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डीआरडीओ चीफ और सरकार

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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अग्नि मिसाइल के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले डॉ अविनाश चन्द्र को मोदी सरकार ने जिस तरह से उनके बढ़ाये गए कार्यकाल के बाद भी ३१ जनवरी को पद मुक्त किये जाने का निर्णय लिया है उससे कहीं न कहीं इन मामलों में भी राजनीति शुरू हो सकती है. यह इतना महत्वपूर्ण निर्णय था कि इसे केवल मंत्रालय के स्तर से नहीं लिया जा सकता था अतः यह माना जा सकता है कि पीएम की भी इसमें पूरी सहमति रही है. हमारे देश में आयु के आधार पर वैज्ञानिकों को महत्वपूर्र्ण कामों में लगे होने के बाद भी रिटायर करने का चलन वैसे तो देश में कम ही दिखाई देता है क्योंकि इतने महत्वपूर्ण कामों में जिस तरह से इन वैज्ञानिकों का पूरा जीवन लगा होता है उस परिस्थिति में उनके अनुभव को देखते हुए आम तौर पर सरकार की तरफ से उन्हें सेवा विस्तार भी मिल जाया करता है जिससे महत्वपूर्ण अनुसंधानों पर कोई असर नहीं पड़ता है और ये संस्थान अपनी गति से काम करने रहते हैं पर सरकार द्वारा बिना कोई व्यापक रिटायरमेंट की नीति को सामने लाये जिस तरह से डॉ अविनाश को हटाया वह उसकी हड़बड़ी और छिपी हुई मंशा को ही अधिक दिखाता है.
रक्षा मंत्री पर्रिकर की तरफ से इस पूरे मामले को छिपाने के लिए जो युवा शब्द का उपयोग किया गया वह नीतिगत कम और हास्यास्पद अधिक लगता है क्योंकि अब जिस वैज्ञानिक को इस पद पर लाने की बात चल रही है उनकी आयु ६२ वर्ष की है और वे डॉ अविनाश केवल दो वर्ष ही छोटे हैं. देश की जनता ने मोदी और भाजपा को पूर्ण बहुमत दिया है और उसके बाद उन्हें काम करने की पूरी छूट भी मिलनी चाहिए पर महत्वपूर्ण संस्थाओं में इस तरह से अचानक से ही परिवर्तन करने और संभावित वरिष्ठता को नज़रअंदाज़ करने के बाद क्या काम करने का माहौल उतना अच्छा रह सकता है जितने की आशा सरकार कर रही है ? यह सही है कि सरकारें अपनी पसंद के लोगों को पदों पर बिठाने का काम करती ही रहती हैं पर अभी तक यह काम केवल प्रशासनिक काम करने वाले क्षेत्रों में ही दिखाई देता था पर आज जब इसकी घुसपैठ महत्वपूर्ण संस्थानों तक होती दिखाई दे रही है तो क्या सरकार को इससे बचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. इसी तरह मार्च १४ में सेनाध्यक्ष की नियुक्ति वरिष्ठता के आधार पर करने के पिछली सरकार के फैसले पर भाजपा ने बहुत हल्ला मचाया था जिसके बाद इस पर भी जमकर राजनीति हुई थी जिसकी कोई आवश्यकता ही नहीं थी.
अब जब इस मामले को सरकार ने आगे बढ़ा ही दिया है तो उसे अब यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि यह एक नीतिगत परिवर्तन है और आने वाले समय में नीतियों में वरिष्ठता और सेवानिवृत्ति के बारे में सब कुछ स्पष्ट हो जाने वाला है. मोदी की कार्यशैली को देखते हुए यह कोई नई बात नहीं है वे सदैव ही संस्थाओं के वर्तमान स्वरुप से इसी तरह से छेड़छाड़ करने के आदी रहे हैं और चिंताजनक बात यह है कि वे यह सब बिना किसी जवाबदेही के करते हैं. देश को तेज़ी से निर्णय चाहिए पर इस तरह से संस्थाओं में अनावश्यक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलने वाला है. वैसे देश में अनुसन्धान के स्तर को देखते हुए एक नियत आयु पर वैज्ञानिकों को रिटायर करते हुए उन्हें अपने प्रोजेक्ट से जुड़े हुए अधूरे काम में टीम तैयार करने के लिए सलाहकार के तौर पर भी कुछ वर्षों तक काम करने का अवसर दिया जाना चाहिए इससे जहाँ आवश्यकता पड़ने पर देश के लिए ये वरिष्ठ वैज्ञानिक उपलब्ध भी होंगें वहीं उनकी कमी भी नयी टीम को नहीं खलेगी. अनुसन्धान और अपने दम पर विकास करने के लिए पीढ़ियां लगती हैं केवल महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए लोगों को परिवर्तन और युवा सोच के साथ कुछ करने के संकल्प को लेकर पूरी तरह उपेक्षित किया जाना कहीं से भी सही नहीं कहा जा सकता है.

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