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दिल्ली का सन्देश और यथार्थ

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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दिल्ली विधानसभा चुनावों में जिस तरह से आम आदमी पार्टी एक धूमकेतु की तरह और भी तेज़ी से उभर कर सामने आई है वह निश्चित रूप से देश के परम्परावादी राजनेताओं के लिए खतरे की घंटी अवश्य ही है. अभी तक देश में कांग्रेस, भाजपा के दो बड़े ध्रुवों में चलने वाली राजनीति में कुछ राज्यों में इन दोनों दलों से परहेज़ करने वाले दलों के लिए भी परिस्थितियां अनुकूल ही रहा करती हैं पर इन सब के बीच जिस तरह से आप ने अपनी जगह बनायीं है उससे यही पता चलता है कि कांग्रेस और भाजपा के लाख प्रयासों के बाद भी केजरीवाल की छवि भगोड़े राजनेता के स्थान पर एक नायक की ही बन गयी जिससे अन्य कोई नेता या दल पार नहीं पा सका. जीत का श्रेय लेने वाले बहुत लोग होते हैं पर हार का शालीनता से अनुसरण करना सबके बस की बात नहीं होती है. केजरीवाल ने जनता को देश की राजनीति सुधारने के जो सपने दिखाए हैं अब उन पर वे किस तरह से आगे बढ़ते हैं यही दिल्ली के साथ कुछ अन्य राज्यों में नयी राजनीति की इबारत लिखने वाला साबित होने वाला है या फिर देश की राजनीति परंपरागत रूप से ही चलती रहने वाली है यह आने वाले समय में तय होने वाला है.
आज यदि आप की जीत को देखा जाये तो यह भले ही किसी दल विशेष के समर्थकों को तुक्का ही लग रही हो पर इसके पीछे पिछले १४ फरवरी के बाद से ज़मीन पर किये गए बहुत सारे प्रयासों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है. निश्चित तौर पर जिन मुद्दों के साथ केजरीवाल ने इस्तीफ़ा दिया था वे आज भी मौजूद हैं तब कांग्रेस का राज था जो कुछ हद तक झुक भी जाया करती थी पर अब केंद्र में मोदी की ज़िद्दी और दिल्ली में आप की खुद को नागरिक मुद्दों पर अराजक कहने वाली केजरीवाल की विनम्र राजनीति है तो इस स्थिति से निपटने के लिए अब मोदी सरकार को और भी सचेत रहने की आवश्यकता होगी. देश का आम जनमानस गांधी के विचारों को ज़िंदगी के लिए सही आदर्श मानता है और महत्वपूर्ण बात यह है कि केजरीवाल उसी गाँधीवादी राजनीति को लेकर आगे बढ़ने का सफल प्रयास करते दिख रहे हैं. किसी भी नए ध्रुव के उभरने के साथ ही जनता की अपेक्षाएं भी उससे बढ़ जाया करती हैं अब यह उस ध्रुव पर निर्भर करता है कि वह किस तरह से अन्य ध्रुवों पर सकारात्मक हमले करने के साथ अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने का काम कर सके.
पिछले एक साल में आप की एक ही रणनीति जो पूरी तरह से असफल रही उसमें उसका बिना तैयारी के लोकसभा चुनावों में उतर जाना शामिल है क्योंकि यह देश के उन स्वार्थी राजनेताओं की फितरत में रहा है कि वे उगते हुए सूरज के साथ एकदम से आगे बढ़ जाने को लालायित रहते हैं पर जब बड़े स्तर पर एकदम से कार्यकर्ताओं और राजनेताओं के लिए कुछ करने का समय आता है तो वे अपने स्वार्थों को आगे कर दिया करते हैं सिर्फ इसलिए भी बड़े बड़े अभियान और परिवर्तन भी दम तोड़ दिया करते हैं. असम गण परिषद इसका बहुत ही सटीक उदाहरण कही जा सकती है जिससे उसको अपनी सफलता को सम्भालना मुश्किल हो गया और आज वह कहाँ और किस स्थिति में है बाकि देश में कितने लोग जानते हैं ? केजरीवाल उन मामलों से इस लिए अलग हैं क्योंकि वे एक समग्र आंदोलन से जुड़े हुए हैं और कई वर्षों के संघर्ष के बाद उन्हें यह स्थान मिला है उनके सभी साथी यह भी जानते हैं कि उनके सामने देश के लिए एक नयी तरह की राजनीति का सफल संस्करण बनने की चुनौती भी है. आशा की जानी चाहिए कि वे दिल्ली की जनता की इस इच्छा पर ठोस काम कर मूलभूत समस्याओं से निपटने में सफल होंगें.

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