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लोकसभा और शालीनता

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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अपने बेहद हंगामेंदार सत्रों के कारण सदैव ही चर्चा में रहने वाली देश की पंद्रहवीं संसद का अंतिम सत्र भी उसी तरह से बिना प्रभावी संसदीय कार्यों के ही समाप्ति की तरफ बढ़ा गया. जिस संसद में कभी देश और समाज से जुडी हर समस्या पर गम्भीर चर्चाएं ही हुआ करती थीं आज वहाँ पर केवल हंगामे ही हुआ करते हैं और जिस भी परिस्थिति को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाये पर इससे देश की साख पर तो बट्टा लगता ही है भले ही हमारे राजनैतिक दल इसके कोई भी लाभ गिनाते रहें और अपने अनुसार व्यवस्थाओं और परम्पराओं को तोड़ते रहें ? किसी भी देश के जीवंत लोकतंत्र के लिए जिस तरह से संसदीय परम्पराओं का अनुपालन किया जाना आवश्यक होता है ठीक उसी तरह से देश को चलाये जाने के लिए सरकार और विपक्ष में देश हितों पर सामंजस्य का होना बहुत आवश्यक होता है पर हमारे नेता टीवी पर तो बहुत अच्छी बहस करते हैं पर संसद में उनको पता नहीं क्या हो जाता है ? एक समय था जब नीतिगत मुद्दों पर सरकार को केवल सदन में ही घेरा जाता था और उससे चुभते हुए सवाल भी पूछे जाते थे पर आज यह आम तौर पर दिखायी नहीं देते है.
अंतिम सत्र के अंतिम दिन जिस तरह से सदन में माहौल दिखायी दिया तो उसके बाद से से आम जन के मन में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठ सकता है कि जब सदन में एक दिन माहौल इतना अच्छा रह सकता है तो देश से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करते समय आखिर हमारे वही नेता इतने अराजक कैसे हो जाते हैं ? देश के लिए क्या नेताओं के व्यक्तिगत हितों को पीछे छोड़ा जा सकता है और क्या इस तरह के मुद्दों पर कभी कोई सरकार या विपक्षी दल अपने स्तर से कुछ ठोस कर पाने में सफल हो सकता है ? देश के इन सवालों का कोई भी जवाब आज सदन के पास नहीं है क्योंकि हर नेता अपने हिसाब से संविधान और संसद के क्रियाकलापों की बातें किया करता है और केवल अपने दल के अच्छे बुरे के बारे में ही सोचता रहता है भले ही वह किसी भी स्तर पर कितनी बड़ी बड़ी बातें क्यों न करता रहता हो कि उससे अधिक देश के हित कोई और नहीं चाहता है. सदन को अखाडा बनने से रोकने के लिए जिस तरह से सभी दलों को प्रयास करने चाहिए और आने वाली संसद में इस तरह के दृश्य नहीं दिखायी देने चाहिए.
आज देश के सामने जो भी चुनौतियाँ आने वाली हैं उनसे निपटने के लिए सभी को सही तरह से प्रयास करने की आवश्यकता है क्योंकि किसी भी तरह से देश के विकास के बारे में सभी को सहमत होना ही होगा भले ही उस विकास के लिए वे अलग अलग रास्ते पर चलना चाहते हों ? आज देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण नीतियां हैं और ऐसा भी नहीं है कि कोई एक दल ही हर मसले को सुलझा सकता है क्योंकि जब तक सभी दल देश के बारे में हर एक नीति पर सदन में सार्थक बहस कर एक लम्बी अवधि की नीति पर काम करना नहीं शुरू करेंगें तब तक सदन के माहौल को सही करने में कोई सफलता नहीं मिलने वाली है क्योंकि सदन में आज गम्भीर चर्चा के स्थान पर अराजकता ही अधिक हावी होती जा रही है और उसके कारण ही सदन में काम काज नहीं हो पाता है. देश के समग्र विकास के लिए अब डॉ कलाम की सोच के हिसाब से दीर्घकालीन नीतियों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक देश के नेता इस छोटी अवधि के लाभ हानि को देखा कर ही निर्णय लेते रहेंगें तब तक कुछ भी सही नहीं हो सकता है और आने वाले समय में दुनिया में हमारे समृद्ध लोकतंत्र का मज़ाक भी बन सकता है.

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