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नीडो तनियम और नस्ल भेद

***.......सीधी खरी बात.......***
***.......सीधी खरी बात.......***
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देश के विभिन्न भागों के साथ पूरी दुनिया के हर क्षेत्र के लोगों को अपने यहाँ सम्मान करने वाली दिल्ली और उसकी मानसिकता में आखिर ऐसा क्या होता जा रहा है कि उसमें कुछ ऐसे लोग भी अब इस स्थति में पहुँच चुके हैं जो किसी भी तरह से दिल्ली की वैश्विक शहर की छवि को मिटटी में मिलाना चाहते हैं ? अरुणाचल प्रदेश के छात्र नीडो तनियम पर कुछ दुकानदारों ने दिल्ली में नस्लीय टिप्पणी की और नीडो द्वारा उसका विरोध किया जाने पर जितनी बेरहमी से कुछ कथित दुकानदारों ने उसे इतना मारा कि उसकी मृत्यु हो गयी तो यह आखिर दिल्ली के किस चरित्र की तरफ इशारा करता है ? देश का संविधान देश के हर नागरिक को देश भर में आने जाने और शिक्षा, व्यापार करने की छूट देता है जिससे भी देश के व्यापक स्वरुप के बारे में समझने में एक दूसरे नागरिकों को काफी मदद मिला करती है पर आज भी समाज में कुछ ऐसे तत्व सक्रिय हैं जो अपने दिल किसी तरह हीनता से ग्रसित हैं और दूसरों को सम्मान नहीं दे सकते हैं.
हमारी दिल्ली क्या पूरे देश ने ही अनादि काल से ही यहाँ किसी भी काम से आने वालों को पूरी सुरक्षा और सम्मान दिया है पर इधर कुछ वर्षों से जिस तरह से दिल्ली में अपराधिक मानसिकता धीरे धीरे बढ़ती ही जा रही है आज उस पर विचार करने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि आज की दिल्ली में कुछ ऐसे लोग अधिक प्रभावी होते जा रहे हैं जो महिलाओं के साथ साथ अन्य लोगों के बारे में भी गलत अवधारणा रखते हैं और समय समय पर उनकी यह कुंठा कहीं न कहीं से सामने आकर दिल्ली की प्रतिष्ठा को धूल में मिलाती रहती है. अभी आप के मंत्री भारती का मामला पूरी तरह से ठंडा भी नहीं हुआ था कि इस तरह से एक छात्र को नस्ल भेद का शिकार होना पड़ा है ? दिल्ली के मन में क्या चल रहा है यह तो अब दिल्ली को खुद ही खोजना होगा और स्थानीय नयी पीढ़ी के साथ यहाँ अन्य कार्यों से आने वाले लोगों को भी यह समझना ही होगा कि दिल्ली में खुलेपन के साथ आज भी बहुत सारी रूढवादिताएँ छिपी हुई है जिसको उन्हें समझना ही होगा क्योंकि स्वतंत्रता का अर्थ एक तरफ नहीं निकला जा सकता है.
दिल्ली क्या देश के किसी भी अन्य हिस्से में किसी भी तरह से ऐसी घटनाएं होनी ही नहीं चाहिए क्योंकि ये हमारे एक सभ्य और सहिष्णु समाज होने पर पूरी दुनिया में प्रश्न चिन्ह लगा देती हैं. दिल्ली केवल एक शहर ही नहीं बल्कि विविधताओं का जीवंत उदाहरण भी है और राष्ट्रीय राजधानी होने के साथ इसमें होने वाली हर छोटी बड़ी घटना देश के साथ अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर व्यापक खबर बन जाती है इसलिए भी दिल्ली को अब अधिक सहिष्णु होने के साथ लोगों के सम्मान और सुरक्षा के बारे में और गम्भीरता से सोचना ही होगा क्योंकि इस मसले पर किसी भी तरह की राजनीति की गुंजाईश नहीं है. देश का हर भाग चाहे बिहारियों के लिए मुम्बई हो या पूर्वोत्तर के लोगों के लिए देश के अन्य भाग और पूरे देश के नागरिकों के लिए कश्मीर का कोई हिस्सा सभी पूरी तरह से सुरक्षित ही होने चाहिए क्योंकि अब विकास की धारा क्षेत्रवाद से बहुत आगे निकल चुकी है और अब भी जो क्षेत्र इसमें उलझा रहेगा वह अपने विकास को ही रोकने का काम करेगा क्योंकि लोगों के आने जाने से जहाँ देश की विविधता से हम सभी परिचित होते हैं वहीँ उनके माध्यम से हमारे आर्थिक हित भी स्वतः ही पूरे होते रहते हैं पर अब देश के विभिन्न भागों में रहने वाले लोगों में बसा हुआ देश क्या सोचता है यही देश की दुनिया में भविष्य की छवि का निर्माण भी करेगा.

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