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नक्सली समस्या और नीतियां

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश के नक्सली प्रभावित राज्यों में आज सबसे अधिक सक्रिय क्षेत्र छत्तीसगढ़ में ही बने हुए हैं क्योंकि संभवतः सुकमा जिला शुरू से ही इन लोगों को प्राकृतिक रूप से छिपने का हर साधन उपलब्ध करता रहता है. लम्बे समय से ही माओवादियों द्वारा जिस तरह से इस इलाके में अपना राज चलाने की कोशिशें की जा रही हैं उससे भी इन इलाकों के विकास पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है. हमारे देश की केंद्रीय सरकार और नक्सल प्रभावित राज्यों के बीच कहीं न कहीं समन्वय की बहुत बड़ी कमी हमेशा ही दिखाई देती है जिससे भी इन इलाकों में संगठित रूप से काम कर पाने में स्थानीय प्रशासन पूरी तरह से निष्प्रभावी ही रहता है. देश की सीमाओं पर लड़ने के लिए हमारे पास एक नीति स्पष्ट रूप से मौजूद है पर देश के अंदर इस तरह की गतिविधियों को रोक पाने में यदि हमारा तंत्र सफल नहीं हो पा रहा है तो उसके पीछे कहीं न कहीं अभी तक नेताओं की कमज़ोर इच्छाशक्ति भी ज़िम्मेदार है क्योंकि आधे अधूरे में से शुरू की जाने वाली ऐसी कोई भी लड़ाई सुखद परिणाम नहीं दे सकती है,
पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से नक्सली समस्या पर बयानबाज़ी शुरू हो चुकी थी और केंद्र सरकार द्वारा इस मद में विशेष सहायता दिए जाने से इंकार भी कर दिया गया था उससे स्थितियां और भी विपरीत होने लग सकती हैं. इस मामले में आज भी केंद्र की नीति को सही नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इसी तरह की नीति के चलते केंद्रीय बलों के जवान पहले भी माओवादियों के गढ़ में शहीद होते रहे हैं इसके लिए सबसे पहले जिन इलाकों में नक्सली अपने प्रभाव का विस्तार कर चुके हैं उन पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है क्योंकि इन इलाकों की भौगोलिक परिस्थितियों से अनजान केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों के लिए यहाँ अन्य तरह की समस्याएं सामने आती रहती हैं जिससे निपटने की कोई नीति आज भी सरकार के पास नहीं है. राज्य सरकार जहाँ तक अपने प्रभाव को सफल पाती हैं उन्हें धीरे धीरे उससे आगे बढ़ते हुए नक्सली इलाकों की तरफ विकासात्मक गतिविधियों को बढ़ाना चाहिए जिससे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के आम लोग अपने और बाकी के इलाकों में फर्क को स्पष्ट रूप से महसूस भी कर सकें.
क्षेत्र के विकास के दम पर नक्सली क्षेत्रों में एक नीति के तहत विकास को बढ़ावा देने की तरफ बढ़ने से जहाँ सुरक्षा सम्बन्धी चिंताएं कम ही सामने आयेंगीं वहीं केंद्रीय बलों की मौजूदगी का सही उपयोग भी किया जा सकेगा. केंद्र सरकार को भी यह समझना होगा कि राज्यों में पनप रहे इस असंतोष के पीछे भी कहीं न कहीं से कुछ नेताओं का हाथ भी है जिससे वे अपने लिए वोटों का जुगाड़ भी किया करते हैं. जब एक स्पष्ट नीति के तहत सीमा पर अशांत रहने वाले राज्य जम्मू कश्मीर में भी इसी नीति पर चलकर जनता को विकास की आहट सुनवाने के प्रयास सफल होते नज़र आने लगे हैं तो नक्सलियों के क्षेत्र में भी इसे उसी तरह से चरणबद्ध तरीके से लागू करने में क्या समस्या हो सकती है ? स्थानीय कारणों से विभिन्न दलों के नेता भी इन नक्सलियों के खिलाफ बड़े अभियान चलाने के किसी भी फैसले से सहमत नहीं दिखाई देते हैं जिससे भी केंद्रीय सहायता केवल सुरक्षा बलों के रूप में ही सिमट जाती है. अब सरकार को इस समस्या पर नए सिरे से विचार कर सभी पूर्वाग्रहों को पीछे छोड़कर सुलझाने की तरफ सोचने की आवश्यकता है सुधार के साथ दंड का प्रावधान ही पूरे माहौल को सही करने में कुछ हद तक मदद कर सकता है.

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