठीक एक वर्ष पहले सत्ता छोड़ दी थी आज वही अपने मज़बूत संकल्प के साथ दोबारा दिल्ली की पेचीदी सरकार का नेतृत्व करने के की तरफ बढ़ने जा रहे हैं. इस एक वर्ष में हर जगह केजरीवाल पर जिस तरह के आरोप लगाये जाते रहे और उसका प्रतिउत्तर उनकी पार्टी तथा खुद उन्होंने दिया उससे उनकी संकल्प शक्ति का ही पता चलता है और अब आप के प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद अब उनसे एक मज़बूत संकल्पित पर जनहित में लचीली सरकार की आशा पूरे देश को है. राजनीति के मंच पर उनकी पहली पारी रणनीतिक तौर पर भले ही सही साबित हो गयी हो पर अब उन पर दिल्ली की उन वास्तविक समस्याओं पर तेज़ी से काम करने और उनको यथा संभव सुलझाने की ज़िम्मेदारी आ गयी है. अब उनके लिए यह महत्वपूर्ण है कि दिल्ली ने केंद्र में सरकार चला रही मोदी सरकार के साथ चलने के स्थान पर उनके विद्रोही तेवरों के साथ जाते हुए दिल्ली के विकास की जो परिकल्पना की है उसको सही तरह से समझते हुए सरकार का सञ्चालन किया जाये.
कांग्रेस और भाजपा से आप की राजनीति सिर्फ इसी जगह पूरी तरह से अलग हो जाती है जब उनके पास समाज के सबसे निचले तबके के लोग बड़ी संख्या में खुद ही जुड़े हुए हैं इनमें चाहे धार्मिक अल्पसंख्यको या दलित राजनीति में अपने को स्थापित करने की कोशिशों में लगे हुए अन्य लोग पर इस मज़बूती के साथ अब आप सरकार पर अपने वायदों के क्रियान्वयन की उलटी गिनती भी शुरू करनी है. दिल्ली एक अजीब स्थिति वाला राज्य है जहाँ पर अधिकारों को लेकर केंद्र से सदैव ही अलग सुर सुनाई देते हैं क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी होने के चलते राज्य के हर बिंदु को उतनी आसानी से इसमें समाहित नहीं किया जा सकता है और एक क्षेत्र में सत्ता के दो केंद्र होने के कारण मतभेद सदैव ही सामने आते रहने वाले हैं. दिल्ली सरकार के पास पुलिस का कितना हिस्सा होना चाहिए यह बहुत बड़ी समस्या है क्योंकि एक ही क्षेत्र में दो स्तरों की पुलिस का सञ्चालन अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती साबित होने वाला है. इसके लिए अब केंद्र और दिल्ली पुलिस को मिलकर सामाजिक पुलिसिंग को बढ़ावा देने के बारे में सोचना ही होगा.
आप की इतनी बड़ी जीत से जहाँ केंद्र को दिल्ली का मूड पता चल गया है वहीं खुद आप पर भी ज़िम्मेदारी निभाने का दायित्व आ चुका है दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर बनाने की परिकल्पना करने वाले पीएम मोदी के लिए अब अपनी उन बातों से पीछे हटना संभव नहीं है जो उन्होंने दिल्ली की अपनी चुनावी रैलियों में जनता के सामने कही थीं. दिल्ली में आप की सरकार से अधिक विदेशियों के लिए यह भारत की राजधानी ही अधिक है इसलिए इसे बेहतर बनाने के लिए मोदी सरकार को भी पिछली केंद्र सरकारों की तरह भरपूर फण्ड का आवंटन मजबूरी में करना ही पड़ेगा. उपलब्ध संसाधनों में से यदि आप भ्रष्टाचार का पूरी तरह से नहीं आधा भी उन्मूलन कर पायी तो इसका असर सीधे जनता को महसूस होने लगेगा क्योंकि आज भी आम जनता सरकारी धन के दुरूपयोग के मामले में केवल अपने घरों में ही चर्चा किया करती है और उससे आगे बढ़कर सोचना भी नहीं चाहती है. आप के पास कायकर्ताओं की जो वास्तविक फ़ौज़ है वहीं इस पूरे परिदृश्य को पलटने के लिए काफी है साथ ही अरविन्द की जितनी इज़्ज़त पूरे कैडर में है तो उस स्थिति में उनके उत्साह को रिजल्ट देने के लिए भरपूर तरीके से इस्तेमाल भी किया जा सकता है. आप सरकार कितना सफल होती है यह तो अब उसके खुद के रवैये पर ही निर्भर करने वाला है.

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