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धार्मिक स्वतंत्रता- अमेरिकी नज़र

***.......सीधी खरी बात.......***
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इस बार धार्मिक स्वतंत्रता की वैश्विक रिपोर्ट जारी करते हुए अमेरिका ने उसमें जिस तरह से यूपी के हालात को इराक और सीरिया जैसा बताने की कोशिश की है उसका भारतीय परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार की तरफ से पूरी तरह से विरोध किया जाना चाहिए और इससे सीधे तौर पर निशाने पर आने वाली यूपी सरकार ने इस पर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया भी दे दी है. भारत में धार्मिक संघर्षों / दंगों का लम्बा इतिहास रहा है और जब भी जनता का ध्यान मुख्य मुद्दों से हटाने की कोशिश नेताओं द्वारा की जाती है तो इस तरह से यह संघर्ष आम तौर पर भारत में दिखाई ही देते रहते हैं. यहाँ पर इस तरह की किसी भी रिपोर्ट को भारतीय मामलों में दखल माना जाना चाहिए और इसका पूरी तरह से आधिकारिक विरोध भी भारत सरकार द्वारा किया जाना चाहिए क्योंकि आज यह विरोध अगर राज्य के स्तर पर नहीं किया जाता है तो कल को किसी राष्ट्रीय मुद्दे पर भी इसे रेखांकित करने से अमेरिका बाज़ नहीं आने वाला है. अमेरिका को यह हक़ किसने दिया है कि वह लोकतान्त्रिक देशों एक बारे में इस तरह से रिपोर्ट्स जारी करे ?
धार्मिक स्वतंत्रता की बात करने के लिए आखिर अमेरिका भारत पर इस तरह से निशाना क्यों साधना चाहता है और वह भी तब जब उसके महत्वपूर्ण मंत्री और प्रतिनिधिमंडल भारत के दौरे पर हैं ? क्यों अमेरिका को मध्यपूर्व और अरब देशों में खुद उसके समर्थन द्वारा किया जा रहा हर तरह का हनन कभी नहीं दिखाई देता है और वह पूरी दुनिया के बारे में ऐसी रिपोर्ट्स जारी करने से नहीं चूकता है ? भारतीय परिप्रेक्ष्य में मुजफ्फरनगर दंगों को किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता है पर यदि पाकिस्तान इस मुद्दे पर कुछ बोले तो क्या भारत सरकार इसी तरह से सुन लेगी और कोई बयान जारी नहीं करेगी ? देश के अंदर के मुद्दे अपनी जगह पर है तथा यूपी की अखिलेश सरकार की विफलता किसी से भी छिपी नहीं है पर इस मसले पर अमेरिका इस तरह से कुछ भी कहता रहे तो इसे सामान्य नहीं माना जा सकता है. देश में किसी भी तरह के धार्मिक संघर्ष को अमेरिका द्वारा रेखांकित किये जाने पर भारत की एक नीति भी होनी चाहिए और उसके तहत ही अमेरिका के इस तरह के प्रयासों का विरोध भी होना चाहिए.
पूरी दुनिया में यदि धार्मिक या वर्ग आधारित संघर्षों को देखा जाये तो अधिकांश जगहों पर अमेरिका का जुड़ाव अवश्य ही मिलेगा भले ही वह रूस के प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता रहा हो या फिर पेट्रोलियम पदार्थों के लिए चलने वाला संघर्ष ही हो फिर प्रतिवर्ष वह किस नैतिक अधिकार से इस तरह की रिपोर्ट्स जारी करता है. भारत का लोकतंत्र हर चुनौती से निपटने में सक्षम है और काम न करने वालों को वह सत्ता से अलग कर दण्डित भी करता रहता है. यूपी की स्थिति बहुत ख़राब है और यहाँ दिन प्रतिदिन संघर्षों की ख़बरें आती ही रहती है तो इस मसले पर राजनीति करने के स्थान पर सभी दलों को इसके समुचित समाधान के बारे में सोचने की तरफ बढ़ना ही होगा क्योंकि संसद या विधान मंडल में पहुंचे हुए लोग और सरकारें देश और राज्य की आधिकारिक प्रतिनिधि होती हैं उनकी कमियों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक भी है और उन्हें दूर कर समाज में समरसता बढ़ाने की बात करना भी अच्छा है. गुजरात पर जारी की जाने वाली रिपोर्ट एक ज़माने में संप्रग के हितों को पुष्ट करती थीं तो उनकी तरफ से कोई बयान नहीं आता था और अब मुज़फ्फरनगर की रिपोर्ट राजग के हितों को तो अमेरिका का विरोध कौन करे ? विपक्ष में रहकर भाजपा इन रिपोर्ट्स का विरोध किया करती थी पर आज वह चुप है. इस स्थिति को समझते हुए ही अमेरिका आसानी से ऐसी रिपोर्ट्स जारी करता ही रहने वाला है.

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