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शशि थरूर और राजनीति

***.......सीधी खरी बात.......***
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भारत में जिस स्तर की राजनीति की जाती रहती है उसमें किसी भी विपक्षी दल के नेताओं को सरकार के महत्वपूर्ण काम में शामिल किये जाने की कोई परम्परा नहीं रही है क्योंकि हमारे नेताओं और राजनैतिक दलों को यह लगता है कि इससे उनकी पार्टी की छवि को धक्का लगता है. इस मामले में ताज़ा प्रकरण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी के तौर पर काम कर चुके और पूर्व केन्दीय मंत्री, वर्तमान में तिरुवनंतपुरम के एमपी शशि थरूर को लेकर सामने आया है. थरूर द्वारा विभिन्न मुद्दों पर जिस तरह से मोदी और उनकी सरकार की प्रशंसा की गयी है शुरू में तो कांग्रेस नेतृत्व ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया पर बाद में पार्टी के अंदर दबाव बनने की स्थिति पर थरूर को अपने इस तरह के बयानों में संयम रखने की सलाह भरी चेतावनी जारी की गयी है जिसका कोई मतलब नहीं बनता है. भारतीय परिदृश्य में यह सब होते रहना कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि यहाँ पर सरकार चलाने के मुद्दे एक जैसे हैं पर राजनैतिक दल उन नीतियों के लिए एक दूसरे पर हमले करने से भी बाज़ नहीं आते हैं.
थरूर ने जिस तरह से अपने सार्वजनिक जीवन को यूएन के साथ शुरू किया था तो आज भी उनकी सोच पूरे विश्व को सुधारने और उसके भले के लिए सोचने की तरफ ही रहा करती है जिससे वे कई बार ऐसे मुद्दों पर भी अपनी राय देने से परहेज़ नहीं करते हैं जिस पर भारतीय राजनीति में एक अघोषित सीमा निर्धारित की गयी है. खुद मंत्री रहते हुए भी कई बार थरूर द्वारा ऐसे मुद्दों पर बोला जाता रहा है जिस पर भारतीय राजनैतिक तंत्र अपने को सहज नहीं पाता है. स्वच्छता अभियान में जिस तरह से मोदी ने अपने नौ सहयोगियों में थरूर को भी रखा उसके बाद से ही राजनीति ने ज़ोर पकड़ लिया है कुछ लोगों का यह भी कहना है सुनंदा पुष्कर की मौत कि जांच के चलते मोदी सरकार उन पर दबाब बनाकर अपने साथ करना चाहती है. उनकी अंतर्राष्ट्रीय छवि आज भी बहुत अच्छी है और वे संभवतः भारतीय राजनेताओं वैश्विक मंच पर सबसे अधिक समझे जाने वाले बुद्धिजीवी के रूप में भी जाने जाते हैं.
राजनीति में कुछ भी संभव है पर थरूर जैसा व्यक्ति कोई दबाव मानेगा यह बात समझ से परे है इसलिए यदि कांग्रेस की तरफ से वे स्वच्छ भारत अभियान में शामिल भी होते हैं तो इससे कोई अंतर नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि इससे महत्वपूर्ण मुद्दों पर देश की एकरूपता भी दुनिया के सामने पहुँच जाएगी. मुंबई हमलों के समय भी इस तरह की राजनीति आड़े आ गयी थी जब एकजुटता दिखाने के लिए मनमोहन सिंह ने नेता विरोधी दल लाल कृष्ण अडवाणी को अपने साथ ही चलने की पेशकश की थी जिस पर वे सहमत भी हो गए थे पर बाद में भाजपा की अंदरूनी राजनीति ने उनको अलग से दौरा करने के लिए बाध्य कर दिया था. थरूर बेहद सुलझे हुए व्यक्ति हैं और कांग्रेस को उन पर इस तरह कि कोई भी बंदिश नहीं लगानी चाहिए क्योंकि यदि इसमें सरकार की कोई राजनीति भी है तो थरूर उससे अपने स्तर पर निपट लेने में सक्षम हैं. वैसे राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है फिर भी असहयोग करने की प्राथमिकता वाली भारतीय राजनीति में सहयोग करने की थरूर जैसी इच्छाशक्ति वाले कम ही लोग दिखाई देते हैं इसलिए कांग्रेस को उनको अभियान से जुड़ने में कोई बंदिश जैसी बात नहीं करनी चाहिए.

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