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ज़िम्मेदार पद और बयानबाज़ी

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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एक बार फिर से बड़बोले भाजपा नेताओं के बयानों के चलते सरकार को लोकसभा में असहज स्थिति का सामना करना पड़ा जबकि निरंजन ज्योति के मामले में अभी तक जारी गतिरोध को पूरी तरह से समाप्त करने में सरकार को कामयाबी नहीं मिल पायी थी. रविवार को कोलकाता की बहु चर्चित रैली में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जिस तरह से स्पष्ट रूप से टीएमसी पर यह आरोप लगाया था कि शारदा घोटाले में काले धन का उपयोग देश विरोधी तत्वों के द्वारा किया गया और इससे बांग्लादेश के माध्यम से भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियाँ चलाने वाले संगठनों को मदद की जा रही थी. देश की सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष और पीएम के सबसे विश्वासपात्र व्यक्ति द्वारा यह बयान देना अपने आप में एक बहुत बड़ी खबर थी क्योंकि अब भाजपा केवल एक राजनैतिक दल नहीं है वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सत्ताधारी पार्टी भी है और उनकी तरफ से अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर आने वाले इस तरह के किसी ही बयान का बांग्लादेश के साथ संबंधों पर विपरीत असर पड़ सकता है.
आज जब पीएम की कुर्सी पर बैठने के बाद खुद नरेंद्र मोदी को इस बात का रोज़ ही एहसास हो रहा है कि देश की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मज़बूत छवि बनाने के लिए जितनी लगन से मनमोहन सिंह से काम किये थे यदि भाजपा केवल राजनैतिक विरोध को छोड़कर उस दिशा में सिर्फ आगे बढ़ने के बारे में ही सोच ले तो देश को बहुत आगे ले जाता जा सकता है. आज भी पिछले डेढ़ वर्षों में जिन मुद्दों पर भाजपा ने केवल राजनीति की थी आज वह वास्तविकता का सामना कर रही है क्योंकि विपक्ष में बैठकर कुछ भी कह देना आसान होता है पर जब देश को चलाने की ज़िम्मेदारी आती है तो उस अराजकता के साथ काम नहीं किया जा सकता है. बंगाल में स्थानीय निकाय चुनावों में केवल अपनी पार्टी को मज़बूत करने के लिए अमित शाह ने जिस तरह से बयान दिए उससे भाजपा और पीएम की छवि को ही धक्का लगा है और अमित शाह की विश्वसनीयता पर बड़े प्रश्नचिन्ह लगे हैं. राजनीति करने के लिए देश में मुद्दों की कमी नहीं है पर भाजपा के इस तरह के आचरण के चलते ही पिछली सरकार को काम करने में काफी दिक्कतें हुई थीं.
अब समय है कि शीर्ष पदों पर बैठे हुए या अन्य स्थानों पर राजनीति में शामिल लोग अपने बयानों को केवल तालियां बज़वाने तक सीमित न रखें और मुद्दों को गंभीरता को भी समझने का प्रयास करें. स्थिति यहाँ तक है कि किसी भी स्तर पर सरकार के लोकसभा में अमित शाह के बयान विपरीत बयान दिए जाने के कारण सरकार के मुखर मंत्री वेंकैया नायडू भी झल्ला गए और यहाँ तक कह दिया कि क्या वे अपने अध्यक्ष के खिलाफ टिप्पणी करें ? ऐसा नहीं है कि मोदी और शाह को यह सब पता नहीं है पर वे आम वोटरों की मानसिकता के अनुसार वही बातें करते हैं जिनसे वोटर खुश होते हैं रैलियों में माहौल बनाना ज़रूरी होता है पर इस तरह से समाज और राजनीति में गहरा विभाजन कर अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर भी अनावश्यक बयानबाज़ी करने की भाजपाइयों की आदत कभी न कभी सरकार के लिए बड़ी परेशानी का कारण भी बन सकती है. अच्छा हो कि इस बारे में पीएम खुद ही एक स्पष्ट दिशा निर्देश जारी कर दें और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की समझ न रखने वाले नेताओं को इन पर बयान देने से रोकने का पूरा प्रबंध उसी तरह से करें जैसे निरंजन ज्योति के मामले में उन्होंने किया है.

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