- 2165 Posts
- 790 Comments
आज एक बार फिर से देश में हम अपनी आज़ादी का पर्व मनाने के लिए आज पूरी तरह से तैयार दिखाई दे रहे हैं पर इस सब के बीच कहीं आज़ादी की परिभाषा के विरोध में भी बहुत सारे स्वर भी सुनाई देते रहते हैं और विभिन्न विचारधाराओं को अपनी बात कहने का हक़ देने वाले विश्व के सबसे लचीले संविधान पर भी कुछ लोग ऊँगली उठाने से नहीं चूकते हैं. देश की आज़ादी और हमारा संविधान ऐसे मुद्दे हैं जिन पर बहस तो की जा सकती है पर उनकी सार्थकता पर कोई प्रश्चिन्ह नहीं लगाया जा सकता है. आज भी देश से बाहर कहीं भी जाने वाले भारतीयों को वहां के कानून की सख्ती का अंदाजा कभी न कभी हो ही जाता है तो उन्हें बरबस अपने देश और स्वतंत्रता की याद आने लगती है. आखिर क्या कारण है कि हम भारतीय आज भी अपने को मिले हुए अधिकारों के लिए चिल्लाते हुए तो नज़र आते हैं पर जब बात कर्तव्यों की आती है तो सब कुछ भूल ही जाया करते हैं.
कोई भी देश केवल नागरिकों का समूह भर ही नहीं होता है क्योंकि देश सदैव नागरिकों के प्रयास से ही बनता और बिगड़ता है आज भी हम जिस तरह से छोटी छोटी बातों पर वर्ग से लगाकर धार्मिक संघर्ष तक पर उतर आते हैं क्या वह किसी सभ्य समाज की बानगी लगती है ? आज भी ऐसा लगता है कि जैसे हम किसी मध्यकालीन बर्बर युग में जी रहे हैं जिसमें किसी को दूसरे से कोई मतलब नहीं है और हर व्यक्ति चाहे वह समाज, राजनीति, धर्म या किसी भी अन्य क्षेत्र से जुड़ा हुआ हो उसमें कहीं न कहीं इस तरह की भावना ज़रूर ही भरी हुई रहती है जो समय आने पर सब कुछ भुलाकर प्रतिशोध की किसी भी सतह तक पहुँचने में देर भी नहीं लगाती है. आज यदि देश में इस तरह की बातों को प्रश्रय मिल रहा है तो उसके लिए हम नागरिक के रूप में ही सबसे अधिक ज़िम्मेदार हैं क्योंकि यह हमारी ही कमी है जो स्थानीय स्तर पर नेताओं या अन्य लोगों को उसका लाभ उठाने के अवसर दिया करती है.
आज़ादी सभी को मिलनी ही चाहिए पर क्या अब देश को ऐसे कानून बनाने की आवश्यकता नहीं है जिसमें आज़ादी का दुरूपयोग करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने के बारे में भी सोचना शुरू किया जाये और उनके नागरिक अधिकारों को कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया जाये ? जिन लोगों पर इस तरह के काम करने का आरोप हो या जो लोग सामने आएं उन पर त्वरित कार्यवाही कर उनको सरकार से मिलने वाली सभी सुविधाएँ भी वापस ले लेने के बारे में सोचा जाना चाहिए. यदि कोई भी सरकारी कर्मचारी इस तरह की कार्यवाही में लिप्त पाया जाये तो उसको काम से कम तीन वर्षों के लिए आधे या चौथाई वेतन पर रखा जाये और किसी भी परिस्थिति में इन नियमों में कोई ढील नहीं दी जाये. देश को आगे बढ़ाने का काम करने की ज़िम्मेदारी केवल किसी भी सरकार पर ही कैसे डाली जा सकती है क्योंकि उसका काम तो केवल नियंत्रण करना ही है फिर जब तक हम नागरिक अपने देश के लिए समवेत सोच नहीं विकसित करेंगें तब तक किसी भी दशा में आज़ादी के सही मायने और उनके प्रतिफल हमारे सामने नहीं आ पायेंगें.
Read Comments