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नशा, पंजाब और मजीठिया

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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प्रवर्तन निदेशालय द्वारा पंजाब के राजस्व मंत्री विक्रम जीत मजीठिया को ६००० करोड़ रूपये के हवाला और नशे के कारोबार में लगे हुए तीन प्रवासी भारतीयों से अपने सम्बन्ध बताये जाने के बारे में निर्देश जारी किये हैं और साथ ही उनसे पूरे मामले में सहयोग करने की अपेक्षा भी की गयी है. पिछले कुछ वर्षों से पंजाब में सत्ता संभाले अकाली-भाजपा गठजोड़ के मंत्री और अन्य नेता जिस तरह से नशे के कारोबार से जुड़े हुए लोगों के साथ सम्बन्ध रखने के आरोपों को झेलते रहे हैं आज की यह घटना उसी क्रम में एक आगे का कदम भी लगती है. सुशासन और देश तथा समाज विरोधी किसी भी काम में शामिल किसी भी व्यक्ति को न बख़्शने के मूड से काम करने वाली मोदी सरकार के लिए यह एक बड़ा संकट भी हो सकता है क्योंकि वह पहले से ही संसद में में धर्म परिवर्तन और घर वापसी जैसे मुद्दों पर सफाई देते देते थकी जा रही है पर संघ से जुड़े हुए संगठन किसी भी स्तर पर अपनी हरकतें बंद करने के लिए तैयार नहीं दिखाई देते हैं.
देश के कानून के अनुसार किसी भी व्यक्ति के खिलाफ इस तरह के सम्मन जारी होने को उस व्यक्ति के दोषी होने से नहीं जोड़ा जा सकता है पर जिस तरह से भाजपा हर मामले में सम्मन या पूछताछ की बात सामने आते ही सम्बंधित व्यक्ति से इस्तीफ़ा मांगने लगती थी तो इस मामले में जिसमें पंजाब की पूरी एक पीढ़ी ही तबाह हो गयी है क्या वह प्रवर्तन निदेशालय के इस कदम के बाद मजीठिया से भी इस्तीफ़ा मांगने की बात करेगी या फिर उन्हें किसी बयान के जरिये ही बचाने की कोशिशें करती रहेगी जैसा कि पंजाब के सीएम ने करना शुरू कर भी दिया है ? पिछले मन की बात कार्यक्रम में नशे पर बात करने के बाद पीएम ने संभवतः इस पूरे मामले में सख्त कदम उठाने की तरफ बढ़ने का मन बना लिया हो और उसी क्रम में अब प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से इसकी शुरुवात की गयी हो पर एक बात तो तय है कि केंद्र में सरकार चला रही भाजपा के लिए अब अकालियों से आरपार की लड़ाई करने में मजीठिया ही एक मोहरा बनने वाले हैं.
भाजपा और पीएम पर जहाँ इस बात का दबाव बढ़ सकता है कि वे दागियों को अपने सहयोगियों के मंत्रिमंडल से भी बाहर करवाएं तो दूसरी तरफ भाजपा खुद ही अकालियों से पीछा छुड़ाने की जुगत में लगी हुई है तो उसके पास इस समय से अच्छा अवसर सामने नहीं आने वाला है. आज की वर्तमान परिस्थिति में जब भाजपा अपने सहयोगियों से पीछा छुड़ा कर अकेले ही मैदान में जा रही है तो उसे अच्छी कामयाबी भी मिल रही है तो वह आने वाले समय में इस प्रयोग को पंजाब में भी अपना कर अपने वोटबैंक को बढ़ाने की कोशिश भी कर सकती है. हरियाणा और महाराष्ट्र में जिस तरह से पूरे राज्य में लड़ने का लाभ उसे मिला अब वह उसे देश के सभी भागों में परखने की तरफ जा सकती है. कानून की दुहाई देते हुए अब जहाँ उसके पास मजीठिया को हटाने के लिए एक हथियार आ गया है वहीं बादल के अड़ने पर भाजपा अकाली दल से आराम से अलग भी हो सकती है. फिलहाल इस मुद्दे के उछलने से जहाँ अकाली ही अधिक दबाव में आने वाले हैं वहीं भाजपा के लिए दोनों तरफ से रास्ता साफ़ होने की तरफ ही जाता है अब मोदी इस मामले में अकालियों को किस हद तक दबाव में ला पाते हैं भविष्य की सारी गतिविधियाँ अब इस बात पर ही निर्भर करने वाली हैं.

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