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भारत- पाक वार्ता का स्थगन

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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पाक की कश्मीर और भारत के प्रति दोहरी नीति के चलते एक बार फिर से भारत के साथ उसके संबंधों में एक बड़ा ठहराव सामने आ गया है क्योंकि पाक भारत से सार्थक बातचीत को महत्व देने की खोखली बात किया करता है और सीमा पर भारत के खिलाफ हर तरह की गतिविधियों में शामिल रहा करता है. वर्तमान परिस्थितियों में जिस तरह से मोदी सरकार ने पाक के साथ प्रस्तावित विदेश सचिव स्तर की वार्ता को रद्द करने की घोषणा की है वह २६/११ के बाद से ही चली आ रही पिछली नीति की तरह ही है क्योंकि उस समय से ही यह माना जा रहा है कि जब तक पाक भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों को समर्थन देता रहेगा तब तक उसके साथ द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के लिए कोई बड़ी और सार्थक पहल नहीं की जा सकती है. पाक द्वारा आज़ादी के बाद से ही कश्मीर घाटी में जिस तरह से शांति बहाली के आर उपाय पर पानी फेरने का काम किया जा रहा है उससे कश्मीरियों की ज़िंदगी मुश्किल होती जा रही है.
कश्मीर पर जिस तरह से अमेरिका समेत पूरी दुनिया को मोदी सरकार से यह आशा है कि वह इसका कोई स्थायी हल निकाल सकती है परन्तु घरेलू दबाव में इस तरह की हरकत करने से पाक के साथ भारत की सार्थक बातचीत किसी भी रूप में संभव ही नहीं है. पाक आज भी अपनी घरेलू समस्याओं से जूझने के लिए भारत और कश्मीर का ज़िक्र किया करता है और वर्तमान में जिस तरह से पाकिस्तानी पीएम नवाज़ शरीफ पर कानूनी शिकंजा कसने की संभावनाएं दिखाई देने लगी हैं उस स्थिति में भारत के साथ शांति पूर्वक बातचीत कर पाना उनके लिए भी मुश्किलें खड़ी कर सकता था. भारत सरकार को भी इस बातचीत से कोई बड़ी उपलब्धि हासिल किये जाने की आशा तो नहीं थी फिर भी सरकार बदलने के साथ शुरू किये गए परिवर्तनों को दुनिया भर के लोग महसूस कर सकें वह इसके लिए प्रयासरत अवश्य ही थी. मोदी सरकार ने पड़ोसियों के साथ भारत के सम्बद्ध सुधारने की जो भी कोशिशें की उनका हर स्तर पर स्वागत ही होना चाहिए पर यह स्पष्ट है कि इतनी जल्दबाज़ी में कूटनीति को किनारे करने की कोशिशे कई बार सही फल नहीं दे पाती हैं.
राजनैतिक रूप से भारत में भी कश्मीर एक बड़ा मुद्दा है पर आज तक जिस तरह से कश्मीर भारत के लिए एक समस्या ग्रस्त राज्य ही रहा है उस परिस्थिति में पहली बार मोदी के रूप में आई विशुद्ध भाजपा सरकार भी इस पर कुछ ठोस करना चाहती है. इससे पहले अटल सरकार ने भी बस डिप्लोमेसी के माध्यम से कोशिश की थी पर वह पाक की सेना के कारगिल अभियान से पूरी तरह बीच में ही दम तोड़ गयी थी. राज्य के स्तर पर समस्या को कम करने के लिए केंद्र सरकार लद्दाख और जम्मू को स्वायत्त क्षेत्र भी घोषित कर सकती है क्योंकि आज तक भारत की कश्मीर नीति से जिस तरह से उसके संसाधनों पर भी भारी बोझ पड़ता दिख रहा है उससे भी मोदी सरकार कुछ सीखना चाहती है. यदि केवल घाटी को ही इस तरह से विवादित स्थान रहने दिया जाये और बाकी जगहों पर कानूनी रूप से नए प्रयास किये जाएँ तो उन्हें आगामी चुनावों में इन क्षेत्रों की जनता का भाजपा को बड़ा समर्थन मिल सकता है. पाक की इस हरकत के लिए अब मोदी सरकार आगे क्या कदम उठाती है यह तो समय के साथ ही पता चलेगा पर आज भारत पाक सम्बन्ध फिर से उसी जगह पहुँच गए हैं जहाँ वे संप्रग सरकार के समय हुआ करते थे.

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