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पुरुष मानसिकता और महिलाएं

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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बदायूं में हुई शर्मनाक घटना के बाद जिस तरह से दलीय राजनीति गर्माती ही जा रही है उससे यही लगता है कि हमारे नेताओं में समाज के लिए कुछ ठोस करने के स्थान पर केवल बयानों के जरिये ही काम चलाने की आदत सी बन गयी है. इस तरह के किसी भी अपराध के बाद आखिर क्या कदम उठाये जा सकते हैं कि उनके माध्यम से जहाँ पीड़ितों को पूरा न्याय दिलाया जा सके वहीं दूसरी तरफ किसी भी तरह से उनको पुलिस या प्रशासन का कोई समर्थन या सहयोग भी न मिल पाये. आज जिस तरह से ऐसी घटनाओं के लिए सत्ताधारी दलों को ही ज़िम्मेदार ठहराए जाने की परंपरा चल पड़ी है उस स्थिति में आखिर इससे छुटकारा कैसे पाया जा सकता है ? ये मुख्य समस्या असल में सत्ता के प्रतिष्ठानों पर बहुत ही कम निर्भर किया करती है क्योंकि इसका असली सम्बन्ध समाज में फैली हुई उस भावना से अधिक होता है जिसमें हमारे घरों में लड़कियों को शुरू से ही दबा कर रखा जाता है या किसी कमज़ोर को सबक सिखाने के लिए इस तरह की घटना को अंजाम देने की कोशिश भी की जाती है.
कोई भी सरकार या पुलिस इस मामले में केवल इतनी ही चौकन्नी हो सकती है कि वह अपराध होने की दशा में तुरंत कार्यवाही करे और साथ ही उन स्थानों पर भी पुलिस अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज़ कराये जहाँ पर आने जाने वाली महिलाओं के लिए दुर्व्यवहार की संभावनाएं रहा करती है. आज जिस तरह से महिलाएं अपने घरों से बाहर निकल कर पुरुषों के साथ काम करने में लगी हुई हैं तो उस परिस्थिति में उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी उनके कार्यस्थल का सञ्चालन करने वाले के साथ समाज पर अधिक आ जाती है. यह समस्या कानून से नहीं सुलझा सकती है क्योंकि निर्भया कांड के बाद मौत की सजा का प्रावधान किये जाने के बाद भी क्या इन घटनाओं में कहीं से कोई कोई कमी दिखाई देती है ? आज सबसे बड़ी आवश्यकता समाज में परिवर्तन लाने की है और उसके लिए सबसे पहले नयी पीढ़ी को सुधारने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक पूरे समाज में इस बात पर आत्ममंथन नहीं किया जायेगा तो सरकारें इसी तरह से निशाने पर आती रहेंगीं.
कारणों पर विचार करने के साथ ही प्राथमिक शिक्षा से ही लड़कों को लड़कियों के बराबर होने की बात समझाने की आवश्यकता है क्योंकि हमारे अधिकांश घरों के परिवेश में लड़कियों को जिस तरह से लड़कों के सामने आज भी निम्न माना जाता है तो उन लड़कों के मन में लड़कियों और महिलाओं के बारे में हीन भावना पहले से ही बन जाया करती है. इसके लिए सबसे पहले घरों के माहौल को सुधारने की आवश्यकता है क्योंकि जब बचपन से ही बच्चों को महिलाओं को इज़्ज़त देना आ जायेगा तो वे बड़े होकर इस तरह की घटनाओं से सदैव दूर ही रह पायेंगें. आज समाज में जो कुछ भी हो रहा है उसको एकदम से सुधारा नहीं जा सकता है पर यदि अच्छे से सामाजिक परिवर्तन के द्वारा घरों में माहौल को बदलने का प्रयास किया जाये तो आने वाली पीढ़ी के संस्कारों को तो सुधारा ही जा सकता है. महिलाओं के खिलाफ अत्याचार कानूनी कम और सामाजिक समस्या अधिक है पर हम इसे कानून के माध्यम से समाप्त करने की कोशिशों में ही लगे हुए हैं जिससे इस घटनाओं में कहीं से भी कोई कमी नहीं दिखाई देती है. अब यह हम पर ही है कि क्या हम इस सामजिक बुराई को अपने घरों से दूर करने के प्रयास शुरू करने की तरफ बढ़ना चाहते हैं या इसको तात्कालिक उपायों से ही रोकने का प्रयास करना चाहते हैं ?

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